नवरात्र में कन्या की आयु के अनुसार करें पूजन
बरेली (ब्यूरो)। शारदीय नवरात्र की दुर्गाष्टमी 22 अक्टूबर गुरुवार को मनाई जाएगी। इस नक्षत्र में सरस्वती देवी के निमित्त बलिदान होगा। अन्न पूर्णिमा परिक्रमा रात्रि आठ बजे समाप्त होगी। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र सायं 6:44 बजे तक रहेगा। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पंडित राजीव शर्मा का कहना है कि इसके बाद श्रवण नक्षत्र लगेगा। श्रवण नक्षत्र में सरस्वती विसर्जन होगा। अष्टमी तिथि पर कन्या पूजन का विशेष महत्व है।
पूजन का महत्व
नवरात्र में शक्ति साधना, पूजन, अनुष्ठान आदि कन्या पूजन बिना अधूरे रहते हैं। कन्या साक्षात मां जगदंबा का रूप मानी जाती हैं। मान्यता है कि जिस घर में त्योहार, शुभ मांगलिक कार्य में देव पूजन के साथ कन्या पूजन भी होता है, वहां कभी भी दुख दरिद्रता नहीं आ सकती। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवराज इंद्र ने ब्रह्मा जी से भगवती देवी को प्रसन्न करने का उपाय पूछा तो ब्रह्मा जी ने देवी को प्रसन्न करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय कुमारी पूजन बताया, इसलिए नवरात्र में देवी मां को प्रसन्न करने के लिए कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका पूजन किया जाता है।
10 वर्ष तक की कन्याएं पूजनीय
कन्या पूजन के लिए 10 वर्ष तक की कन्याएं पूजनीय हैं। एक वर्ष अथवा उससे छोटी कन्या का पूजन उचित नहीं माना गया है। देवी भागवत पुराण के अनुसार दो से 10 वर्ष तक की कन्याओं को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इनके पूजन से अलग-अलग फलों की प्राप्ति बताई गई है।
त्रिमूर्ति : 3 वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति कहलाती हैं। इनका पूजन करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
कल्याणी : 4 वर्ष की कन्या कल्याणी कहलाती है। इनका पूजन करने से बुद्धि, विद्या, सुख की प्राप्ति होती है।
रोहिणी : 5 वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती हैं। इनका पूजन करने से बीमारी दूर होती है।
कालिका : 6 वर्ष की कन्या कालिका कहलाती हैं। इनके पूजन से शत्रुओं का नाश होता है।
चण्डिका : 7 वर्ष की कन्या चण्डिका कहलाती हैं। इनके पूजन से प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
शांभवी : 8 वर्ष की कन्या शांभवि कहलाती हैं।
दुर्गा : 9 वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती हैं। इनके पूजन करने से पूर्ण शुभफलों की प्राप्ति बताई गई है।
सुभद्रा : 10 वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं। इनके पूजन से सौभाग्य प्राप्ति के साथ समस्त कार्य सिद्ध होते हैं।
इस तरह करें कन्या पूजन
एक चौकी पर आसन बिछाकर गणेश, बटुक तथा कन्याओं को एक पंक्ति में बैठाकर भगवान श्रीगणेश का पांचोपचार पूजन करें। बटुकाये नम: से बटुक जी तथा कुमारिकायें नम: से कन्याओं का पूजन करें। इसके बाद हाथ में पुष्प लेकर कन्याओं की प्रार्थना करें।
यह भी संयोग है कि 15 अक्टूबर को नवरात्र का शुभारंभ चित्रा नक्षत्र, बुधादित्य और वैधृति योग में हुआ, जो उत्तम व शुभ रही। यह संयोग इस बार 30 साल बाद बना। समापन पर 23 को रवि योग है। इससे भी इस दिवस की शुभता बढ़ेगी। 23 अक्टूबर को सोमवार के दिन माता की विदाई होना शुभता का संकेत है। 22 को महाअष्टमी
22 अक्टूबर को सूर्योदयकालीन आश्विन शुक्ल अष्टमी में श्रीदुर्गाष्टमी मनाई जाएगी। इस दिन दुर्गाष्टमी का व्रत भी होगा। यह अष्टमी सूर्योदय बाद कम से कम एक घटी व्यापिनी तथा नवमी तिथि से युक्त होना चाहिए। अन्नपूर्णा परिक्रमा का समापन दिन में 3:59 बजे तक होगा। 23 अक्टूबर को आश्विन शुक्ल नवमी के दिन महानवमी होगी। इस दिन महानवमी व्रत के साथ हवन भी करें।