बरेली में रबर फैक्ट्री में बनेगा चिडिय़ाघर
बरेली(ब्यूरो)। नेशनल हाईवे स्थित फतेहगंज वेस्ट में 23 वर्षों से बंद पड़ी रबर फैक्ट्री के दिन बहुत जल्द बहुरने वाले हैं। वर्तमान में किसी भुतहा हवेली सी नजर आने वाली इस फैक्ट्री को पर्यटन स्थल के रूप में संवारने की तैयारी पर काम होने के आसार नजर आ रहे हैं। फिलहाल फैक्ट्री का मामला कोर्ट में लंबित चल रहा है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले समय में इस भूमि पर एक शानदार चिडिय़ाघर बना दिखाई देगा, जो इस मार्ग से गुजरने वालों के अलावा अन्य लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होगा। साथ ही इससे राजस्व की प्राप्ति भी होगी। इसको लेकर वन विभाग के अधिकारियों ने सुझाव रखा है, जिस पर वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ। अरुण कुमार ने इसको लेकर प्रस्ताव प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। अधिकारियों का कहना है कि इसके पेपर्स का अवलोकन करने के बाद अग्रिम एक्शन लिया जाएगा।
फैक्टी्र की हिस्ट्री
रबड़ फैक्ट्री की हिस्ट्री 64 वर्ष पुरानी है। वर्ष 1958 में मुंबई से सेठ किलाचंद फतेहगंज पश्चिमी आए थे। उन्होंने यहां पर सिंथेटिक्स एंड केमिकल यानी रबर फैक्ट्री को स्टार्ट किया था। गवर्नमेंट और जिला प्रशासन ने इसके लिए माधोपुर, माली और रुकमपुर गांव की करीब 17 सौ एकड़ भूमि को अधिग्रहीत करवाया था। इस भूमि को 3.20 लाख रुपये में 90 वर्ष की लीज पर सेठ को कंडीशनल बेसिस पर सौंपा गया था। शर्त यह थी कि इस पर इस पर इंडस्ट्रियल एक्टिविटीज बंद होते ही लैँड पर फिर सरकार काबिज हो जाएगी।
सेठ किलाचंद ने फैक्ट्री चलाने के लिए विभिन्न बैँक्स से 147 करोड़ रुपए लोन लिया था। 23 वर्ष पहले 1999 में फैक्ट्री लॉस होने के कारण बंद कर दी गई थी। इस बीच बीएसएफ आदि ने फैक्ट्री की खाली भूमि प्रशासन से ले ली। इससे अब कुल 1281 एकड़ जमीन फैक्ट्री के कब्जे में बची है। इसके बंद होने के बाद तमाम कर्मी सडक़ों पर आ गए थे। अभी भी उनके ड्यूज पेंडिंग हैं। मंत्री संतोष गंगवार ने किसी तरह उनका ईपीएफ भुगतान शुरू कराया था।
बैैठक में किया गया मंथन
संडे की शाम बैठक में वन विभाग के अधिकारियों ने वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ। अरुण कुमार को यहां पर जू स्थापित करने का सुझाव दिया। ऑफिसर्स का कहना था कि रबड़ फैक्ट्री की हजारों एकड़ लैंड वर्तमान में खाली पड़ी है। यहां अक्सर बाघ, बाघिन, तेंदुआ, हाथी जैसे जानवर भटक कर पहुंच जाते हैं। यदि यहां पर जू इस्टेब्लिश कर दिया जाए तो यह एक अच्छा खासा पर्यटन स्थल बन जाएगा, जिससे रेवेन्यू तो मिलेगा ही। इसके अलावा क्षेत्र के कई बेरोजगारों को रोजगार भी मिलेगा। इस पर मंत्री ने अधिकारियों से प्रस्ताव बनाने को कहा। इसके अलावा मयूर वन चेतना केंद्र को भी विस्तार देने के लिए रूपरेखा तैयार करने के निर्देश दिए। बैठक में मुख्य वन संरक्षक ललित वर्मा, वन संरक्षक जावेद अख्तर, डीएफओ समीर कुमार, एसडीओ एसके अमरेश, रेंजर वैभव चौधरी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी रोहित सिंह, पर्यावरण अभियंता शशि बिंदकर आदि उपस्थित रहे।
फैक्ट्री का डिस्प्यूटेड मैटर है, जो फिलहाल कोर्ट में पेंडिंग चल रहा है। उसके पेपर्स का अवलोकन किया जाएगा। उन्हें देखने के बाद यदि संभावनाएं बनती हैं तो आगे की कार्रवाई की जाएगी। अभी इसको लेकर सुझाव प्रस्तुत किया गया है।
ललित वर्मा, मुख्य वन संरक्षक