'सुविधा शुल्क' देंगे तभी सुधरेगी सेहत!
Case-1मढिऩाथ निवासी स्वाति बताती हैं कि एक हफ्ता पहले वह रात में 10 बजे महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पहुंची। उनकी भाभी को लेबर पेन हो रहा था। इमरजेंसी में नर्स को पेशेंट के बारे में बताया मगर उसने इंट्रेस्ट शो नहीं किया। हालांकि 20 मिनट बाद डॉक्टर आईं। चेकअप के बाद एडमिट करने के लिए जब तक हरी झंडी मिली, इस बीच दो कर्मचारियों ने उनसे 500 रुपए की डिमांड कर डाली। वहां के हालात देखकर उन्होंने प्राइवेट हॉस्पिटल में भाभी की डिलीवरी करवाई। Case-2
20 दिन पहले आजमनगर निवासी मो। फैजल ने अपनी वाइफ को लेबर पेन होने पर महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में एडमिट करवाया। उन्होंने बताया कि उस वक्त उनसे वार्ड की आया ने पैसे मांगे। बात 500 रुपए से स्टार्ट हुई पर वह 200 रुपए पर मान गई। फिर डिलीवरी होने के बाद उन्होंने 24 घंटे के लिए पेशेंट को अंडर ऑब्जर्वेशन रखने के लिए कहा। इस बीच वार्ड की आया, वार्ड ब्वॉय से लेकर नर्स तक ने उनसे मुंह दिखाई जैसी बातों के नाम पर पैसे मांगे। अपनी वाइफ की फिक्र में वह सबकी डिमांड पूरी करते रहे। उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में उन्हें डिलीवरी संबंधी सभी सुविधाएं फ्री मिलनी चाहिए थीं लेकिन सबकी डिमांड पूरी करते-करते लगभग 2,000 रुपए खर्च हो गए।
निर्देशों की अनदेखी राज्य स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन के सख्त निर्देश हैं कि सूबे में मेडिकल फैसिलिटीज को लेकर कहीं भी पैसों की डिमांड न की जाए। खासकर जननियों के लिए तरह-तरह सुविधाए अनाउंस की गई हैं। निर्देश का पालन हो और ये सभी को याद रहें, इसके लिए सभी सरकारी हॉस्पिटल्स की दीवारों पर इन्हें बड़ा-बड़ा लिखवाया गया है। पर बरेली महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में इसका कोई फायदा नहीं है। लेबर रूम के सामने ही आए दिन पेशेंट के तीमारदार इस तरह पैसों की डिमांड को लेकर शिकायत दर्ज करवाते रहते हैं। ऑपरेशन के बाद सुविधा शुल्क महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की सीनियर डॉक्टर ने बताया कि इस वसूली के लिए तीमारदार अपना पक्ष कभी मजबूती से नहीं रखते। हंगामा तो करते हैं मगर जब बात लिखित शिकायत की आती है तो कोई सामने नहीं आता। उन्होंने माना कि कुछ डॉक्टर ऑपरेशन करने के बाद पेशेंट से 1,000 से 1,200 रुपए की वसूली करते हैं। पेशेंट भी दबाव में ये भुगतान कर देते हैं।तो 500 रुपए लगेंगे
ऐसा नहीं है कि सुविधा शुल्क की वसूली इलाज के बाद ही होती है। पेशेंट को एडमिट करने के लिए भी पैसों की डिमांड रखी जाती है। हालांकि इसका कोई रेट फिक्स नहीं है। जितना मोटा मुर्गा, उतनी ही बड़ी तलवार उठाई जाती है। सोर्सेज के मुताबिक, वार्ड में एडमिट करने के लिए स्टाफ 200 से 500 रुपए तक की मांग रखता है। चूंकि तीमारदार को पेशेंट का इलाज करवाना होता है, इसलिए चाहकर भी वह इनकी खिलाफत नहीं कर पाता। सारा खेल 2 बजे के बाद हॉस्पिटल स्टाफ टाइम के हिसाब से ये काम करता है। हॉस्पिटल में ऑफिस दोपहर 2 बजे तक खुलते हैं। उसके बाद हॉस्पिटल परिसर में रहने वाले डॉक्टर्स को छोड़कर बाकि स्टाफ वहां नहीं रहता है। ऐसे में वसूली का पूरा खेल दोपहर 2 बजे के बाद ही खेला जाता है। देर शाम या रात में तो पैसे मांगना तय ही है। यही कारण है कि तीमारदारों का हंगामा अक्सर रात के वक्त ही होता है। सबसे बड़ी लूट डिलीवरी में
सबसे ज्यादा समस्या तो डिलीवरी के लिए आने वाली पेशेंट्स और उनके तीमारदारों के लिए है। हॉस्पिटल में ब्रोकर्स पहले से एक्टिव हैं। ऐसे में अगर उनके चंगुल से बच सके तो मैटरनिटी वार्ड में ऑन ड्यूटी नर्स, आया और वार्ड ब्वॉय आपकी जेब हल्की करने के लिए रेडी हैं। एक बार बच्चा पैदा हो गया तो प्रसूता तब तक डिस्चार्ज नहीं हो सकती, जब तक स्टाफ तीमारदारों से वसूली पूरी न कर ले। नियम के अनुसार प्रसूता को नॉर्मल डिलीवरी के केस में 24 घंटे अंडर ऑब्जर्वेशन और सिजेरियन डिलीवरी के केस में 28 घंटे अंडर ऑब्जर्वेशन रखा जाता है। यहां भी इस सुविधा शुल्क का कोई फिक्स रेट नहीं है। डिमांड 100 रुपए से लेकर 500 रुपए तक की होती है। मजबूरन तीमारदार इनकी डिमांड पूरी करते हैं। इनमें से कुछेक शिकायत और हंगामा भी करते हैं। अगर कोई पेशेंट या उसके तीमारदार हमारे पास लिखित शिकायत करते हैं तो हम संबंधित स्टाफ या कर्मचारी के खिलाफ स्पष्टीकरण के लिए नोटिस जारी करते हैं। अगर दोष साबित होता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई करते हैं। हॉस्पिटल में वसूली संबंधी कोई भी समस्या मेरे संज्ञान में नहीं है। -डॉ। मंजरी सक्सेना, सीएमएस, महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल