मिसमैनेजमेंट से बिखर रही हजारों की जिंदगी
-इंडस्ट्रीज बंद होने से पहले भी सैकड़ों कर्मचारी हो चुके है बेरोजगार
-इन कर्मचारियों को वीआरएस तक नहीं दिया गया थाBAREILLY: विमको कंपनी और उसमें काम करने वाले वर्कर्स की दुर्दशा की कहानी बरेली शहर के लिए नई नहीं है। कमजोर, अकुशल मैनेजमेंट, योजनाओं की कमी और सरकार की बेरुखी ऐसी कई कहानियां पहले भी गढ़ चुकी हैं। बरेली डिस्ट्रिक्ट में कंपनीज का बंद होने का चलन तो एक दशक पहले ही शुरू हो गया था। रबर, केमेकिल, शुगर, कपूर, पेपर जैसी कई बड़ी कंपनीज बंद हो चुकी हैं। कुछ ने तो दूसरे राज्यों में पलायन कर पीछे छोड़ दिया दाने-दाने को मोहताज हजारों कर्मचारी और उनके परिवार वाले। जब कोई कंपनी बंद हुई शोर बहुत मचा। नेताओं ने दखल देकर राजनीति की रोटियां भी सेकीं। लेकिन किसी ने भी इनके कारणों पर न तो गौर किया और न ही उन कमियों को दूर करने का प्रयास करते हुए इन कंपनियों में नई जान फूंकने की कोशिश ही की।
बड़े दावों से की गई शुरुआतबरेली शहर और आसपास के जिलों के लोगों को रोजगार मुहैया कराने के लिए बांस और जरी-जरदोजी की कारीगरी के लिए पहचाने जाने वाले इस शहर को एक बड़े इंडस्ट्रियल एरिया के रूप में विकसित करने की नींव रखी गई। बड़े दावे किए गए, बिजली, पानी, रोड जैसे मूलभूत संसाधनों को मुहैया कराने के साथ-साथ मैनुफैक्चरिंग व प्रोडक्शन कॉस्ट को सस्ता करने और इनकम टैक्स में छूट देने के कई दावों के साथ कंपनीज को जिंदा रखने की बात कही गई। भोजीपुरा, सीबीगंज और परसाखेड़ा को बसाया गया। बता दें कि इस समय डिस्ट्रिक्ट में छोटे-बड़े समेत करीब ख्,000 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं। इनमें से केवल भोजीपुरा में ही म्ख् से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं। जिनमें ग्लास, प्लाईवुड, इलेक्ट्रॉनिक्स, चाय पत्ती के पैकेट, समेत कई सामानों की मैनुफैक्चरिंग होती है।
वायदे कर भूल गए सब जिन दावों के साथ यहां पर इंडस्ट्रियल एरिया बसाने की नींव रखी गई थी समय बीतने के साथ ही उन दावों पर बेरुखी की दीमक लग गई। नतीजा यह हुआ कि एक-एक करके कंपनियों को दीमक ने खोखला कर दिया। शहर में बिजली की समस्या किसी से छिपी नहीं है। जब पर्याप्त बिजली ही नहीं मिलती तो कंपनी चले कैसे। स्किल्ड प्रबंधतंत्र की कमी होने लगी साथ ही स्किल्ड लेबर भी मिलने कम हो गए। किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। सरकार ने इनके लिए कोई विशेष पैकेज लागू नहीं किया और दूसरी कमजोर प्रबंधतंत्र में इतनी ताकत नहीं बची कि वे डूबती कंपनीज को उबार सकें।उत्तराचंल का बसना भी रहा एक मेन रीजन
कंपनियों के पलायन व बंद होने में यूपी से अलग होकर बने उत्तराखंड भी एक प्रमुख रीजन रहा। नवंबर ख्000 में उत्तराखंड की नींव रखी गई। नए राज्य को नए सिरे से विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए वहां की गवर्नमेंट जो वायदे किए उसे योजना के रूप में लागू भी किया। बिजली, पानी व रोड की सुविधा प्रदान की। इंडस्ट्री के लिए जमीन के बाइलॉज में बदलाव कर सस्ती दर में उसे उपलब्ध कराया। एक्साइज समेत कई तरह की टैक्स में छूट दी गई। यही नहीं उन्होंने संसाधन उपलब्ध कराकर रुहेलखंड का सारा मार्केट कैप्चर कर लिया। नतीजा यह हुआ कि वर्ष ख्000 से शहर से फैक्ट्रियों ने पलायन करना शुरू कर दिया। जो नहीं कर सकीं उन्होंने दम तोड़ दिया। बरेली में किसान फैक्ट्री की नींव देश के बड़े उद्योगपति विजय माल्या के पिता विट्ठल माल्या ने रखी थी। इसके बाद इसे ब्रुकबॉन्ड लिप्टन फिर हिन्दुस्तान लीवर ने अधिग्रहण कर लिया। लेकिन साल ख्000 आते-आते यह फैक्ट्री भी बंद हो गयी। इसके बाद से तो फैक्ट्रियों के बंद होने का सिलसिला ही शुरू हो गया। नहीं दिया गया था वीआरएसफैक्ट्रियों के बंद होने के बाद तो इनमें काम करने वाले मजदूर व परिवार दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए। इंडस्ट्रीज से जुड़े लोगों ने बताया कि जिस वक्त रबर फैक्ट्री और आईटीआर बंद हुई थी कर्मचारियों को वीआरएस तक नहीं दिया गया। मैनेजमेंट की ओर से उन्हें सिर्फ आश्वासन का लालीपॉप थमा दिया गया। नौकरी जाने और वीआरएस न मिलने से सभी कर्मचारी रातोंरात सड़क पर आ गए।
कंपनियां जिन पर लगा ताला कंपनी -- कर्मचारी - कब रबर फैक्ट्री - ख्,000 - ख्00ब् आईटीआर - क्भ्,00 - ख्00भ् किसान फैक्ट्री - क्,000 - क्999 -कैम्फर - क्फ्,00 - बंदी के कगार पर
विमको - 900 - बंदी के कगार पर । बरेली में सुविधाओं का अभाव मेन रीजन है इंडस्ट्रीज के बंद होने का। पूरे कंट्री में टैक्स में एकरूपता होनी चाहिए। हर कोई प्रॉफिट के लिए बिजनेस करता है। बरेली से जुड़े आस-पास के राज्यों में इंडस्ट्रीज वालों को हर किसी चीज में छूट और सुविधा दी जाती है। जिसकी वजह से लोगों को रूझान दूसरे राज्यों की ओर बढ़ा है। अजय शुक्ला, प्रेसीडेंट, भोजीपुर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन