दिमाग में कैलकुलेशन और आंखों के सामने ड्रीम. आईआईटी और नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स की कुछ ऐसी ही हालत है.कॉम्पिटिशन के इस दौर में कोचिंग इंस्टीट्यूट फैक्ट्री बन गए हैं. यहां कथित तौर पर ब्रेन डेवलप किए जाते हैं. इस डेवलपिंग प्रॉसेस में यूथ मशीन बन जाता है. जहां सिर्फ टार्गेट होता है. टार्गेट का यह दबाव डिप्रेशन और कई बार आत्म हत्या जैसे कदम की तरफ ले जाता है.

हिमांशु अग्निहोत्री (बरेली)। दिमाग में कैलकुलेशन और आंखों के सामने ड्रीम। आईआईटी और नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स की कुछ ऐसी ही हालत है.कॉम्पिटिशन के इस दौर में कोचिंग इंस्टीट्यूट फैक्ट्री बन गए हैं। यहां कथित तौर पर ब्रेन डेवलप किए जाते हैं। इस डेवलपिंग प्रॉसेस में यूथ मशीन बन जाता है। जहां सिर्फ टार्गेट होता है। टार्गेट का यह दबाव डिप्रेशन और कई बार आत्म हत्या जैसे कदम की तरफ ले जाता है।

प्रेशर रहता है हावी
कोटा में तैयारी और स्टूडेंट्स की जीवनशैली को दर्शाती कोटा फैक्ट्री नाम से कई साल पहले एक वेब सीरीज आई थी। इन्हें देखकर समझा जा सकता है कि कोटा में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स पर घरवालों और अपने ड्रीम को पाने का कितना प्रेशर रहता है। ऐसे में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने सिटी के कई स्टूडेंट्स से बातचीत की। साथ ही तैयारी कर चुके कुछ पूर्व स्टूडेंट्स से भी जानकारी ली। पेश है दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की स्पेशल रिपोर्ट

कोचिंग बनीं फैक्ट्री
कोटा की तरह सिटी में जेईई और नीट की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों की बाढ़ सी आ गई है। ऊंची इमारतें, कोचिंग की ड्रेस पहने कंधों पर बैग टांगकर निकलते स्टूडेंट्स। कोटा की तर्ज पर बच्चों को सुविधाएं देकर मोटी फीस ली जा रही है। बच्चों को घर से आने-जाने के लिए सुविधा, एसी, डिजिटल स्टडी आदि की फैसिलिटी दी जा रही है। यहां बच्चों को भावनात्मक तौर पर डेवलप नहीं किया जाता बल्कि मशीन बनाया जाता है।

उलझा रहता है मन
आईआईटी के लिए तैयारी करने वाले एक स्टूडेंट्स ने बताया कि उनके दिमाग में पूरे दिन कैलकुलेशंस और फॉमूले घूमते रहते हैैं। खाते-पीते समय वह इनमें ही उलझे रहते हैैं। ऐसे में कई स्टूडेंट्स ने यह भी बताया कि उनका शेड्यूल सेट होता है कि किस टाइम पढ़ाई करनी है और किस टाइम इंजॉय करना है। वह जब इंजॉय करते हैैं तो वहां भी दिमाग में कलकुलेशन चलता रहता है।

बना रहता है प्रेशर
कोटा में कोचिंग कर रहे कुछ स्टूडेंट्स से फोन पर बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि जब अपना शहर छोडक़र दूसरे सिटी में जाते हैं तो शुरुआत में काफी बुरा लगता है। घरवालों को बहुत मिस करते हैैं। बाहर निकलकर इमनोश्नली स्ट्रॉन्ग होना जरूरी हो जाता है। हालांकि कुछ समय बाद वहां नए दोस्त बन जाते हैैं। इससे काफी हद तक इमोशनल सपोर्ट मिल जाता है। घरवालों से भी समय-समय पर बात होती रहती है, लेकिन मेंटली प्रेशर गोल को अचीव करने का हमेशा बना रहता है।

करना पड़ता है समझौता
आईआईटी से तैयारी कर चुके अभिषेक बताते हैं कि तैयारी के समय मेंटल प्रेशर होता है। कई बार ऐसा लगता है कि नहीं होगा, छोड़ दें। फिर फैमिली के बारे में सोच कर रुक जाते हैैं। आईआईटी की तैयारी की थी, लेकिन वह तो नहीं मिला। एनआईटी से ही समझौता करना पड़ा। इस तरह से कई स्टूडेंट्स को अपने ड्रीम से समझौता करना पड़ता है। स्टूडेंट्स कहते हैैं कि कई लोगों पर घर से प्रेशर नहीं होता है, लेकिन उनका ड्रीम होता है आईआईटी। वह नहीं मिलने पर उससे कम से समझौता करना पड़ता है।

खुद को यूं रखें स्ट्रैस फ्री
नैप लेते रहें
ब्रेक में फोन यूज की जगह वॉक या मार्केटिंग करें
मेडिटेशन के लिए समय निकालें
कमरे तक खुद को सीमित न रखें
हमेशा पॉजिटिव कन्वर्शेसन करें
कम माक्र्स आने पर मूल्यांकन करें

पैरेंट्स भी रखें ध्यान
-बच्चों पर प्रेशर न डालें
-लिमिटेशन के साथ घूमने-फिरने की परमिशन दें
-बच्चों से संवाद करते रहें
-इंटरफेयर न करें, इन्वॉल्व रहें

दबाव न बनाएं
स्टूडेंट्स को पढ़ाई के दौरान खुद को रिलैक्स रखना चाहिए। ब्रेक लेते रहें। दोस्तों से भी पॉजिटिव कन्वर्शेसन करते रहें। घरवाले भी बच्चों से संवाद करते रहें। परेशानी होने पर मिल कर हल निकालें। बच्चों को मोटिवेट करते रहें उन्हें समझाएं, लेकिन दबाव न बनाएं।
याशिका वर्मा, साइकोलॉजिस्ट, मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र

Posted By: Inextlive