दुधारू पशुओं को दिया जाने वाला डाइक्लोफेनेक इंजेक्शन अब गिद्धों के लिए भी घातक साबित होने लगा है. इसका खुलासा फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की मेडिकल टीम की ओर से की गई स्टडी में हुआ है. गिद्ध विलुप्त क्यों हो रहे हैं?


गोरखपुर (अमरेंद्र पांडेय)।इसका पता लगाने के लिए 45 मृत गिद्ध के मांस के सैंपल लेकर स्टडी की गई तो पता चला कि दुधारू गाय व भैैंस को डाइक्लोफेनेक इंजेक्शन का साइड इफेक्ट हुआ। इन दुधारू पशुओं की बॉडी से मांस नोंचकर खाने वाले गिद्ध भी शिकार हुए और मृत घोषित किए गए। जांच के लिए जंगल से मंगाए मृत गिद्ध केटिश्यू
बता दें, वन्यजीवों की गिनती के लिए गोरखपुर में भी मेडिकल एक्सपर्ट की टीम तैनात है। गोरखपुर जिले के विभिन्न जंगल जैसे तिनकोनिया, रजही, कुसम्ही, सूबाबाजार आदि एरिया में मृत गिद्ध व पशुओं के सैंपल लिए गए। विलुप्त होने यानी इनकी मौत का कारण पता लगाया तो डाइक्लोफेनेक इंजेक्शन मुख्य वजह निकलकर सामने आई। अब ऐेसे कंडीशन में शासन में के आदेश पर गिद्ध संरक्षण के लिए वल्चर हाउस बनाया जा रहा है। यह वल्चर 15 करोड़ की लागत से तैयार किया जा रहा है। इसकी पहली किस्त 2 करोड़ रुपए फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को मिल गई है। इसके बाड़े में चित्रकुट से लाल गिद्ध मंगाए गए हैैं। इसमें दो फीमेल और एक मेल है। जो विशेष अवसर पर दर्शकों को दिखाया जा सकेगा और इनकी खूबियों के बारे में दर्शकों को बताया जाएगा। डीएफओ विकास यादव ने बताया कि 10 साल में 99 प्रतिशत गिद्ध खत्म हो गए। जो गंभीर विषय है। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट गिद्धों को संरक्षित करने के दिशा में कदम उठा रहा है। क्या है डाइक्लोफेनेक डाइक्लोफेनेक एक नॉन स्टेराइडल एंटी इंफ्लेमेटरी दवा है, जिसका इस्तेमाल दर्द और सूजन संबंधी बीमारियों में जैसे गाउट के इलाज में किया जाता है। इसका ब्रांड नेम वोल्टेरेन के तहत विपणन किया जाता है। यह मौखिक रूप से एक सपोसिटरी में इंजेक्ट किया जाता है या फिर स्कीन पर लगाया जाता है। पशुओं के मृत शरीर को भोजन बनाने वाले गिद्ध हुए शिकार


पशु चिकित्साधिकारी डॉ। योगेश सिंह ने बताया, मनुष्यों में काम आने वाली दर्द निवारक दवा डाइक्लोफेनेक का इस्तेमाल पशुओं में हो रहा है। पशुओं के मृत शरीर को भोजन बनाने वाले गिद्ध इस दवा के दुष्प्रभाव की चपेट में आ रहे हैं। जबकि पशुओं में डाइक्लोफेनेक के उपयोग पर केंद्र सरकार 2008 में प्रतिबंध लगा चुकी है, लेकिन मनुष्यों के उपयोग के लिए काम में आने वाले डाइक्लोफेनेक के मल्टी-वायल बाजार में आसनी से उपलब्ध होने से इसका उपयोग पशुओं के लिए होने लगा है। 2012 में वन्य प्राणी संरक्षण प्रबंधन एवं रोग निगरानी केंद्र्र, भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) इज्जत नगर की ओर से बीकानेर के कारकस प्लांटों से मृत पशुओं के टिश्यू की जांच में डाइक्लोफेनेक की उपस्थिति की पुष्टि हो चुकी है।कौडिय़ों के भाव मार्केट में उपलब्धडीएफओ बताते हैैं कि सिटी के मेडिकल बाजार में दर्द निवारक फार्मूला डाइक्लोफेनेक इंजेक्शन आसानी से उपलब्ध हैं। तीस एमएल की वायल जिसका बहुतायत उपयोग अस्पतालों में बहुत कम होता है। ज्यादातर सिंगल डोज इंजेक्शन काम में लिए जा रहे हैं। ऐसे में आशंका इस वायल का पशुओं में उपयोग की है। यह वायल सात से 12 रुपए में उपलब्ध है। पशुओं के इस्तेमाल पर डाइक्लोफेनेक दवा प्रतिबंधित है, लेकिन मेडिकल स्टोर पर जब इंस्पेक्शन किया जाता है तो इस दवा की खरीद-फरोख्त की जानकारी मिलती है, लेकिन यह इंसानों के इस्तेमाल के लिए बनाई गई है। अगर कोई दूधिया खरीदता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।जय सिंह, ड्रग्स इंस्पेक्टर, ड्रग डिपार्टमेंट

Posted By: Inextlive