Bareilly: हम 21वीं सदी में जी रहे हैं लेकिन डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की मेडिकल फैसिलिटीज आज भी 19वीं शताब्दी की याद दिलाती हैं. डॉक्टर्स की कमी बेड की कमी वेंटीलेटर नहीं डायलेसिस खराब. दूसरी ओर शहर की आबादी 9.6 लाख. आसपास के इलाकों से आने वाले पेशेंट्स अलग. खुद ही अंदाजा लगा लीजिए कि इतनी आबादी के लिए क्या ये सुविधाएं काफी हैं. बरेलियंस के लिए एफोर्डेबल कॉस्ट पर मेडिकल फैसिलिटीज अवेल करना फिलहाल किसी चैलेंज से कम नहीं.


डॉक्टर्स की भारी कमी बरेली डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल रीजनल सेंटर होने के बावजूद यहां न्यूरो फिजीशियन, न्यूरो सर्जन, यूरोलॉजिस्ट, एनेस्थिसिटिस्ट और साइकेट्रिस्ट नहीं है। जनरल फिजीशियन, ऑर्थोपेडिक, डेंटिस्ट, पीडिएट्रीशियन, कॉर्डियोलॉजिस्ट और पैथोलॉजिस्ट का एक-एक पद खाली है। अब अगर ओपीडी के आकड़ों पर निगाह डालें तो डेली एवरेज 3000 पेशेंट्स इलाज के लिए हॉस्पिटल आ रहे हैं, जिनमें 1100 नए पेशेंट्स होते हैं। इन्हें प्रॉपर ट्रीटमेंट मुहैया करना एडमिनिस्ट्रेशन के लिए टेढ़ी खीर से कम नहीं। स्ट्रेचर नहीं मिलते हॉस्पिटल में स्ट्रेचर की कमी है। अमूमन हर रोज तीमारदारों को गोद में पेशेंट्स को लेकर जाते हुए देखा जा सकता है। हॉस्पिटल में करीब 10 स्ट्रेचर हैं। मेन गेट से इंमरजेंसी और ओपीडी की दूरी ज्यादा होने से स्ट्रेचर की काफी जरूरत पड़ती है।5 गाइनेकोलॉजिस्ट नहीं


महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में 5 गायनेकोलॉजिस्ट की कमी है। आकड़ें बताते हैं कि औसतन हर महीने महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के लेबर रूम में 550 प्रसव होते हैं, मगर बच्चों के इलाज के लिए बाल रोग विशेषज्ञ यहां नहीं हैं। डायलेसिस यूनिट बस नाम की

डायलेसिस यूनिट बने तो बरसों बीत गए, कुछ शुरुआती महीनों को छोड़ दें तो पेशेंट्स को इसका फायदा नहीं मिला। ट्रेंड स्टाफ की कमी होने की वजह से डायलेसिस पेशेंट्स को खाली हाथ लौटना पड़ता है। एक्चुअली यूनिट चलाने के लिए लैब टेक्नीशियन और नैफ्रोलॉजिस्ट नहीं है। हालांकि कई दफा एडमिनिस्ट्रेशन ने पहल की मगर पॉजिटिव रिजल्ट नहीं निकला।बेड हैं नाकाफी सिटी की 9.6 लाख की आबादी पर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में सिर्फ 325 बेड की व्यवस्था है। रीजनल सेंटर होने के नाते हॉस्पिटल में पूरे डिस्ट्रिक्ट से पेशेंट पहुंचते हैं। हर नजरिए से बेड की संख्या नाकाफी है। अगर महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की बात करें तो वहंा 110 बेड की व्यवस्था है। जबकि औसतन 8,000 पेशेंट्स महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में इलाज के लिए पहुंचते हैं। वेंटीलेटर भी नहीं हैकैंसर पेशेंट के लिए सिटी में केयर यूनिट नहीं मौजूद है। कैंसर पेशेंट्स को इलाज के लिए लखनऊ, मेरठ के हायर सेंटर्स पर ही रेफर कर दिया जाता है। इसके अलावा पल्मोनरी डिपार्टमेंट भी यहां नहीं है। वहीं सेप्टिक वार्ड की कंडीशन खराब है। सीरियस कंडीशन में हॉस्पिटल पहुंचने वाले पेशेंट्स के लिए वेंटीलेटर की फैसिलिटी नहीं है। हाल में ही एक बच्चा जिसे सांप ने काट लिया था, उसे वेंटीलेटर न होने की वजह से लखनऊ एसजीपीआई रेफर किया गया। मगर बेहद गरीब होने के कारण   वे लोग लखनऊ जा नहीं सके। दिल के रोगी जरा संभलकर

कॉर्डियोलॉजी डिपार्टमेंट सिर्फ इलेक्ट्रोकॉर्डियोग्राम (ईसीजी) फैसिलिटी के भरोसे चल रहा है। अगर पेशेंट सीरियस कंडीशन में हॉस्पिटल पहुंचता है, तो डॉक्टर मजबूरन पेशेंट्स को मैन सेंटर रेफर करते हैं। आपको बता दें कि डिपार्टमेंट में टीएमटी, ईकोकॉर्डियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी के लिए आने वाले पेशेंट को मायूस लौटना पड़ता है। यहां ये फैसिलिटीज मौजूद नहीं हैं। डिपार्टमेंट में वैसे तो 8 बेड हैं, मगर पेशेंट को हैंडल करने के लिए सिर्फ एक डॉक्टर वीपी भारद्वाज हैं। ज्यादातर मॉनीटरिंग के उपकरण भी पुराने हो चुके हैं।एक्स-रे मशीन हांफती हैएक्स-रे मशीन पर भी लोड ज्यादा है। यहीं कारण है कि हर 1 घंटे के बाद एक्स-रे मशीन को बंद करके पेशेंट्स का एक्स-रे रोक दिया जाता है। अल्ट्रा साउंड मशीन की हार्ड डिस्क भी हाल में ही बदली गई है। वरना यही कंडीशन इस मशीन की रहती थी। एक्स-रे की मशीनें भी वर्षो पुरानी हो चुकी है जो भारी संख्या में पेशेंट््स की आमद का बोझ नहीं उठा पा रही है। No NICU
डॉ। डी के बाजपेयी के एकॉर्डिंग डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में मेडिकल फैसिलिटी इनसफिशिएंट है। महिला डिस्ट्रिक्ट में प्रसव तो बड़ी संख्या में होते हैं मगर न्यूनेटल इंटेसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) है ही नहीं। महिला हॉस्पिटल में कम से कम 4 और डॉक्टर्स का अप्वॉइंटमेंट होना चाहिए। एडल्अ आइसीयू में भी डॉक्टर्स की कमी है। वहीं टेक्नीशियन की कमी पेशेंट्स के इलाज पर भारी पड़ रही है। ब्लड बैंक में ब्लड यूनिट नहींपेशेंट की भारी आमद के साथ ही डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के ब्लड बैंक पर दबाव ज्यादा है। मगर यहां ब्लड यूनिट्स का अकाल पड़ा हुआ है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के अलावा मानसिक चिकित्सालय, गवर्नमेंट संस्थान, थैलेसीमिया पेशेंट्स और हीमोफिलिया पेशेंट्स को भी ब्लड बैंक से ही ब्लड उपलब्ध किया जाता है। खास बात ये भी है कि ब्लड बैंक में ब्लड की कमी को पूरा करने के लिए लंबे समय से कोई कैम्प भी नहीं लगाया गया है। हम पेशेंट्स को बेहतर इलाज उपलब्ध करवाते हैं। मैनपावर की कमी तो है मगर जो संसाधन मौजूद हैं, उसमें डॉक्टर्स अपना बेस्ट दे रहे हैं। संसाधनों की कमियां तो शासन स्तर से ही पूरी हो सकेंगी। -डॉ। सुधांशु, सीएमएसपेशेंट को बेहतर इलाज उपलब्ध होना चाहिए। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में ब्लड बैंक, डायग्नोस्टिक सेंटर और पैथोलॉजी की जिम्मेदारी सिर्फ 6 टेक्नीशियन पर है। यहां टेक्नीशियन और डॉक्टर की कमी है। एमआरआई की फैसिलिटी होनी चाहिए। नर्सिंग स्टाफ की भी कमी है।-डॉ। डीके बाजपेयी, पूर्व सीएमएस डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल
संसाधनों की कमियों पर हर मंथ हम एक रिपोर्ट बनाकर शासन में भेजते हैं। इसके अलावा रूटीन बैठकों में भी हम सवाल उठाते रहते हैं। शासन को मैनपावर और संसाधनों की कमी के बाबत हम हमेशा अवगत करवाते रहते हैं।  -डॉ। एके त्यागी, सीएमओसबसे पहले तो ट्रेंड मैनपावर की जरूरत है। गवर्नमेंट बेहतर काम कर रही है। उम्मीद है कि आने वाले समय में डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में संसाधनों की कमी दूर हो सकेगी। कॉमन मैन को फैसिलिटीज उपलब्ध करवाने के लिए हर स्तर पर संयुक्त प्रयास होने चाहिए। -डॉ। शशि कांत सक्सेना, मेम्बर, आईएमए

Posted By: Inextlive