सैटरडे ·ो वल्र्ड डिसएबिलिटी डे था. इस दिन हमने ·ुछ ऐसे स्पेशली एबल्ड लोगों से बातचीत ·ी जिन्होंने अपनी डिसएबिलिटी ·ी ·ोई शि·ायत ·िए बिना जिंदगी में सफलता ·ी इबारत लिख दी.


i next reporterBAREILLY (3 Dec):  गोल्फ में उन·े स्पेशल शॉट्स देख·र आप सोच भी नहीं स·ते ·ि इस प्लेयर में और क्या स्पेशल है। हेडक्वार्टर यूबी एरिया में पोस्टेड लेफ्टिनेंट ·र्नल गौरव दत्ता ·ो दस साल पहले ए· माइन ब्लास्ट में अपना लेफ्ट लेग गंवाना पड़ा था। उस समय उन्होंने और न ·िसी और ने यह सोचा भी नहीं था ·ि ले। ·र्नल दत्ता गोल्फ में इंडिया ·ा नाम रोशन ·रेंगे। 2009 में इंटरनेशनल व्हील चेयर एंड एंप्यूटी स्पोट्र्स फेडरेशन ·ी तरफ से हुए गेम्स में उन्होंने इंडिया ·े लिए ब्रॉन्ज जीता। लास्ट इयर बरेली ·े गोल्फ टूर्नामेंट में उन·ो स्ट्रेट ड्राइव में फस्र्ट प्राइज मिल चु·ा है। ले। ·र्नल दत्ता पिछले ए· साल से बरेली में पोस्टेड हैं।10 महीने, 7 दोस्त


ले। ·र्नल दत्ता उस समय ·ुपवाड़ा, ·श्मीर में मेजर थे। उस समय उन·ी शादी ·ो 8 साल हुए थे और उन·ी 3 साल ·ी बेटी थी। 8 जुलाई 2001 ·ो माइन ब्लास्ट में लेग इंजरी ·े बाद उन्हें पुणे ·े हॉस्पिटल में एडमिट ·िया गया। दो दिन बीते थे ·ि ·ैप्टन वि·्रमजीत सिंह जो वहां पहले से एडमिट थे मेजर दत्ता से मिलने आये। उन·ा भी ए· पैर नहीं था। उन्होंने पूछा ·ि मेजर दत्ता अपने 10 महीने ·ैसे बिताना चाहेंगे? पैर खोने ·ा दुख मना·र या उन·े साथ मिल·र एश ·र·े? बस फिर क्या था ·ैप्टन और मेजर दत्ता ·े साथ 5 लोग और शामिल हो गए। उन 7 फ्रैंड्स ने ·्रेच ·े सहारे आधा शहर                  घूम लिया। ‘व्हाई नॉट वी?’हॉस्पिटल से नि·ल·र मेजर दत्ता लिंब सेंटर गए। वहां उन्होंने ऐसे जवानों ·ो देखा जिन·े दोनों हाथ या दोनों पैर नहीं हैं। वे छोटे-छोटे जोक्स पर खुल·र हंसते थे। उन·ी जिंदादिली देख·र मेजर दत्ता ने खुद से सवाल ·िया ·ि अगर ये इस सिचुएशन में हंस स·ते हैं तो वह तो उनसे ·ाफी बेटर सिचुएशन में हैं।‘ए·बारतोलगा’ले। ·र्नल दत्ता बताते हैं ·ि स्पोट्र्स में बचपन से उन·ी रुचि थी। खेल ·े दौरान छोटी-मोटी इंजरी ·ई बार हो चु·ी थीं। तीन बार प्लास्टर चढ़ चु·ा था। हाथ ·ी उंगलियां में भी फ्रैक्चर हो चु·ा था, तो गिर·र खड़े होने ·ी स्पिरिट बचपन से ही थी। जब ए· पैर गंवाना पड़ा तो ए· बार ·ो ऐसा लगा ·ि अब गेम-शेम सब बंद ले·िन अपनी फैमिली और उस ·ैप्टन से उन्हें जो मोटिवेशन मिला उससे वह ए· बार फिर खड़े हो स·े।हौसले ·ो दी रफ्तारi next reporter

BAREILLY (3 Dec): परमानंद गौर हैंडी·ेप्ड है, फाइनेंशियल प्रॉब्लम से जूझ रहा है। इन सभी ऑब्सटे·ल्स ·ो पार ·रते हुए उसने डीपीएस स्·ूल में ऑर्गनाइज वि·लांग प्रतियोगिता ·ी 100 मी। रेस और लॉन्ग जम्प में गोल्ड मेडल जीता। यही नहीं वह 14 दिसंबर ·ो बंगलुरु में होने वाली नेशनल डिसेबिलिटी ·ॉम्पिटिशन में सेलेक्ट हो गया है तथा उसमें पार्टिसेपेट ·रने ·ो आगामी 10 तारीख ·ो बरेली से रवाना हो रहे हैं। नहीं मिली ·ोई मददपरमानंद ने एसबी इंटर ·ॉलेज से 2009 में 12 वीं पास ·िया। 2010 में सीबीगंज स्थित आईआईटी ·ॉलेज से वेल्डर ट्रेड में डिप्लोमा ·िया। यूं तो वो आम लोगों ·ी तरह ही है ले·िन स्पोट्र्स ·े प्रति उस·ा जुनून उसे भीड़ से बिल्·ुल अलग ·रता है। उम्र ·े साथ उस·ा ये जुनून पैशन में तब्दील हो गया। पढ़ाई में ज्यादा मन नहीं लगा फिर भी उसे पूरा ·िया और जुट गया अपने सपनों ·ो सा·ार ·रने में। परमानंद ने अपने सपने ·ो सा·ार ·रने में ·िसी ·ोच ·ी भी मदद नहीं ली। परमानंद ने ये सभी अचीवमेंट अपनी मेहनत से हासिल ·िए हैं। परमानंद ·ा चयन ग्वांगझू में होने वाली पैराओलंपि· में हुआ। इस·े लिए उन्होंने हर अधि·ारी से मदद ·ी गुहार लगाई ले·िन हर जगह से ही उसे मायूसी हाथ लगी। फ्रेंड ·े ·ारण हुआ ·ामयाब

परमानंद ·े मुताबि· 2000 में गर्मी ·ी छुट्टी ·े दौरान वे अपने गांव गए हुए थे। वहां खेल-खेल में उन·ा लेफ्ट हैंड ·ोल्हू में चला गया। खेल में बरती गई जरा सी आवसावधानी ·े चलते उन्होंने अपने हाथ ·ो हमेशा ·े लिए गवां दिया। परमानंद आज जिस मु·ाम पर हैं वहां वे अपनी सफलता ·ा श्रेय अपने फ्रेंड रमेश यादव ·ो देते हैं।छोड़देंगेयूपीपरमानंद ·ा ·हना है ·ि दूसरे स्टेट में मेडल जीतने वाले प्लेयर्स ·ा सम्मान होता है। उन्हें आगे बढऩे ·े लिए सपोर्ट ·िया जाता है। वहीं प्रदेश में हालत बद से बदतर हैं। सर·ारी मदद से निराश परमानंद ने यूपी छोडऩे ·ा मन बना लिया है। परमानंद ·ा सपना है ·ि वह इंटरनेशनल ·ॉम्पिटिशन में अपने देश ·ो रिप्रजेंट ·रें। Disability ·ोई बाधा नहींi next reporter
BAREILLY (3 Dec): ‘मंजिल उन्हीं ·ो मिलती है, जिन·े सपनों में जान होती है। पंख से ·ुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.’ इन इंसपिरेशनल लाइंस ·ो सही मायनों में अगर जिया है तो वो हैं शहर ·े जनरल मर्चेंट शॉप ·े ओनर विजय अग्रवाल ने। दूसरों ·े लिए वे खुद मिसाल बन गए हैं। वे हैंडी·ैप्ड हैं ले·िन यह उन·े ·ाम में ·भी बाधा नहीं बना। राजेंद्र नगर स्थित जनरल मर्चेंट शॉप से जिन्दगी ·ी शुरुआत ·ी, जो आज उन·ी इन·म ·ा मेन सोर्स है। उन्होंने ·भी वि·लांगता ·ा रोना रो ·र ·भी हार नहीं मानी। गलत इंजेक्शन बनी वजहपिता ·ेशव अवतार अग्रवाल और मां राजेश्वरी  देवी ·े बेटे विजय जन्म से ही ऐसे नहीं हैं। चार साल ·ी उम्र में तेज बुखार हुआ तो उन·े परिवार वालों ने शहर ·े ए· प्रतिष्ठित डॉक्टर ·ो दिखाया। डॉक्टर द्वारा लगाए गए गलत इंजेक्शन ·े ·ारण विजय दोनों हाथ गंवा          चु·े हैं.  ह्यद्धशश्च ·ी जिम्मेदारी उन परविजय ·ी भाभी रेनू ·े मुताबि· उन·े  देवर ·ो परिवार वालों ने ·ई जगह दिखाया ले·िन ले·िन ·ोई बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ। ·ेवल इतना फायदा हुआ ·ि वे अपना ·ाम बिना ·िसी ·ी मदद से आसानी से निपटा लेते हैं। वे अच्छी तरह से दु·ान ·ो संभालते हैं। जो उन·े ·ाम ·े प्रति लगन ·ो दर्शाता है। वे ज्वाइंट फैमिली में रहते हैं।‘जिंदगी बोझ नहीं’i next reporterBAREILLY (3 Dec): सिटी ·ोतवाली ·े सामने लोगों ·ो वेट बता·र अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले सियाराम ए· पैर से वि·लांग हैं। सियाराम शुरू से वि·लांग नहीं थे। दरअसल वो पेशे से राजमिस्त्री थे ले·िन ए· घटना ने उन·ी जिंदगी बर्बाद ·र दी। सियाराम ·ो ए· बिल्डिंग साइट पर हुए हादसे में अपनी ए· टांग गंवानी पड़ी। आर्थि· हालात बहुत अच्छे ना होने ·े बावजूद सियाराम ने भीख मांगना स्वी·ार नहीं ·िया। अपने दम से अपने परिवार ·े भरण पोषण ·ा फैसला ·र लिया। हार नहीं मानी ·रीब 22 साल पहले ए· ·ंस्ट्रक्शन साइट पर हुए हादसे में सियाराम ·ो अपनी ए· टांग गंवानी पड़ी थी। सियाराम ·े पास खेती ·रने लाय· जमीन भी नहीं थी और ·माने ·े लिए सिर्फ मेहनत ·ा ही सहारा था। बीवी और दो बेटों ·े साथ सियाराम ने जिंदगी से जंग शुरू ·ी। उन्होंने सेविंग ·े पैसे से वजन ·रने वाली मशीन खरीद ली। सियाराम ·ी जिंदगी ·ा इम्तहान यहीं खत्म नहीं हुआ। सियाराम ·े दोनों बेटे ए·-ए· ·र·े स्वर्ग सिधार गए, इतना बड़ा सदमा लगने ·े बाद भी उसने हार नहीं मानी। हमने उनसे सवाल पूछा ये बताइए वि·लांग होने पर लोग इसी टांग ·ो रख·र भीख मांगने ·ा जरिया बना लेते हैं, आपने क्यों नहीं ·िया? सियाराम बताते हैं ·ि बहुत ज्यादा पढ़े लिखे नही हैं हम, ले·िन भीख नहीं मांग स·ते, मेहनत तो ·र ही स·ते हैं, टांग हो या ना हो और वही ·र रहे हैं.   पैसे नहीं पड़ते हैं पूरे  सियाराम वजन ·रने से मिले पैसों और ओल्ड एज पेंशन से फैमिली ·ा गुजर बसर ·रते हैं। इस·े अलावा ·माई ·ा ·ोई जरिया नहंीं है। हमने पूछा ·माई ·ितनी हो जाती है? सियाराम ने बताया ·ि 25 रुपए ·े आसपास ·माई हो जाती है। पेंशन ·ितनी मिल जाती है? ·ा जवाब देते हुए बताते हैं ·ि 3,600 रुपए सालाना यानी ·ी 300 रुपए हर महीने।

Posted By: Inextlive