सेहत और सूरत दोनों संवारती है साइकिल
GORAKHPUR: साइकिल की सवारी गोरखपुराइट्स को भा रही है। बचपन में शरारत के तौर पर चलाई गई साइकिल आज जीवन का हिस्सा बन चुकी है। कॉलेज से आने जाने के लिए साइकिल चलाना मजबूरी थी, लेकिन आज वे ऑफिसर्स है। फिर भी साइकिल से नाता नहींटूटा। आज वे भले ही रिटायर हो गए हों, लेकिन साइकिल से वे रिटायर नहींहुए हैं।
आज भी चलते हैं ब्ब्0 रुपए की साइकिल सेसाइकिल सेहत ही नहीं हमारे लिए इंटरटेनमेंट भी है। इसलिए तो आज भी पुरानी साइकिल, जिसकी कीमत उस समय ब्ब्0 रुपए थी, आज भी मेरे पास है। यह बातें जुबिली इंटर कॉलेज के डॉ। राजेश कुमार गुप्ता ने कही। सर्विस के क्0 साल से अधिक हो गए है, फिर भी आज वे साइकिल से ही चलते हैं। यह साइकिल पिता जी ने पढ़ाई के समय खरीदी थी। उनका कहना है कि साइकिल केवल सेहत ही नहीं, हमारे लिए मौज का भी काम करती है। आज भी मियां बाजार स्थित अपने घर से जुबिली इंटर कॉलेज वे साइकिल से आते-जाते हैं। मार्केट जाना हो या किसी मित्र या संबंधी के यहां, वे साइकिल का ही यूज करते है। वे बताते हैं कि क्ख् साल की उम्र में साइकिल चलाना सीखा था। तब से लेकर आज तक साइकिल की सवारी हमारी प्यारी है। कई मित्र कहते हैं कि गाड़ी ले लो, लेकिन घर के बाहर खड़ी साइकिल को देखने के बाद लगता है ऐसा लगता है, जैसे वह कह रही ही हमें जुदा न करना।
अनमोल होते हैं कुछ गिफ्ट जीवन में कुछ गिफ्ट अनमोल होते हैं और ऐसे गिफ्ट को हर कोई सहेज कर रखना चाहता है। ऐसा ही एक गिफ्ट मूल नारायण शुक्ला को ससुराल से साइकिल के रूप में मिला। इस साइकिल को वह ख्0 साल से अपने साथ रखे हुए है। आज भी 7ख् साल की उम्र में हेल्दी हैं, इसका श्रेय वे साइकिल को ही देत हैं। क्ख् वर्ष की उम्र में साइकिल चलाना सीखा। वे बताते हैं कि उस समय पूरे गांव में एक दो लोगों के पास साइकिल हुआ करती थी। एक साइकिल मेरे घर पर भी थी। पिता जी साइकिल खड़ी करके घर में जाते थे तो वे साइकिल लेकर निकल जाते थे। इसके बाद पिताजी ने हमें एक नई साइकिल दिला दी। उसके बाद कॉलेज लाइफ तक वह साइकिल साथ रही। नौकरी पर भी उसी से जाते थे। आज भी वे मार्केट या दोस्तों के घर साइकिल से ही जाते हैं। पूरे परिवार को पसंद है साइकिलरेलवे में उप महाप्रबंधक (सामान्य) संजय यादव की उम्र ब्भ् साल हो चुकी है, लेकिन आज भी यह स्वस्थ्य हैं। अपने स्वस्थ्य जीवन का पूरा श्रेय वे साइकिल को देते हैं। वह कहते हैं अगर किसी को नींद न आने की बीमारी हो तो व डेली कम से कम क्0 किमी साइकिल चलाए, नींद की समस्या दूर हो जाएगी। स्कूल जीवन में से ही उनको साइकिल से प्रेम है। क्0 साल की उम्र में पहली बार साइकिल की सवारी शुरू की और आज फ्भ् साल बाद भी साइकिल से दिन की शुरुआत करते हैं। अपनी ही नहीं अपने बच्चों की आदत में भी इन्होंने साइकिल की आदत डाली है। वह बताते हैं कि कॉलेज लाइफ में साइकिल चलाने की इतना क्रेज था कि एक बार अलीगढ़ से 70 किमी दूर नरौरा साइकिल से ही सफर तय कर लिया। उस दिन साइकिल को लेकर जीवन में मिला लक्ष्य प्राप्ति का ध्येय।
ताउम्र रहेगा साइकिल का साथरामकिशोर यादव रेलवे में एकाउंटेंट के पद से रिटायर्ड हुए। क्9म्क् में पहली बार साइकिल से नौकरी करने गए और ख्00क् में जब रेलवे ने इनको कार्य मुक्त किया तब भी यह घर वापस साइकिल से ही आए। इनके जीवन के हर कदम पर आज भी साइकिल साथ रहती है। वे कहते भी हैं साइकिल हमारी ताउम्र की साथी है। 7ख् साल की उम्र में आज दशरथ पांडेय को न शुगर है और न ही बीपी। इसका श्रेय वे साइकिल को ही देते हैं। आज भी हर काम साइकिल से करते हैं। मार्केट जाना हो किसी दोस्त के घर या किसी रिश्तेदार के घर। वे साइकिल लेकर निकलते हैं। वह कहते भी हैं कि घर से क्0 किमी दूर अगर जाना होता है कि साइकिल की ही सवारी करते हैं। रामकिशोर यादव कहते हैं कि साइकिल का प्रेम उनके जीवन में इतना रहा कि कभी गाड़ी चलाना सीख ही नहीं पाया। जब भी गाड़ी चलाने की सीखने की इच्छा हुई तो लगा जीवन का एक हिस्सा बन चुकी साइकिल कहीं छूट न जाए और इसी डर ने साइकिल नहींछोड़ी। इसका लाभ आज हमारे जीवन में मिल रहा है। आज स्वस्थ्य हूं तो कारण साइकिल ही है।
सिटी स्पीक्सआज सभी जिंदगी में तेज गति से चलना चाह रहे हैं। इस गति में अगर कोई व्यक्ति अपना सबसे अधिक कुछ खो रहा है तो स्वास्थ्य। फ्भ् साल की उम्र पार करते-करते हालत यह हो रही है कि किसी को शुगर है तो किसी बीपी। इन सब के पीछे एक ही कारण है। लोग मानसिक मेहनत तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन शारीरिक मेहनत से साथ छूट रहा है। इसका परिणाम है कि लोग बीमारियों के जाल में फंस रहे हैं। इनसे बचने के लिए अगर कोई बड़ा उपाय है तो वह है शारीरिक मेहनत। आई नेक्स्ट बाईकाथन सीजन-म् का यही संदेश है। आई नेक्स्ट का यह प्रोग्राम बहुत ही शानदार है। यह प्रोग्राम केवल यह संदेश नहीं दे रहा है कि स्वस्थ्य रहो। इसमें समाज के लिए भी एक संदेश छुपा हुआ है। वह है प्रॉल्यूशन फ्री सिटी का संदेश। अगर सिटी के सभी आफिसर्स और वीवीआईपी लोग साइकिल चलाना शुरू कर दें तो सिटी की कई प्रॉब्लम दूर हो जाएगी। आज गोरखपुर में ट्रैफिक जाम की सबसे अधिक प्रॉब्लम है। यह प्रॉब्लम पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी। गोरखपुर का पॉल्यूशन भी खतरनाक हो गया है। देश में ईधन की जो खपत लगातार बढ़ रही है, उसे भी कुछ कम करके देश के लिए भी एक अच्छा काम करेंगे।
मंटू साहनी, डायरेक्टर डायमंड लेडीज शॉप