हेल्दी लिविंग के लिए गोरखपुराइट्स तमाम पॉसिबल तरीके अपना रहे हैं. खासतौर पर लेडीज अपनी सेहत के लिए खासी कॉन्शस हैं. चाहे वह मॉर्निंग में की जाने वाली वॉक हो या फिर शाम को जिमों में बहाया जाने वाला पसीना.


गोरखपुर (ब्यूरो)। तरीके चाहे जो भी हों, लेकिन सबके पीछे मकसद सिर्फ एक ही है। वह है हेल्दी लाइफ। इस भागती जिंदगी में भले ही पूरी तरह से कार और बाइक ने कब्जा कर रखा हो, मगर साइकिल का क्रेज कम नहीं हुआ है। कम हो भी तो कैसे? जब साइकिल फायदे की सवारी साबित हो रही हो। इससे जहां हार्ट को सेव करने में यह मददगार साबित हो रही है, वहीं पॉकेट पर पडऩे वाले बोझ को भी कम करने में यह मददगार साबित हो रही है। यही वजह है कि प्रोफेसर से लेकर प्रोफेशनल और स्टूडेंट्स तक सभी साइकिल का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे फिट एंड फाइन रहा जा सके। जिम में नहीं बहाना पड़ेगा पसीना


डॉक्टर्स की मानें तो बिजी लाइफ स्टाइल में आज लोगों के पास वक्त की काफी कमी है। इसकी वजह से लोग खुद पर ध्यान नहीं दे पा रहे और उन्हें बिमारियां अपने शिंकजे में ले ले रही हैं। बदलते वक्त में अगर कोई चीज सबसे ज्यादा परेशान करती है तो वह है ओबेसिटी। इससे बचने के लिए लोग जिम में पसीना बहा रहे हैैं, मगर इस कोशिश से किसी को तो काफी फायदा मिल जाता है, लेकिन वहीं कोई मजबूरन उसी लाइफ में खुद को खुश दिखाने की कोशिश करता है। मतलब साफ है, लाखों रुपए फूंकने के बाद भी उसे कोई फायदा नहीं। डॉक्टर्स की मानें तो ओबेसिटी से बचने का सबसे अच्छी अगर कोई एक्सरसाइज है, तो वह है साइक्लिंग। डेली साइक्लिंग से ओबेसिटी होने के चांसेस लगभग जीरो रहता है। स्टैमिना बढ़ाने में भी है हेल्पफुलसाइकिलिंग कहने को तो सिर्फ एक एक्सरसाइज है, लेकिन अगर इसके फायदे को गिनने के लिए बैठा जाए तो उंगलियां कम पड़ जाएंगी। अब घरों में साइकिलिंग न करने के हजारों बहाने भी अक्सर सुनने को मिल ही जाते हैं। मसलन, थोड़ी दूर साइकिल चलाने पर सांस फूलने लगती है, कमजोरी महसूस होने लगती है, थकावट महसूस होती है, वगैरा-वगैरा। मगर शायद आपको यह जानकार हैरानी हो कि साइकिलिंग घाटे का सौदा बिल्कुल नहीं है। डॉक्टर्स की मानें तो साइकिलिंग, कोरोनरी हार्ट डिजीज के रिस्क को मिनिमाइज कर देती है। स्टेमिना घटाती नहीं बढ़ाती है साइकिलिंग

लगातार साइकिल चलाने से स्टेमिना घटता नहीं बढ़ता है। डॉ। संजीव गुप्ता ने बताया कि साइकिलिंग से स्टेमिना बढ़ जाता है। साथ ही साइकिलिंग से मसल्स को टोन्ड और ट्रिम्ड बना देती है। क्योंकि साइकिलिंग करते टाइम अपर थाइज, बैक और कॉफ मसल्स एक साथ वर्क करते है। उन्होंने बताया कि साइकिलिंग की कोई एज नहीं होती। बस सेहत का ख्याल रखना चाहिए। 55 साल की एज तक सभी साइकिलिंग कर सकते है। साइकिलिंग से हार्ट, हाइपरटेंशन, डिप्रेशन से बचा जा सकता है.8साइकिलिंग अपने आप में कंप्लीट एक्सरसाइज है। रेग्युलर साइक्लिंग करने से बॉडी में बढ़ी हुई वेस्टलाइन और बल्जिंग फैट से छुटकारा मिल जाता है, जिससे बॉडी खुद ब खुद फिट रहती है। डॉ। त्रिलोक रंजन, फिजीशियन

Posted By: Inextlive