जर्नलिज्म की पाठशाला में शिक्षकों का टोटा
बरेली (ब्यूरो)। एमजेपीआरयू कैंपस हो या बरेली कॉलेज, दोनों जगह पत्रकारिता की पाठशाला में शिक्षकों का टोटा है। शिक्षकों की कमी के चलते एकच्अच्छा पाठ्यक्रम पढऩे के लिए छात्र दूसरे विश्वविद्यालयों व शहरों की ओर रुख करने पर मजबूर हैं। कहीं न कहीं विश्वविद्यालय प्रशासन के इस पाठ्यक्रम की ओर ध्यान न देने से भी स्थिति खराब होती जा रही है। विश्वविद्यालय कैंपस में वर्ष 1998 में मास कम्यूनिकेशन पाठ्यक्रम की शुरुआत हुई थी। उस समय इस पाठ्यक्रम की फीस तकरीबन 40 हजार रुपये रखी गई थी। उस समय फैकल्टी और एचओडी भी थे, लेकिन वर्ष 2008 में एचओडी लखनऊ चले गए। तब से आज तक मास कम्यूनिकेशन विभाग के लिए कोई स्थायी एचओडी नहीं मिला। कैंपस के शिक्षक बताते हैं कि रुवि का मास कम्यूनिकेशन विभाग इतना हाइटेक बना था कि उस समय प्रदेश में इलेक्ट्रानिक मीडिया का जाना माना संस्थान यह हुआ करता था। यही नहीं प्रवेश के लिए लंबी प्रतीक्षा भी होती थी, लेकिन अब 40 सीट्स के लिए प्रवेश प्रक्रिया पूरी किया जाना भी मुश्किल हैं। दरअसल अब 10 भी प्रवेश नहीं हो पा रहे हैं।
कोर्स के संचालन पर भी संकट
सेल्फ फाइनेंस डिप्लोमा कोर्स के संचालन के लिए कम से कम 10 छात्र होना अनिवार्य हैं। रुवि कैंपस में संचालित मास कम्यूनिकेशन डिप्लोमा कोर्स में इस बार सिर्फ तीन छात्रों ने ही अब तक प्रवेश लिया है। इससे अब कोर्स कैसे संचालित हो इस बात पर भी संकट खड़ा हो गया है। क्योंकि मानक अनुरूप ही छात्र नहीं हो पाए हैं।
रुवि कैंपस में मास कम्यूनिकेशन विभाग में कोई स्थायी शिक्षक नहीं होने के चलते दूसरे विभाग के शिक्षकों को एचओडी का चार्ज दिया गया है। वर्षो से मीडिया सेंटर के प्रोड्यूसर यहां बतौर शिक्षक शिक्षण कार्य करते हैं। अभी तक चार्ज संभाल रही नलिनी श्रीवास्तव एक माह पहले सेवानिवृत्त हो गई। उनके सेवानिवृत्त होने के बाद दर्शनशास्त्र विभाग के एचओडी प्रो। रज्जन कुमार को मास कम्यूनिकेशन विभाग की भी जिम्मेदारी दी गई है।
बीसीबी में भी स्थिति गंभीर
बरेली कालेज में संचालित मास कम्यूनिकेशन डिप्लोमा पाठ्यक्रम में 40 सीटें हैं। बीते वर्ष तक यहां एचओडी मास कम्यूनिकेशन के ही हुआ करते थे, लेकिन वह अब छोड़ चुके हैं। उसके बाद से राजनीति विज्ञान विभाग के एचओडी को मास कम्यूनिकेशन विभाग का प्रभार दे दिया है। इस विभाग में अब न तो एचओडी का ही मास कम्यूनिकेशन से कोई वास्ता है और न ही यहां वर्तमान में तैनात शिक्षक इस विषय के पुरोधा है। हाल ही में मास कम्यूनिकेशन के दो डिप्लोमा होल्डर्स को यहां बतौर शिक्षक टंप्रेरी नियुक्त दी गई है, जबकि नियुक्ति के लिए पीजी डिग्री होना अनिवार्य है। आरयू व बीसीबी में संचालित पत्रकारिता पाठ्यक्रम का कोर्स बदहाली का शिकार है। ऐसे में छात्र प्राइवेट कॉलेज व विश्वविद्यालयों का ही विकल्प स्टूडेंट्स के पास है।
अनुभवी शिक्षक न होने के चरण एक अच्छे पाठ्यक्रम की स्थिति दयनीय हैं। आरयू का मास कम्यूनिकेशन विभाग जिस समय बना था, उस समय यह प्रदेश में अपना अलग स्थान रखता था। इस पाठ्यक्रम के लिए ङ्क्षचतन जरूरी है।
- प्रो। रज्जन कुमार, प्रभारी एचओडी मास कम्यूनिकेशन