ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ व महंत अवेद्यनाथ की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में सम्मेलन का चौथा दिन

गोरखपुर (ब्यूरो) काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो। विनय कुमार पांडेय ने कहा कि यूनान, रोम, मिस्र, यूरोप समेत दुनिया के किसी भी देश के धर्मग्रंथ या इतिहास में जीवन पद्धति का उल्लेख नहीं है। जबकि संस्कृत से प्रस्फुटित वेदों, पुराणों से बनी भारतीय संस्कृति में ही मूल्यपरक जीवन पद्धति का वर्णन है। वह बुधवार को ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के चौथे दिन 'संस्कृत एवं भारतीय संस्कृतिÓ विषयक सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे.

संस्कृत और भारतीय संस्कृति

सम्मेलन में डीडीयू में संस्कृत विभाग की सह आचार्य एवं समन्वयक डॉ। लक्ष्मी मिश्रा ने कहा कि भारतीय सभ्यता और मनीषा में संस्कृत और संस्कृति को कभी पृथक रूप में नहीं देखा जा सकता। हमारे सभी वेदों, वेदांगों और पुराणों, दर्शनों समेत सभी वैदिक विद्याओं की रचना संस्कृत में ही है।

महत्ता हुई स्वीकार

सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के पूर्व आचार्य प्रो। कमलचचंद्र योगी ने कहा कि आज एक बार फिर पूरा विश्व भारत की आध्यात्मिक संस्कृति की महत्ता को स्वीकार कर रहा है। यह आध्यात्मिक संस्कृति, संस्कृत से ही प्रस्फुटित हुई है।

ये रहे मौजूद

सम्मेलन की अध्यक्षता गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, आभार ज्ञापन महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सदस्य डॉ। शैलेंद्र प्रताप सिंह व संचालन माधवेंद्र राज, वैदिक मंगलाचरण डॉ। रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पांडेय व गौरव तिवारी ने किया। इस अवसर पर महंत सुरेशदास, योगी डॉ। विलासनाथ, महंत शिवनाथ, महंत राममिलनदास आिद मौजूद रहे।

Posted By: Inextlive