Bareilly:वैसे शहर-ए-बरेली का नाम जुबां पर आते ही जेहन में गंगा-जमुनी तहजीब और कारोबार की बातें सबसे पहले उभरती है. पर बीते कुछ दिनों में कुछ शरारती तत्वों ने शहर की फिजा को जरूर अशांत कर दिया था. लेकिन जिंदादिल शहर ऐसे लोगों को करारा जवाब देकर फिर खुशहाली की राह पर चल पड़ा है. हालांकि शहर के सफर में कई ब्रेकर्स हैं. बड़े शहरों से कदमताल करने और विकास के फ्रंट पर कई चैलेंजेज सामने हैं. आईनेक्स्ट ने शहरवासियों के रोजाना की जिंदगी से जुड़ी कुछ ऐसी ही बेसिक प्राब्लम्स की पहचान की है जिनसे हम और आप रोज जूझते हंै. इन्हीं में से एक है सड़कों पर आवारा जानवरों का राज. घर से निकलकर सड़क पर आते ही कब किसी जानवरों के झुंड से सामना हो जाए कहा नहीं जा सकता. कितने लोग इन आवारा जानवरों के शिकार भी बन चुके हैं पर जिम्मेदार हैं कि नींद से जागने को तैयार नहीं. एक रिपोर्ट.


नगर आयुक्तजी ये शहर है जंगल नहीं!केस 1 इस्लामिया मार्केट में ऑटो पार्ट का बिजनेस करने वाले देवेन्द्र जोशी बताते हैं कि बीते दिनों चौपला के पास बीकानेरी के सामने से आ रहा था। सुबह के 9:30 बजे का समय था। तभी सामने से सड़क पर ढेरों भैंसें आ गईं। एक भैंस ने मेरी बाइक पर टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जोरदार थी कि मैं उछलकर दूर गिर गया। बाएं हाथ में डेढ़ मंथ के लिए प्लास्टर चढ़ गया। केस 2


पेशे से डेंटिस्ट अंकित बताते हैं कि पीलीभीत हाईवे पर दोपहर में निकलना बहुत मुश्किल होता है। दोपहर में काफी ज्यादा भैंसों का झुंड दूर तक रोड घेरे रहता है। मैं बाइक से घर वापस आ रहा था कि दो भैंसें आपस में भिड़ गईं। इस लड़ाई में एक भैंस मेरी बाइक पर चढ़ गई, जिसमें मुझे कई जगह चोटें लगीं। यह जानलेवा भी हो सकता था। इस दिशा में हम कार्ययोजना तैयार कर रहे हैंै। जल्द ही योजना को अमली जामा पहनाया जाएगा। इसके बाद बड़े पैमाने पर शहर में अभियान चलाकर आवारा पशुओं की धरपकड़ की जाएगी।  - उमेश प्रताप सिंह, नगर आयुक्त मेरी दुकान के सामने ही जमावड़ा रहता है। स्कूली बच्चों और महिलाओं को ये आवारा पशु टारगेट करते हैं। आवारा पशुओं को बाहर भिजवाना चााहिए। - दर्शन लाल भाटिया, व्यवसायी पंजाबी मार्केटविकास भवन वाली रोड पर निकलना मुश्किल होता है। रामपुर गार्डन से बढ़ी संख्या में भैंसों का झुंड निकलकर बेसिक शिक्षा के ऑफिस के बाहर तालाब में जाती है। - कमल भाटिया, व्यवसायीशहर की हर सड़क पर आवारा पशु जरूर मिलते हैं। स्कूल से लौटते हुए ऐसा होता है कि भैंसों के झुंड से बचते हुए आना पड़ता है। रोकथाम के लिए शहर में कुछ किया भी नहीं जाता है। - अदिति अग्रवाल, स्टूडेंट हम स्कूल तो सुबह जल्दी जाते हैं, मगर वापसी दोपहर में होती है। कालीबाड़ी की पूरी रोड पर आवारा पशुओं की वजह से जाम की स्थिति रहती है। निकलना मुश्किल होता है।  - अवि खन्ना, स्टूडेंटमैं वीरभट्टी में रहता हूं। यहां आवारा कुत्तों व पशुओं का आंतक रहता है। कई बार तो कुत्ते स्कूली बच्चों को दौड़ा लेते हैं। आवारा पशुओं से सड़क पर बुजुर्गो का निकलना मुश्किल है। - दिनेश, नौकरीपेशासंजयनगर में आवारा पशुओं की समस्या बड़ी है। लगभग हर गली में कुत्तों का राज है। छोटे बच्चों का बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। निगम उदासीन बना हुआ है। - अभिषेक, नौकरीपेशा नहीं चला बड़ा अभियान निगम सोर्सेज के अकॉर्डिंग 1996 में मुख्य नगर अधिकारी बाबा हरदेव सिंह के समय में आवारा पशुओं के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया गया था। उसके बाद अगर छोटे-मोटे अभियान को छोड़ दें तो नगर निगम की तरफ से कोई खास पहल नहीं हुई। हालांकि, मेयर डॉ आईएस तोमर के कार्यकाल में आवारा पशुओं पर अभियान चले थे, मगर इन अभियानों को भी 10 साल से ज्यादा होने को हंै। 2010 में मेयर सुप्रिया ऐरन के कार्यकाल में गांधी उद्यान पर आवारा कुत्तों की नसबंदी और बंदर पकड़ो अभियान श्रीनाथ पुरम कॉलोनी में चलाया गया था। तत्कालीन बोर्ड से इस अभियान के लिए 2.5 लाख का बजट जारी किया गया था। पूर्व नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि अभियान के लिए मथुरा से टीम बुलाई गई थी।


ये दो केस शहर की सड़कों की हालात बयां करने के लिए काफी हैं.  बरेलिंयस के लिए आवारा जानवर भले ही बड़ी समस्या हों पर नगर निगम चैन की नींद सो रहा है। विभाग के रवैए का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इनसे निपटने के लिए रणनीति और संसाधन दोनों नदारद हैं। वैसे जिम्मेदार ठीकरा बजट पर जरूर फोड़ रहे हैं पर हकीकत जुदा है। नहीं है कोई रिकॉर्ड  नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में शहर के आवारा पशुओं का डाटाबेस तैयार किया जाता है। इस डाटा बेस से निगम के स्वास्थ्य विभाग और संबंधित अधिकारी यह तय करते हैं कि किस क्षेत्र में समस्या कितनी बड़ी है और समस्या से निपटने के लिए कैसा अभियान चलाया जाना चाहिए। बता दें कि निगम के पास आवारा जानवारों का डाटाबेस ही नहीं है। ऐसे में अभियान चले तो कैसे। दस्ता का अता-पता नहीं आवारा पशुओं को काबू में रखने के लिए नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में स्वास्थ्य अधिकारी के अंडर कैटल कैचिंग दस्ता होता है। बरेली नगर निगम में भी ऐसा दस्ता 10 साल पहले था, जिसमे 2 इंस्पेक्टर और 5 कर्मचारी थे। पूर्व नगर स्वास्थ्य अधिकारी रवि शर्मा ने बताया कि चूंकि निगम की तरफ से लंबे समय से अभियान नहीं चलाया गया इसलिए सभी कर्मचारियों को दूसरे विभागों से अटैच कर दिया गया है। निगम सोर्सेज के मुताबिक, 2 कर्मचारी स्वास्थ्य विभाग, 3 कर्मचारी निर्माण विभाग और 2 कर्मचारी कर विभाग में ट्रांसफर कर दिए गए थे। ट्रॉली फांक रही धूल

मेयर डॉ। आईएस तोमर के पिछले कार्यकाल में इंदौर से कैटल कैचिंग के लिए पिंजरानुमा ट्रॉली खरीदी की गई थी। हालांकि, शहर में घूम रहे बड़ी संख्या में आवारा पशुओं से निपटने के लिए ये प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा जैसा ही था। फिलहाल ट्रॉली गांधी उद्यान के पीछे स्टोर में धूल फांक रही है।  शहर में सिर्फ 4 डॉग!वैसे तो आपको हर गली-मोहल्ले में कुत्तों की फौज दिख जाएगी। लेकिन नगर निगम के  आंकड़े की मानें तो शहर में सिर्फ चार डॉगी हैं। असल में डॉगी रखने के लिए नगर निगम में रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। इसकी फीस महज 10 रुपए है। ऐसा न करने वाले पर सौ रुपए तक फाइन का प्रावधान है। यही नहीं फाइन न चुकाने पर निगम ऐसे डॉगी को अपने कब्जे में ले सकता है। हालांकि निगम में सिर्फ 4 डॉग का रजिस्टर्ड हैं। हालांकि सोर्सेज मानते हैं कि शहर में 2,000 से ज्यादा डॉगी हैं। कांजी हाउस की कंडीशन बदहाल नगर निगम कैटल कैचिंग अभियान के तहत पकड़े गए आवारा पशुओं को रखने की व्यवस्था कांजी हाउस में करता है। बारादरी थाने के पास कांजी हाउस है जो कि जर्जर  है। सोर्सेज के मुताबिक, कांजी हाउस में पिछले 10 साल से जानवर नहीं रखे गए हैं।
ठेका पर चलता है काम
पूर्व नगर स्वास्थ्य अधिकारी रवि शर्मा का स्ट्रेट जवाब था कि निपटने के लिए हमारे पास कोई रणनीति नहीं है। आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए हम प्राइवेट फर्म को ठेका देते हैं। ये नाजुक विषय है। निगम के सामने एक समस्या तो ये भी है कि अगर आवारा पशुओं को पकड़ें तो छोड़े कहां। शहर के 5 किमी के बाद गांव शुरू हो जाता है। हम नए सिरे से रणनीति तैयार कर रहे हैं। इसके लिए शहर में जल्द ही अभियान चलाए जाएंगे। - डॉ आईएस तोमर, मेयर  मैंने अभी ज्वाइन किया है। शहर में आवारा पशुओं की समस्या बड़ी है। पहले क्या हुआ इसके लिए मैं कुछ नहीं कह सकता हूं। समस्या से निपटने के लिए कार्ययोजना तैयार कर रहे हैं। हालांकि, बजट की बड़ी समस्या है। - मातादीन, नगर स्वास्थ्य अधिकारी  निगम की तरफ से सार्थक अभियान चलाया नहीं गया, मगर जिस क्षेत्र में चलाया गया वहां उस अभियान के तुरंत बाद बंदरों का आंतक बढ़ कैसे जाता है। जिसका सीधा उदाहरण श्रीनाथ पुरम कॉलोनी का है।  -विकास शर्मा, सभासद दल के नेता, नगर निगम Posted By: Inextlive