एस, वीहाइंड एव्री विमेन दियर इज ए मेन ..
BAREILLY:
तुम ने ताकत दी, तो हौसलों को आसमां मेरे मिला, अब लफ्जों में कैसे कहूं शुक्रिया तेराहर किसी की सफलता के पीछे उसके साथ चलने वाले हमसफर की खास भूमिका होती है। बात यदि औरतों की सफलता की करें, तो समाज का सकारात्मक चेहरा इन्हें आगे बढ़ाने में मददगार बनता है। चाहे वह चेहरा पिता का हो, या फिर पति का। आज इंटरनेशनल वीमेन्स डे पर शहर की तीन रोल मॉडल्स की कहानी आई नेक्स्ट आपसे साझा कर रहे हैं कि कैसे पुरुष एक औरत की जिंदगी में पॉजिटिव रोल निभाता है और कदम दर कदम साथ चलकर हमसफर को सफलता की सीढि़यां चढ़ने में मदद करता है। पति की वजह से बन पायी वकीलआधी आबादी को पूरी आजादी भी तभी मिल सकती है, जब परिवार उसके साथ हो। शहर की जानी-मानी फैमिली काउंसलर लॉयर डा। हरिंदर कौर चड्ढा महिलाओं की सफलता का ये मूल मंत्र बताते हुए खुद को लकी कहती हैं। इंटरमीडिएट की स्टूडेंट रहते हुए शादी के बंधन में बंध गई हरिंदर ने अपने पति के सहयोग से पढ़ाई पूरी की। ये कहती हैं कि ग्रेजुएशन से लेकर एलएलएम तक की पढ़ाई के दौरान मेरे तीन बच्चे थे। परिवार बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारियां बढ़ी, लेकिन मेरे हसबैंड सुभाष ने कभी मुझे कमजोर नही पड़ने दिया। आज उन्हीं की बदौलत सोसाइटी में मेरी अलग पहचान हैं।
पिता के सपने और पति के हौसले ने बनाया चैंपियन क्ब् साल की थी, जब हॉकी स्टिक पकड़कर स्पोर्ट हॉस्टल लखनऊ में एडमिशन मिला था। आज ब्7 साल की हो चुकी हूं। उम्र के हर पड़ाव और पहलुओं को देखूं तो लगता है कि हर सफल महिला के पीछे एक पुरुष का हाथ होता है। इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर रही रजनी दीक्षित अपनी सक्सेस स्टोरी कुछ यूं बयां करती हैं। रजनी अपने पिता पीके सिंह और पति मनोज दीक्षित को अपनी सफलता की अहम कड़ी मानती हैं। अपने परिवार के बारे में कहती हैं कि हॉकी को पेशेवर रुप से अलविदा कह चुकीं हूं। लेकिन मेरे पति मनोज दीक्षित और दोनों बेटे मुझे आज भी चैंपियन फील कराते हैं। बताते चलें कि क्98भ् में हुए फोर नेशन गेम्स में इंडिया के लिए सिल्वर मेडल और क्988 में बीजिंग इंटरनेशनल कप में ब्रोंज मेडल जीतने वाली हॉकी प्लेयर रजनी दीक्षित ने हॉगकांग में हुए एशिया कप व क्989 और क्99क् में हुए इंदिरा गांधी इंटरनेशनल गोल्ड कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। पिता के विश्वास ने अधिकारी बना दियामेरा गांव तिब्बत के बॉर्डर पर बसा हुआ है, जहां से स्कूल बहुत दूर था। पिताजी अनपढ़ थे, लेकिन उन्होंने मुझे पढ़ाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। बरेली के डिप्टी बेसिक शिक्षा अधिकारी विशू गव्र्याल अपनी सफलता के पीछे पिता और पति का बहुत बड़ा हाथ मानती हैं। उन्होने बताया कि क्98ख् में पहली पोस्टिंग बाल विकास परियोजना में सुपरवाइजर के रूप में हुई। क्98ब् में पति एमएस गव्र्याल से शादी हो गई। जो बीएसएनएल में कार्यरत थे। जॉब के चलते पति एमएस गव्र्याल और मुझे अलग-अलग भी रहना पड़ा, इस दौरान तीन बच्चों को पढ़ाने लिखाने की सारी जिम्मेदारी में उन्होंने एक मां का रोल अदा किया। लड़कियां अपने पिता और पति के विश्वास के बल पर बहुत आगे जा सकती हैं।