Bareilly: सोमवार रात के करीब आठ बजे थे. रेलवे स्टेशन के पास सरन हॉस्पिटल के आसपास काफी चहल पहल थी. रात का सन्नाटा दस्तक दे चुका था. सरन हॉस्पिटल के वार्ड में भर्ती मरीजों के कुछ परिजनों के अलावा कैंपस में शायद ही कोई नजर आ रहा था. हॉस्पिटल के पीछे वाले हिस्से में जहां इमरजेंसी वार्ड है वह पूरी तरह खामोशी की आगोश में था. यह महज संयोग ही था कि इमरजेंसी में कोई पेशेंट भी नहीं था. अपनी उम्र लगभग पूरी कर चुकी ट्यूब लाइट की हल्की रोशनी में कैंपस का कोना प्रकाशमय है.अचानक हलचल होती है


इससे पहले की रात का सन्नाटा और गहराता अचानक इमरजेंसी वॉर्ड में थोड़ी हलचल होती है। एक बंदरिया (जिसका नाम सुनैना रख दिया गया है) अपने छोटे बच्चे के साथ लड़खड़ाती हुई वॉर्ड में दाखिल होती है। इमरजेंसी के बाहर वॉर्ड ब्वॉय बैठा है। आंखों में नींद तो नहीं है, लेकिन अलसाई शाम और गरमी से परेशान वह शख्स अपनी ड्यूटी पर है। सुनैना के आने से वह पहले तो खुद को असहज महसूस करता है। वह उसे भगाने की कोशिश भी करता है। फिर यह सोच कर चुप हो जाता है कि यह तो यहां सामान्य है। चुंकि हॉस्पिटल के आसपास कई पुराने और घने पेड़ हैं जहां बंदरों का बसेरा है। वे यदा कदा चहलकदमी के लिए वार्ड में आ भी जाते हैं और चुपचाप रुख्सत भी हो जाते हैं।नहीं जाती है वह


वॉर्ड ब्वॉय के थोड़े प्रयास के बावजूद सुनैना जाने को तैयार नहीं होती है। वॉर्ड में लाइट जल रही है। पंखे चल रहे होते हैं। सुनैना को आराम महसूस होता है। वह वार्ड में लगे बेड से एक चादर उठाकर जमीन पर बिछा लेती है। उसका छोटा सा बच्चा भी वहीं बैठ जाता है। वॉर्ड ब्वॉय आई-नेक्स्ट को बताता है सुनैना इसी तरह अपने बच्चे के साथ देर रात तक वहीं रहती है। अपने आप वह चली जाएगी यह सोचकर वह उन्हें वहीं छोड़ देता है।एक नए दिन की शुरुआत रात बीत चुकी है। सूरज की किरणें और चिडिय़ों की चहचहाहट यह बताने को काफी है कि अब नए दिन की शुरुआत हो चुकी है। सफाई कर्मी वार्ड की सफाई कर चुके हैं। सुनैना वहीं लेटी है अपने बच्चे के साथ। उसे कोई कुछ नहीं कहता है, क्योंकि वह भी किसी को तंग नहीं कर रही है। आठ बजे इमरजेंसी वॉर्ड में डॉक्टर जमीर अहमद आते हैं। पहले तो उन्हें काफी आश्चर्य होता है कि वॉर्ड में एक जानवर है और उसे किसी ने भगाने की कोशिश भी नहीं की। पूछताछ में पता चलता है कि वह कल रात से ही यहां है। शुरू होता है इलाज

कहते हैं डॉक्टर भगवान का रूप होता है। मानवीय संवेदना से लबरेज यह प्रोफेशन हर किसी को अपना बनाने में विश्वास रखता है। डॉ। अहमद भी कुछ अलग नहीं हैंं। जब उन्होंने देखा कि सुनैना किसी को कुछ नहीं कर रही है। विवश, लाचार और किसी सहायता की आस में वह यहां बैठी है, डॉ। अहमद पास जाने की हिम्मत दिखाते हैं। करीब से देखने पर आभास होता है कि सुनैना की पीठ में घाव है। वह दर्द से तड़प रही है। अपनी बात किसी को बता नहीं सकती है इसलिए खामोश और लाचार है। डॉ। अहमद तुरंत ही उसका इलाज शुरू करते हैं। सुनैना की पीठ पर मरहम लगाई जाती है। वह निश्ंिचतता का भाव लिए बैठी है। आराम महसूस होते ही बेड परएंटीसेप्टिक क्रीम लगाने के बाद सुनैना को आराम मिलता है। साथ ही उसे शायद इस बात का भी आभास हो जाता है कि मानवीय संवेदनाएं उसके आसपास ही हैं वह चुपचाप वहीं रहती है। थोड़ी राहत मिलते ही वह इमरजेंसी वॉर्ड में लगे चार बेड में से एक बेड पर चली जाती है। वहीं लेट जाती है। निराकार भाव लिए वह वहीं अपने छोटे बच्चे को खेलता हुए देख रही है। इस बीच कई मरीज आ रहे हैं। डॉक्टर से इलाज करवा रहे हैं। बेड पर लेटी सुनैना उसे और उसके हंसते खिलखिलाते और बेड पर उछलते कूदते बच्चे को देख रहे हैं। बातें कर रहे हैं। एक दूसरे से पूछ रहे हैं। किसी के पास कहने को कुछ नहीं है। सभी एक ही बात सोच रहे हैं डॉक्टर तो सही में भगवान होते हैं। इंसान तो क्या जानवर भी इन्हें इसी रूप में पूजते हैं।

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से कांटेक्ट किया गया है। फिलहाल उसका इलाज कर दिया गया है, लेकिन उसे प्रॉपर केयर की जरूरत है। वह क्या सोच कर हॉस्पिटल के इमजरेंसी वॉर्ड में आई यह तो कोई कह नहीं सकता है, लेकिन उसकी भावनाएं तो जरूर समझी जा सकती हैं। -डॉ। जमीर अहमद, फिजिशियन, सरन हॉस्टिपल।

Posted By: Inextlive