बेटी ही बनेगी मेरे बुढ़ापे की लाठी
कृष्णानगर में रहने वाले दंपति को एक बेटी के बाद दूसरी संतान की नहीं है इच्छा
तेजी से बदल रहे समाज में बेटियों को बेटे के बराबर मान रहा परिवार द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र: बेटियों ने विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर परिणाम देकर समाज की सोच बदल दी है। बुढ़ापे की लाठी, खानदान का नाम रोशन, कमा के लाने वाला, ये बातें अब बेटियों के लिए भी कही जाने लगी हैं। गोरखपुर में भी लोग बेटियों को लेकर निश्चिंत दिख रहे हैं। सिटी में ऐसे सैकड़ों परिवार हैं, जो बेटों की अपेक्षा बेटियों से अधिक अपेक्षाएं करते हैं। कृष्णा नगर प्राइवेट कॉलोनी में रहने वाले मनीष और सुप्रिया सिन्हा की एक बेटी है। बेटी श्रेया के इर्द गिर्द ही उनका सारा संसार है। बेटी के बाद अब उनको दूसरी संतान की इच्छा नहीं है। उनका कहना है कि वे बेटी को पढ़ा लिखकर डॉक्टर बनाएंगे। मेरा नाम करेगी रोशनमनीष और सुप्रिया का कहना है कि आजकल किसी मामले में बेटियां बेटों से कम नहीं हैं। बेटियां अब वे सारे काम कर रही हैं, जो बेटे करते हैं। यही हमारे बुढ़ापे की मजबूत लाठी बनेगी, खानदान का नाम भी रोशन करेगी। श्रेया से दादा-दादी को भी काफी उम्मीदें हैं। हाउस वाइफ सुप्रिया ने बताया कि श्रेया अपने व्यवहार और डांस के बल पर घर से लेकर अपने मामा के घर तक की लाडली है।
बदल गई दादी की सोच मनीष ने बताया कि ऐसे तो समाज में पुरानी सोच से कुछ परेशानी जरूर होती है। पिता जी रेलवे कर्मचारी थे। वे शुरू से ही बेटी और बेटा में कोई अंतर नहीं करते थे। लेकिन माता जी शुरू में अक्सर बेटे की इच्छा व्यक्त करती थी, लेकिन जैसे-जैसे श्रेया बड़ी हुई हुई उससे हुए लगाव के कारण दादी की सोच बदल गई। आज पिता जी हो या माता जी। श्रेया को सुबह न देखे तो लगता है कि दिन की शुरुआत ही नहीं हुई। डांस में है रुचि मनीष और सुप्रिया ने बताया कि श्रेया पढ़ाई के साथ-साथ अच्छा डांस करती है। वे बेटी को डॉक्टर या डांसर बनाना चाहते हैं। श्रेया अभी छह वर्ष की है। डांस और पढ़ाई में उसकी बराबर रुचि है। हम लोग भी उसकी तैयारियों में हर वक्त लगे रहते हैं।