जिंदगी के सफर में राही..
-साइकिल से दोस्ती ऐसी अटूट, बन गए अधिकारी पर न छूटा साथ
-एनई रेलवे के एरिया मैनेजर और रीजनल स्पोर्ट्स अफसर को अभी भी है साइकिल से प्यार -घर में गाड़ी से अधिक है साइकिल की वैल्यू, कार जरूरत पर साइकिल है शौकGORAKHPUR: साइकिल अब लोगों का शौक बन गई है। साइकिल से चलना अब लोग अपनी मजबूरी नहीं बल्कि शान समझते हैं। घर में बड़ी-बड़ी कार और सरकार की ओर से मिलने वाली गाडि़यां होने के बावजूद कई अफसर्स ने अभी भी साइकिल चलाना नहीं छोड़ा। क्योंकि समय बदला, उम्र बदली, बच्चे से अफसर बन गए, मगर बचपन का वह शौक अभी तक खत्म नहीं हुआ। रीजनल स्पोर्ट्स अफसर अश्विनी कुमार सिंह और एनई रेलवे के एरिया मैनेजर जेपी सिंह को भी कुछ ऐसा ही शौक है। जो घर के साथ ऑफिस का काम जितनी ईमानदारी से करते हैं, उतना ही प्यार साइकिल से करते हैं। क्योंकि इनके लिए साइकिल स्टेट्स और जरूरत से बढ़ कर है।
अश्विनी कुमार सिंहकुश्ती का वह जाना-पहचाना नाम, जिसने न सिर्फ खुद कमाल दिखाया बल्कि ऐसे कई पहलवान तैयार किए जिन्होंने प्रदेश, देश नहीं बल्कि विदेशी जमीं पर भी अपना परचम फहराया। गोरखपुर के रीजनल स्पोर्ट्स अफसर अश्विनी कुमार सिंह कुश्ती के खिलाड़ी रहे हैं। अश्विनी को बचपन से ही कुश्ती खेलने के साथ साइकिल चलाने का बहुत शौक था। बचपन में घर की हर छोटी जरूरत पर अश्विनी साइकिल लेकर काम करने को तैयार रहते थे। फिर चाहे जितना भी बोझ उठाना हो, साइकिल है तो अश्विनी कभी हार नहीं मानते थे।
जहां रहे पोस्ट, वहां खरीदी साइकिलअश्विनी कुमार सिंह ने क्980 में बिजनौर में डिप्टी स्पोर्ट्स अफसर की पोस्ट पर ज्वाइन किया। इसके बाद वे क्98भ् में आजमगढ़ पहुंचे। जहां जाते ही उनका साइकिल प्रेम नजर आने लगा। उन्होंने वहां एक साइकिल खरीदी। ये साइकिल ही उनकी शान की सवारी थी। फिर चाहे डीएम के ऑफिस जाना हो या फिर स्टेडियम से जुड़े अन्य कामकाज निपटाने हो। यह दौर लगातार चलता रहा। फिर चाहे आजमगढ़ हो या गाजीपुर, गोरखपुर, ललितपुर, मऊ, प्रतापगढ़ या बस्ती। सभी जगह पोस्टेड होने के साथ अश्विनी कुमार सिंह ने स्टेडियम में साइकिल खरीदी। अश्विनी कहते हैं कि साइकिल खरीदना एक उद्देश्य है। जिसके तहत न सिर्फ पेट्रोल-डीजल की बचत होगी बल्कि बॉडी फिट रहेगी। जो एक खिलाड़ी के लिए बहुत जरूरी है। अफसर बनने के बाद पर्याप्त एक्सरसाइज करने का समय नहीं मिलता। मगर साइकिलिंग से टाइम की बर्बादी नहीं होती है और एक्सरसाइज पूरी हो जाती है। अनिरुद्ध चौधरी, जनार्दन यादव, रविंद्र यादव, तालुकदार यादव, मेवा लाल यादव, अनुज वालियान, श्याम नारायन यादव को इंटरनेशनल फेम बनाने वाले अश्विनी कहते हैं कि साइकिल पूरी लाइफ की सबसे अच्छी दोस्त है।
---------- जेपी सिंह वर्ल्ड के लांगेस्ट प्लेटफॉर्म पर हजारों पैसेंजर्स का आना-जाना है। जिन्हें सुविधा मुहैया कराने की जिम्मेदारी स्टेशन के एरिया मैनेजर की होती है। इतनी अहम जिम्मेदारी होने के बावजूद एनई रेलवे के एरिया मैनेजर जेपी सिंह अपनी साइकिल के लिए बिजी शेड्यूल से टाइम निकाल ही लेते हैं। साइकिल से जेपी सिंह को कितना लगाव है, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि साइकिल के बिना उनका एक दिन भी नहीं कटता। सुबह टाइम न मिले तो शाम और शाम को भी टाइम न मिले तो रात। मतलब दिन भर में एक बार साइकिल चलाना जरूरी है। जेपी कहते हैं कि यह शौक उन्हें बचपन से है। जब स्कूल छोड़ने के लिए साइकिल ले जाने की परमीशन नहीं मिलती थी, पिता जी छोड़ने जाते थे, तब भी स्कूल से लौटने के साथ ही साइकिल चलाना नहीं भूलते थे। सरकारी गाड़ी फिर भी निकल पड़ते हैं साइकिल सेएनई रेलवे में एरिया मैनेजर जेपी सिंह को साइकिल से बचपन से ही प्यार था। जब वे क्लास फ् में थे, तब पिता जी ने साइकिल खरीदी थी। उस टाइम जेपी मध्य प्रदेश में रहते थे। जेपी को क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था। जेपी अपनी साइकिल से क्रिकेट खेलने भ् से म् किमी दूर तक चले जाते थे। साइकिल इतनी अधिक पसंद थी कि पिता रेलवे में अधिकारी थे, इसके बावजूद वे इंटर या ग्रेजुएट तक नहीं बल्कि एमएससी करने के दौरान भी साइकिल से ही कॉलेज जाते थे। यह दौर अब भी जारी है। हफ्ते में अक्सर ऐसा मौका आ जाता है जब जेपी साइकिल से ही ऑफिस पहुंच जाते हैं। कई बार तो बेटी की साइकिल लेकर घूमने निकल पड़ते हैं। दो साल पहले जब जेपी एनई रेलवे की विजिलेंस टीम में थे, तब भी वे कई बार साइकिल से ही ऑफिस जाते थे।