दूसरों की मंजिल से अपनी राह आसान
-मिलक की रहने वाली महिला ई-रिक्शा चलाकर कर रही है तीन बच्चों का भरण-पोषण
-तीन साल पहले पति की हो गई थी मौत, बच्चों को अच्छी एजुकेशन के साथ उनकी हर जरूरत कर रही पूरा बरेली: दूसरों की मंजिल से अपनी राह आसानपढ़कर चौंक गए न लेकिन यह सच है। मिलक के साहूनगर की रहने वालीं शारदा कुछ ऐसा ही कर रही हैं जिससे मंजिल पर कोई और पहुंच रहा है, लेकिन उनकी आसान हो रही है। असल में शारदा एक ई-रिक्शा ड्राइवर हैं जो पैसेंजर्स को उनकी मंजिल तक पहुंचाती हैं। वह मीरगंज की गलियों और हाईवे पर बेखौफ होकर ई-रिक्शा चलाती हैं और किराए से जो रुपए मिलते हैं उससे वह अपना और अपने तीन बच्चों का भरण-पोषण कर रहीं हैं। साथ ही उन्हें प्राइवेट स्कूल में एजुकेशन भी दिला रही हैं जिससे उनके बच्चे भी सक्षम होकर समाज में सिर उठाकर चल सकें।पति की हो चुकी मौत
शारदा ने बताया कि 3 साल पहले उनके पति बब्लू की मौत हो गई थी जिससे वह दर-दर की दर-दर ठोकरें खाने को मजबूर हो गईं। साथ ही एक बेटी ज्योति 12 साल और दो बेट सत्यम 10 साल और हनी 6 साल की जिम्मेदारी भी उन पर आई गई लेकिन उन्होंने इसके बाद भी हार नहीं मानी। पहले तो उन्होंने दूसरों के घरों में काम करना शुरू किया, लेकिन घूरने वाली नजरों से तंग आकर उन्होंने काम छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने खुद का काम करने की ठानी और ई-रिक्शा चलाना शुरू कर दिया।
फाइनेंस कराया ई-रिक्शा शारदा देवी ने बताया, मोहल्ले के कुछ लोगों ने डेली रोजी-रोटी कमाने के कुछ काम बताए, लेकिन वह काम उनको पसंद नहीं आए। इसके बाद उन्होंने अपने मन की सुनी और ई रिक्शा चलाने की ठानी। उन्होंने ई-रिक्शा फाइनेंस कराया और उसको चलाने की ट्रेनिंग भी ली। इस तरह से वह आत्मनिर्भर बनकर परिवार चला रही हैं। मदद की दरकार शारदा का कहना है कि वह अपने बच्चों को पढ़ाकर अच्छी नौकरी दिलाना चाहती है, लेकिन इस सपने के साथ शारदा का मन थोड़ा मायूस भी हो जाता है। शारदा कहती हैं कि कर्ज करके 80 हजार रूपये का रिक्शा लिया उसके बाद कमाई का जरिया बन गया। उन्हें सरकार से मलाल भी है कि आज तक सरकार और प्रशासन ने उनकी कोई सहायता नहीं की है। महिलाओं को संदेशवहीं, ग्रामीण शारदा की इस हिम्मत से काफी खुश नजर आ रहे हैं। लोगों का कहना है कि महिलाओं को कभी भी समाज में दबकर नहीं रहना चाहिए और बेखौफ समाज में सिर उठाकर चलना चाहिए। शारदा उन महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं जो समाज में आदमियों से आगे निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती हैं।