वेब सीरीज की लत, बच्चों का बिगाड़ रही भविष्य
बरेली ब्यूरो। अगर आपके घर में भी बच्चों को फोन पर वेव सीरीज देखने का शौक है और वह आपसे वेब सीरीज के डायलॉग की तरह बात करता है तो अलर्ट हो जाइए इससे आपके बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर हो सकता है और वह गालियां देना भी सीख सकता है।
काउंसिलिंग के दौरान परिजन डॉक्टर को बता रहे हैं पता नहीं हमारा बच्चा कहां से भद्दी-भद्दी गालियां देना सीख गया है। घर का तो कोई भी व्यक्ति बातचीत करते समय अभद्र भाषा का इस्तेमाल नहीं करता है। बच्चों के बर्ताव से शर्मिंदगी होती है। इसके अलावा झूठ बोलना, चोरी करना, गुस्सा तो ज्यादातर बच्चों के बर्ताव में शामिल हो गया है। इस तरह की लेकर कई परिजन बच्चों की काउंसलिंग कराने के लिए मनोचिकित्सक के पास पहुंच रहे हैं।
लॉक डाउन में बढ़ा क्रेज
पिछले वर्ष जब कोरोना से दस्तक दी तो सभी स्कूल ऑफिस लॉकडाउन के लिए बंद कर दिए गए। ऐसे में बच्चों का रुझान मोबाइल फोन की तरफ ज्यादा हुआ। इन दिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म पर वेब सीरीज खूब आ रही हैं। कई फिल्मों में अंधाधुंध गालियों का इस्तेमाल किया जाता है। कोविड के चलते ऑनलाइन पढ़ाई जारी होने की वजह से बच्चे दिन भर मोबाइल, लैपटॉप से चिपके रहते हैं। अभी भी कई परिजन अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं। ऐसे में बच्चों को मोबाइल एडिक्शन हो गया है। वह पढ़ाई के बाद भी दिनभर मोबाइल, लैपटॉप में फिल्म देखते रहते हैं या फिर सोशल मीडिया पर नजरें गढ़ाये रहते हैं।
डॉक्टर के अनुसार कोरोना से पहले इस प्रकार के पूरे माह में एक से दो केस ही आते हैं लेकिन पिछले दो सालों में इसकी संख्या में बढोत्तरी हुई है। इस दौरान ओपीडी में आने वाले करीब 200 बच्चों में 50 बच्चे मोबाइल पर वेब सीरीज एडिक्शन का शिकार मिले हैं। मनपसंद चीज से दूर करने का भय दिखाएं
मनोचिकित्सकों का कहना है कि परिजनों को बच्चे के दुव्र्यवहार करने पर मारपीट नहीं करनी चाहिए। बल्कि, गालियां या दुव्र्यवहार करने का कारण खोजकर उससे दूर करना चाहिए। साथ ही उसे उसी चीज से दूर करने का भय दिखाना चाहिए, जो उसे सबसे ज्यादा पसंद हो। फिर चाहें टीवी का कार्यक्रम हो, खास खाने की डिश हो या फिर कुछ और।
ये है इलाज
ऐसे बच्चों का डॉक्टर तीन चरणों में पड़ताल करने के बाद इलाज करते हैं। पहला एटेंशन डिफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिस्ऑर्डर की जांच की जाती है। ये होने पर बच्चा एक जगह पर नहीं बैठता है और शैतानी करता रहता है। जबकि, दूसरा कंडक्ट डिस्ऑर्डर होता है। जिसमें बच्चा झूठ बोलता और चोरी करता है। दूसरे बच्चों से लड़ता है। इन दोनों डिस्ऑर्डर में दवाओं की जरुरत पड़ती है। ये नहीं होने पर काउंसलिंग की जाती है। काउंसलिंग भी ए, बी, सी और डी चरण में होती है।
मन कक्ष प्रभारी डॉ। आशीष के अनुसार कोरोना की दस्तक से पहले वर्ष 2018 में पूरे साल में करीब 15 से 20 केसेस बच्चों में आते थे, इन केसेस में स्कूलों के दौरान काउंसिलिंग में सामने आते थे लेकिन कोरोना के बाद से घरों से बच्चों के परिजन बिहेवियर चेसेंस की शिकायत लेकर आ रहे हैं हर माह करीब 7 से 12 केस वर्तमान में आ रहे हैं।
कई वेब सीरीज में गालियों का काफी इस्तेमाल हुआ है। इन्हें देखकर बच्चों का बर्ताव भी बदल रहा है। सोशल मीडिया भी बड़ी वजह है। साथ ही कोविड के चलते ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चे लंबे समय तक दोस्तों से नहीं मिल पाए। वहीं कोविड के बाद से ही इस प्रकार के डिस आर्डर से बच्चे ग्रसित मिले हैं।
डॉ। आशीष, मनकक्ष प्रभारी, जिला अस्पताल