-- सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को मुख्यधारा में किया शामिल

-- किन्नरों ने किया फैसले का स्वागत, वहीं चिंता भी व्यक्त की

BAREILLY: सदियों से उपेक्षित और वर्षो से अपनी पहचान के लिए संघर्षरत किन्नरों के लिए मंगलवार का दिन ऐतिहासिक रहा। सुप्रीम कोर्ट ने ट्यूजडे को फैसला सुनाते हुए किन्नरों को समाज के मुख्यधारा में शामिल कर लिया है। अब फॉ‌र्म्स में दूसरे जेंडर की तरह ही इनका भी ट्रांसजेंडर यानी 'टी' कॉलम बनाकर ओबीसी कैटेगरी में शामिल कर लिया गया है। उन्हें भी कास्ट कैटेगरी के तहत ओबीसी रिजर्वेशन का लाभ मिलेगा। सिटी के किन्नर समुदाय ने इस फैसले का स्वागत किया है, लेकिन इससे इतर उनका ये भी मानना है कि इससे बदलाव की बयार नहीं बहेगी। इसके लिए सामाजिक मान्यता का मिलना बेहद जरूरी है। फैसले पर आई नेक्स्ट ने सिटी में रहने वाले किन्नरों से बातचीत की। आपको बताते हैं क्या सोचते हैं ट्रांसजेंडर्स

पहचान और सम्मान दोनों अलग है

भारत में किन्नरों की संख्या करीब सवा करोड़ है। बरेली मंडल में इनकी संख्या करीब तीन हजार और सिटी में करीब सौ से ज्यादा। कैंट, गढी की चौकी, किला, स्वालेनगर, मौलानगर सहित अन्य एरिया में रह रहे हैं। सिटी के रहने वाले किन्नरों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तहेदिल से स्वागत किया है, लेकिन यह भी चिंता व्यक्त कि है कि बिना सामाजिक मान्यता के यह बेमतलब है। इससे रोजगार, रियायती यात्रा, एजूकेशन, लोन और बीमा सहित अन्य कार्यो में सहूलियत मिलेगी। जबकि दूसरी ओर कुछ ये भी मानते हैं कि पहचान और सम्मान दोनों अलग-अलग चीजें हैं। ये सामाजिक मान्यता मिलने से ही हासिल हो सकती है। इसके बिना सुप्रीम कोर्ट का फैसला केवल कंविंसिंग भर है। किन्नर काजल ने बताया कि सिटी में केवल मीनाक्षी ही एक ऐसी किन्नर थी, जो बदलाव की पक्षधर थी। वे लोगों में स्वरोजगार और एजूकेशन के लिए प्रयास करती थी। फिलहाल सिटी में किन्नर समुदाय में सभी अनपढ़ हैं।

अहम सवाल

सिटी के किन्नरों ने बताया कि लोन, इंश्योरेंस और गवर्नमेंट योजनाओं के तहत मिलने वाली रियायतें तो हासिल की जा सकती हैं, लेकिन क्या पेरेंट्स चाहेंगे कि उनका बच्चा किन्नर के बगल में बैठकर एजूकेशन हासिल करे। लाख कोशिश के बाद भी ऐसा नहीं हो सकता है। ऐसा में किन्नरों के साथ दोयम दर्ज का व्यवहार जारी रहेगा।

संघर्ष ही है रास्ता

डॉ। एसई हुडा ने बताया कि यह फैसला अलादीन का चिराग नहीं, जिसके रगड़ने से सबकुछ मेनटेन हो जाएगा। इसके लिए तथाकथित बुद्धिजीवियों और सभ्य समाज के लोगों की ओर से जब तक इन्हें एक्सेप्ट नहीं किया जाएगा, तब तक बदलाव संभव नहीं। साथ ही किन्नर समाज की ओर से भी सार्थक पहल का होना बेहद जरूरी है। संघर्ष से ही सफलता के दरवाजे खुल सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि छह माह बाद फैसले के इंप्लीमेंटेशन के साथ ही इस पर अमल करना शुरू कर दे। शुरुआत में लोग हंसेंगे, विरोध करेंगे, आमने-सामने का संघर्ष होगा और तब कहीं आगे चलकर बदलाव की बयार बहेगी।

बरेली से भी उठाई थी आवाज

सिटी के जाने माने फिजियोथेरेपिस्ट डॉ। एसई हुडा किन्नर कौम को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए सन् ख्009 से कार्य कर रहे हैं। सैय्यद शाह फरदंद अली एजूकेशनल एंड सोशल फाउंडेशन ऑफ इंडिया के साथ मिलकर पीआईएल और आरटीआई के जरिए आवाज उठाई। इस क्रम में इन्होंने सन् ख्009 में मतदाता सूची में किन्नरों की अलग श्रेणी, ख्0क्क् की जनगणना में किन्नरों के लिए अलग मेल फीमेल की तरह कोड फ्, ख्0क्क् में ही यूआईडी में ट्रांसजेंडर ऑप्शन के लिए कॉलम 'टी', और किन्नरों को रोजगार, एजूकेशन और रिजर्वेशन में शामिल करने के लिए ख्0क्क् में याचिका दायर की थी, जिस पर ट्यूजडे को कोर्ट की ओर से फैसला आया है, लेकिन इन्होंने बताया कि किन्नरों के हक के लिए देश के कोने कोने से पहुंच रही याचिकाओं को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तहेदिल से स्वागत है। हम इसका लाभ जरूर लेना चाहेंगे, लेकिन बिना सामाजिक मान्यता के यह संभव नहीं है। कानून केवल किताबों में ही दर्ज रह जाएगा।

- काजल, किन्नर

Posted By: Inextlive