इश्क-ए-रसूल व कुरआन की तालीम कामयाबी की जमानत : मौलान मसूद
- मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया इमामबाड़ा दीवान बाजार में समाज सुधार सम्मेलन व दीक्षांत
GORAKHPUR : मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया इमामबाड़ा दीवान बाजार में सातवां जलसा-ए-दस्तारबंदी आयोजित किया गया। जिसमें मदरसे को होनहारों को मुख्य अतिथि मौलाना मसूद आलम व पीरे तरीकत गुलाम गौस ने दस्तार (पगड़ी) व प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। इसके साथ ही सामाजिक सुधार सम्मेलन भी हुआ, जो सोमवार की देर रात तक चलता रहा। इस दौरान अर्शे आजम, मुजस्सम अली, गुलाम गौस, मिनहाजुद्दीन, अमीरुद्दीन अहमद, वसीउल्लाह, जबीहुल्लाह, शमसुद्दोहा, बेलाल अहमद, मोहम्मद अमन, महमूद रजा, सद्दाम हुसैन, मोहम्मद अख्तर रजा, मोहम्मद अली रजा, मोहम्मद आमिर को सम्मानित किया। मुसलमानों की हालत खराबअन्तर्राष्ट्रीय इस्लामिक विद्वान अलजामियतुल अशरफिया मुबारकपुर यूनिवर्सिटी के मौलाना मसूद अहमद बरकाती ने बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे। इस दौरान उन्होंने कहा कि रसूल की शान सुनकर जिस शख्स के दिल में ठंडक ना पहुंचे उसके सीने में धड़कने वाला दिल मोमिन का हो ही नहीं सकता। दुनिया की आबादी पौने छह अरब है, जिसमें 1 अरब 40 करोड़ मुसलमान हैं। 56-57 इस्लामी देश हैं। दौलत की कमी नहीं है, उसके बावजूद मुसलमानों की हालात खराब है। इतनी समस्याएं हैं कि गिनते-गिनते वक्त गुजर जाए। इसकी वजह यह है कि मुसलमानों को जहां से इज्जत मिली उस केंद्र यानि रसूल मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम व कुरआन से उन्होंने दूरी अख्तियार कर ली।
बना ली है इस्लाम से दूरी उन्होंने कहा कि आज इस्लाम पर चलना आसान है। मुसलमान का फिर से उसी मरकज से अपना रिश्ता कायम करना होगा। जहां से उसे इज्जत मिली थी और मिलेगी। उन्होंने कहा कि मुसलामनों ने इस्लाम से दूरी बना ली है। उन्होंने कहा कि नाम के मुसलमान ना बनो, बल्कि इसे अमल भी करके दिखाओ। सामाजिक सुधार की बात करने वाले पहले खुद में सुधार लाएं। उलेमा व मदरसों का सामाजिक सुधार में अहम रोल है। यहां से फारिग होने वाले छात्र मदरसे से हासिल इल्म केा खुद की जिदंगी में भी उतारे और दूसरों तक भी पहुंचाएं। नमाज आखों की ठंडकसरपरस्ती करते हुए पीरे तरकीत सैयद गुलाम गौस ने कहा कि इस्लाम ने हमें जिदंगी जीने का करीना सिखाया। रसूल ने पैदा होते वक्त, लोगों की यातनाएं सहते हुए और तमाम मौकों पर भी उम्मत को नहीं भुलाया। रसूल कहते है कि नमाज मेरे आंखों की ठंडक है, उसके बाद भी हमारी मस्जिदें खाली हैँ। घरों से दीन रुख्सत हो चुका है। हमें चाहिए कि हम रस्मी कामों के साथ इस्लाम की बुनियादी तालीम नमाज, रोजा, जकात पर भी अमल करें। खुदा की राह में खर्च करने से दिल करार पाता है। रसूल से रूहानी रिश्ता जोड़े। इसके अलावा सम्मेलन को मौलाना मोहम्मद रियाजुद्दीन व हाजी सैयद तहव्वर हुसैन ने भी संबोधित किया।
तिलावत से शुरू हुआ प्रोग्राम इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत कारी मोहम्मद सरफुद्दीन ने तिलावत-ए-कुरआन पाक से की। नात शरीफ हाफिज मोहम्मद अहमद व अशहर अजीजी ने पेश की। अंत में सलातो-सलाम का नजराना पेश कर कौमों मिल्लत, अमनो आमान, खुशहाली, यकजहती की दुआएं मांगी गई। प्रोग्राम का संचालन मौलाना मकसूद आलम व अध्यक्षता हाफिज नजरे आलम कादरी ने की। इस दौरान निसार अहमद, मोहम्मद अनीस, मुफ्ती अख्तर हुसैन, हाजी शमसुल इस्लाम, मोहम्मद इदरीस, मोहम्मद नसीम खान, रेयाज अहमद, मोहम्मद आजम, नवेद आलम काजी इनामुर्रहमान सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।