दिल का मरीज न बना दे यह 'कार्बन'
- गोरखपुर के एटमॉस्फियर में ब्लैक कार्बन की तादाद बढ़ने से खतरा
- सांस से संबंधित समस्या होने से गोरखपुराइट्स को हो सकती है गंभीर बीमारियां - डीडीयूजीयू के फिजिक्स डिपार्टमेंट में की रिसर्च में हुआ खुलासा GORAKHPUR: गोरखपुर की आबो-हवा दिन ब दिन खतरनाक होती जा रही है। फिजाओं में जहरीली गैसों के साथ जानलेवा मॉलीक्यूल्स मौजूद हैं, जो लोगों को काफी बीमार करने के लिए काफी है। यह हम नहीं कह रहें हैं बल्कि डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी के फिजिक्स डिपार्टमेंट की रिसर्च में यह बात सामने आई है। एथनोमीटर के थ्रू फिजिक्स के रिसर्च स्कॉलर्स ने पता लगाया है कि एटमॉस्फियर में कई खतरनाक मॉलीक्यूल्स मौजूद हैं, इनमें सबसे ज्यादा मात्रा ब्लैक कार्बन की है। इससे ब्लड प्रेशर से लेकर हार्ट अटैक तक की प्रॉब्लम हो सकती है। दमा और सांस के मरीजों के लिए यह जानलेवा है। पॉल्यूशन है अहम रीजनबड़े शहरों जैसे दिल्ली, कानपुर, कोलकाता जैसी जगह पर पाए जाने वाली प्रॉब्लम अब गोरखपुराइट्स को घेरने लगीं है। इसरो के एक्सपर्ट प्रयाग राज सिंह की मानें तो गोरखपुर एरिया में ब्लैक कार्बन बढ़ने का सबसे बड़ा रीजन पॉल्यूशन है। इसमें वैक्यूलर, सॉयल बर्निग के साथ ही इंडस्ट्रीज और वेस्ट की तरफ से आने वाले ब्लैक कार्बन शामिल हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि इन कारणों से पॉल्यूशन बढ़ने के साथ ही पश्चिमी हवाएं भी वेस्ट से निकलने वाले कार्बन को एटमॉस्फियर में ले आ रहे हैं, लेकिन इन कार्बन को हवाओं के सहारे आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिल रहा है, जिससे यह एटमॉस्फियर में ही जमा हो जा रहे हैं। यह गोरखपुराइट्स की सेहत के लिए काफी खतरनाक हैं।
यही रीजन है कि हार्ट अटैक से होती है मौत ह्दय एंव मधुमेह रोग विशेज्ञष डॉ। सुधीर कुमार ने बताया कि एटमॉस्फियर में पाए जाने वाले ब्लैक कार्बन बेहद खतरनाक मॉलीक्यूल हैं। इसका बढ़ना हमारी हेल्थ के लिए वॉर्निग है। हवा में मौजूद होने की वजह से जब भी कोई सांस लेता है, तो हवा के साथ ही कार्बन भी सांस की नलियों के रास्ते बॉडी में पहुंच जाता है। इससे बॉडी में ब्लैक कार्बन का परसेंटेज बढ़ने लगता है। बॉडी में इसकी लिमिट एक्सीड होने से ब्लड प्रेशर और हार्ट अटैक जैसी जानलेवा बीमारियों होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। वहीं वेंस को यह सिकोड़ देती है, जिससे प्रॉपर ब्लड सुर्कलेट नहीं हो पाता और ब्रेन हैमरेज से लोगों की मौत हो जाती है। 2012-13 में खुला था वेदर स्टेशनडीडीयूजीयू के फिजिक्स डिपार्टमेंट में सन 2012-13 में वेदर स्टेशन बनाया गया। यह स्टेशन इंडियन स्पेश रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) त्रिवेंद्रम की तरफ से बनाया गया। उस दौरान पूरे देश में एक साथ 35 स्टेशन बनाए गए, जिसमें एक सेंटर ऐरोसेल रेडिएटिव फोर्सिग ओवर इंडिया प्रोजेक्ट के तहत गोरखपुर यूनिवर्सिटी में भी ओपन किया गया। इसका सिर्फ एक ही मकसद था कि एटमॉस्फियर में जो भी ऐरो सेल हैं। उसकी प्रॉपर मॉनीटरिंग की जाए। इसके साथ ही मल्टी वेब लेंथ रेडियो मीटर की रिपोर्ट इसरो त्रिवेंद्रम को भेजी जाए। तब से लगातार वेदर स्टेशन एटमॉस्फियर में पाए जाने वाले एरो सेल की रिपोर्ट भेजता जा रहा है, लेकिन इधर कुछ दिनों वेदर स्टेशन पर जो रिपोर्ट आई है। वह चौकाने वाला है।
यह हो सकती है प्रॉब्लम - दमा - सांस फूलना - खून की नली में इलास्टिक कम होना - ब्रेन प्राब्लम - ब्लड सर्कुलेशन प्रॉपर न होना ऐसे करें बचाव - अवेयरनेस कैंपेन - व्हीकल का यूज कम करें - रेग्युलर व्हीकल पॉल्युशन की जांच कराएं - ट्रैफिक और पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड कराएं चेकअपगोरखपुर एरिया के एटमॉस्फियर में ब्लैक कार्बन की मात्रा काफी ज्यादा है। जो सांस से संबंधित बीमारियों को दावत दे रहा है। इसकी रिपोर्ट मल्टी वेब लेंथ रेडियो मीटर से मॉनीटर कर इसरो भेजी जाती है।
- प्रो। शांतनू श्रीवास्तव, कोऑर्डिनेटर, वेदर स्टेशन, इसरो