bareilly: रोड पर बाइक से फर्राटा भरते स्टूडेंट्स और उनके एक्सीडेंट्स की खबरें आम बात है. इसके बाद उनके पेरेंट्स का पुलिस और एडमिनिस्ट्रेशन को कोसना पर जरा सोचिए कि इन नौसिखिए हाथों में बाइक्स की चाबियां आखिरकार दी किसने हैं? खुद को जिम्मेदार कहने वाले पेरेंट्स बच्चों की जिद के सामने इतने निरीह हो जाते हैं कि नियम-कानून को ताक पर रख देते हैं. फिर अनहोनी के लिए उंगली खुद से हटाकर दूसरों को दिखाने लगते हैं. आई नेक्स्ट ने ऐसे ही कुछ पेरेंट्स को खंगाला कि उन्होंने क्यों अपने ही लाडलों की जिंदगी पर एक्सीडेंट की तलवार लटकने की परमिशन दी है.


सहूलियत कम, मस्ती ज्यादा आसान सा तर्क है कि बाइक से स्टूडेंट्स को कॉलेज और कोचिंग के बीच टाइम मैनेज करने में सहूलियत होती है। पर असलियत में स्टूडेंट्स के लिए बाइक के मायने इससे कुछ ज्यादा ही होते हैं। वे इसे स्टेटस सिंबल मानते हैं और अपना रुतबा जमाते हैं। बाइक हाथ में होने पर वे हवा से बातें करने लगते हैं। गली-मोहल्लों में तो उन्हें अक्सर बाइक रेसिंग करते हुए देखा जा सकता है। जो उनके लिए तो नुकसानदायक होता ही है, औरों के लिए ज्यादा खतरनाक साबित होता है। ऐसे में पेरेंट्स की जिम्मेदारी को भला कैसे अनदेखा किया जा सकता है।यूं ही नहीं बनते बाइकर्स गैंग के मेंबर


किसी कोचिंग में बाइक से आने वाले स्टूडेंट्स की धाक अलग होती है। अदर स्टूडेंट्स उनसे बाइक पर बैठने और बाइक चलाने के लिए रिक्वेस्ट भी करते हैं। वहीं बाइकर्स ग्रुप में शामिल होने के लिए भी स्टूडेंट्स के लिए रूल्स तय किए गए हैं। किसी कोचिंग के बाइकर्स गैंग में शामिल होने के लिए नए बाइकर को एक नया स्टंट करना होता है। फिर चाहे वह किसी बाइकर को रेस में मात देना हो या बाइक को अगले पहिए पर बैलेंस करना हो।

स्टूडेंट्स क ो बाइक ड्राइविंग से रोकने के लिए पेरेंट्स को ही आगे आना होगा। मैं पेरेंट्स फोरम की ओर से अपील करता हूं कि वे कानून को ध्यान में रखकर बच्चों के हाथ में बाइक की चाबियां थमाएं।-मो। खालिद जिलानी, प्रेसीडेंट, पेरेंट्स फोरमस्टूडेंट्स की फ्री हैंड बाइक ड्राइविंग की वजह से कई बार उन्हें एक्सीडेंट्स का सामना करना पड़ता है। इसके लिए पेरेंट्स को ही अवेयर होने की जरूरत है। थोड़ी सी सहूलियत के लिए बच्चों को बाइक न दें।विशेष कुमार, प्रेसीडेंट, संत सच्चा सत रामदास एसोसिएशनमेरा बेटा कोचिंग जाने के लिए बाइक यूज करता है। पर वह हमेशा हेल्मेट पहनता है। बच्चों को बाइक देना तो मजबूरी भी है, नहीं तो उनका अधिकांश समय ट्रांसपोर्ट अरेंज करने में ही बीत जाएगा। सिटी का ट्रांसपोर्ट सिस्टम भी इतना अच्छा नहीं है कि समय से डेस्टिनेशन तक पहुंचा जा सके। एक के बाद एक कोचिंग में जाने के लिए तो बाइक बहुत जरूरी है।-संगीता सरन, पेरेंट

मेरे बेटे को स्कूल के तुरंत बाद कोचिंग जाना होता है। स्कूल जाने के लिए तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट ठीक है, पर उसके बाद कोचिंग के लिए उसे काफी भटकना पड़ता था। इसलिए मैंने उसे बाइक एलाउ कर दी है। हां, यह बात और है कि वह घर से बाइक ले जाने के बाद दोस्तों के साथ ट्रिपलिंग कर सकता है पर बच्चों की सहूलियत भी तो जरूरी है।-गीता बेदी, पेरेंटजब बेटे के दोस्त बाइक से चलते हैं तो वह भी डिमांड करता है। न दिलाने पर उसके मन में कॉम्प्लेक्स पैदा हो जाता है। इसका असर उसकी स्टडीज पर न पड़े इसके लिए जरूरी है कि उसकी बाइक की डिमांड को पूरा कर दिया जाए। पर मैं मेरे बेटे को बाइक चलाते समय हेल्मेट जरूर पहनने के लिए कहता हूं। इससे वह सेफ रहेगा।-अमरजीत सिंह, पेरेंटमैं कैं ट में रहती हूं। यहां से मेरे बेटे को स्कूल जाने के लिए ऑटो मिल जाता है पर कोचिंग के लिए प्रॉब्लम आती है। ऐसे में बाइक अच्छा ऑप्शन है पर मैं उसे सही से चलाने के लिए जरूर कहती हूं।-रीता मेहता, पेरेंट

Posted By: Inextlive