Bareilly: इलेक्शन में यूथ का कम होता पार्टिसिपेशन कंसर्निंग टॉपिक है. इसके लिए इलेक्शन कमीशन ही नहीं तमाम एनजीओ अवेयरनेस कैंपेन चला रहे हैं. संडे को पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज पीयूसीएल ने इस बारे में एक वर्कशॉप रखी. इसमें यूथ के साथ राइट टु रिकॉल और राइट टु रिजेक्ट विषय पर डिस्कशन हुआ. इस दौरान यूथ के वोटिंग से दूर रहने की तमाम वजह सामने आईं.


Present right to reject is not enoughवर्कशॉप में आए मयंक अग्रवाल स्टूडेंट हैं। वह कहते हैं कि वोटर्स को फिलहाल जो राइट टु रिजेक्ट मिला है, वह इनफ नहीं है। वास्तव में यह ऑप्शन ईवीएम में दिया जाना चाहिए.  एडवोकेट अमिता वर्मा ने कहा कि राइट टु रिजेक्ट के लिए परसेंटेज फिक्स होने चाहिए। उस परसेंटेज तक रिजेक्शन वोट मिलने पर चुनाव दोबारा कराया जाना चाहिए। इससे ही लोकतंत्र में यूथ की दिलचस्पी बढ़ पाएगी।Right to recall से खत्म होगी dictatorship
एडवोकेट यशपाल सिंह कहते हैं कि पब्लिक के पास राइट टु रिकॉल का अधिकार होने से नेताओं की डिक्टेटरशिप खत्म हो जाएगी। नेता चुनाव के समय पब्लिक से तमाम वादे करते हैं पर कुर्सी मिलने के बाद सब भूल जाते हैं। राइट टु रिकॉल के बाद ऐसा करने से पहले हजार बार सोचेंगे। वहीं डॉ। यतेंद्र कहते हैं कि जिस नेता क ो जनता रिजेक्ट कर दे, उसे दोबारा चुनाव लडऩे का मौका भी नहीं दिया जाना चाहिए। वर्कशॉप में डॉ। जावेद अब्दुल वाजिद, डॉ। साधना अग्रवाल, टीडी भास्कर आदि मौजूद रहे।

 

Posted By: Inextlive