- रोडवेज के रिकॉर्ड में पिछले पांच साल में एक भी बस अनफिट नहीं

- तमकुही, ठूठीबारी, वाराणसी रूट पर दौड़ रही हैं कई अनफिट बसें

GORAKHPUR : खिड़की के टूटे शीशे, दरवाजा ऐसा कि पकड़ो तो हाथों में आ जाए। सीढि़यां ऐसी कि चढ़ते वक्त यह डर लगे कि अब टूटी कि तब, रास्ते में भी न जाने कब बंद पड़ जाएं। ऐसी कंडीशन के बाद भी रोडवेज की सभी बसेज 'फिट' हैं। यह हम नहीं, बल्कि ऐसा दावा रोडवेज के अधिकारी कर रहे हैं और यह बातें उनके आंकड़े भी बयां कर रहे हैं। अब ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या टूटी-फूटी और जर्जर बसों को ही फिट कहा जाता है। क्योंकि सड़क पर दौड़ने वाली रोडवेज बसेज में शायद ही कोई ऐसी बस हो जो क्00 परसेंट परफेक्ट हो। वरना सीट, शीशा, सीढ़ी, कहीं न कहीं तो हर बसेज में डिफेक्ट देखने को मिल ही जाएगा।

हर साल होता है टेस्ट

रोडवेज की बसेज सड़क पर कई सालों से दौड़ रही हैं। ऐसे में इनका हर साल फिटनेस टेस्ट कराया जाता है कि इसमें कहीं कोई डिफेक्ट तो नहीं है। मगर पैसेंजर्स के धक्के के बाद स्टार्ट होने वाली रोडवेज की बसें कागजों में बिल्कुल फिट हैं। रोडवेज में बस चला रहे ड्राइवर्स की मानें तो हर दूसरे दिन कोई न कोई बस को धक्का देकर स्टार्ट करना पड़ता है। कई बार कंप्लेन होने के बाद भी इस पर कोई एक्शन नहीं होता। सोर्सेज की मानें तो गोरखपुर से तमकुही, ठूठीबारी, पडरौना और वाराणसी रूट पर दौड़ने वाली कई बसेज अनफिट हो चुकी हैं और अब भी रोडवेज उन्हें धक्का लगवाकर काम चला रहा है और पैसेंजर्स की जान के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

भ् साल में एक भी अनफिट नहीं

रोडवेज की बसेज बिल्कुल फिट एन फाइन है। इसमें किसी तरह का कोई डिफेक्ट नहीं है। यह आंकड़े रोडवेज के हैं। इस मामले में जब एआरएम महेश चंद्र श्रीवास्तव से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि रोडवेज बसेज की फिटनेस हर साल चेक की जाती है। बिना फिटनेस टेस्ट पास किए कोई भी बस को सड़क पर दौड़ने की इजाजत नहीं है। मगर जब इस मामले में रियल्टी चेक किया गया तो ऐसी कई बसेज मिली, जिसमें कुछ न कुछ खामियां थी। अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर अधिकारी सही हैं, तो फिटनेस टेस्ट करने वाला आरटीओ कहीं न कहीं गोलमाल कर रहा है, वहीं अगर आरटीओ सही है तो गलती रोडवेज की है। अब असल गुनाहगार कौन है, यह देखने वाली बात है।

रेग्युलर मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी रोडवेज की

रोडवेज की बसेज का हर साल फिटनेस टेस्ट किया जाता है। इसके बाद उन्हें एक साल का फिटनेस सर्टिफिकेट इशु किया जाता है। आरटीओ एनफोर्समेंट डॉ। एके गुप्ता ने बताया कि फिटनेस के सभी मेजर्स को चेक किया जाता है, जिसके बाद उन्हें फिटनेस सर्टिफिकेट दिया जाता है। चूंकि वह एक साल के लिए वैलिड होता है इसलिए इस बीच अगर कोई फिटनेस में प्रॉब्लम होती है तो उसकी मॉनीटरिंग रोडवेज को करनी चाहिए। कई बसेज खराब रूट पर चलने की वजह से फिटनेस सर्टिफिकेट होने के बाद भी अनफिट हो सकती है। ऐसी कंडीशन में रोडवेज को ऐसी बसों पर बैन लगा देनी चाहिए और उन्हें किसी भी रूट पर नहीं भेजना चाहिए।

जो बसें फिट रहती हैं, उन्हें ही रोड पर भेजा जाता है। पिछले पांच साल में चेकिंग के दौरान एक भी बस अनफिट नहीं डिक्लेयर हुई हैं।

- महेश चंद्र श्रीवास्तव, एआरएम, रोडवेज

आरटीओ जांच के बाद एक साल का फिटनेस सर्टिफिकेट देता है। अगर बीच में बस की फिटनेस में कोई प्रॉब्लम आती है, तो इसकी मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी डिपार्टमेंट की है।

- डॉ। एके गुप्ता, आरटीओ एनफोर्समेंट

Posted By: Inextlive