Bareilly: बात जब स्पोट्र्स की होती है तो बरेली की गुमनामी को देखकर निराशा जरूर होती है. ऐसा नहीं है कि यहां स्पोट्र्स एक्टिविटीज नहीं हैं लेकिन सुविधाओं की कमी यहां के प्लेयर्स को वो मुकाम नहीं दिला पा रही जिसके वे हकदार हैं. तमाम स्पोट्र्स एक्टिविटीज होने के बावजूद प्लेयर्स का जोश और दमखम बस डिस्ट्रिक्ट और स्टेट लेवल पर आकर दम तोड़ देता है. कुछ नेशनल लेवल पर सेलेक्ट भी होते हैं लेकिन प्रॉपर ट्रेनिंग और कोचिंग न मिलने से वे भी गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं. नेशनल स्पोट्र्स डे पर आई नेक्स्ट रिपोर्टर अभिषेक सिंह ने सिटी की खस्ताहाल खेल सुविधाओं का जायजा लिया.


एक ही मैदान पर दमखम को तराशते हैं सभी धुरंधरस्पोट्र्स स्टेडियम पर एक बारगी नजर डाली जाए तो यहां पर क्वालिटी मेंटेन करने के बजाय पूरा ध्यान क्वांटिटी पर ही होता है। स्टेडियम के 10 एकड़ के ग्राउंड में करीब-करीब सभी इवेंट्स की प्रैक्टिस कराई जाती है। प्लेयर्स को खुलकर प्रैक्टिस करने का मौका नहीं मिलता। स्टेडियम से सटा एक और आउटडोर ग्राउंड है लेकिन फंड की कमी के चलते उसे डेवलप नहीं किया जा सका। प्लेयर्स को तराशने के बजाय अब वहां पर रामलीला समेत अन्य दूसरे प्रोग्राम्स ऑर्गनाइज होते हैं। Events की कमी नहीं


बरेली में सेना की कई यूनिट के बेस हैं। साथ ही यहां पर बेहतर स्कूलिंग और कॉलेजेज की फैसिलिटीज हैं। इस कारण दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स से काफी संख्या में स्टूडेंट्स यहां आकर पढ़ाई करते हैं। सेना और केंद्रीय विद्यालय की तरफ से स्पोट्र्स एक्टिविटीज तो होती ही हैं, साथ ही स्टूडेंट्स की काफी बड़ी फौज होने के कारण स्पोट्र्स एक्टिविटीज में उनकी एक बड़ी भागीदारी रहती है।एक हॉल में जिमनास्ट, बैडमिंटन

बेहतर खेल और खेल सुविधाओं का दावा ठोकने वाले विभाग को स्पोट्र्स स्टेडियम के हालात मुंह चिढ़ा रहे हैं। स्टेडियम के एक ही हॉल में जिमनास्ट और बैडमिंटन के प्लेयर्स एक साथ प्रैक्टिस करते हैं। जबकि दोनों प्लेयर्स को प्रैक्टिस के पर्याप्त स्पेस की आवश्यकता है। खासकर बैडमिंटन के लिए। जिमनास्ट के प्लेयर्स पुराने टेक्नीक वाले इक्विपमेंट से प्रैक्टिस करने को मजबूर हैं। नए इक्विपमेंट को लगाने के लिए हॉल में स्पेस ही नहीं है। इन्हीं हालातों से यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इंडिया के प्लेयर्स जिमनास्ट में दूसरे देशों के प्लेयर्स के सामने क्यों ठहर नहीं पाते।बच्चों में जोश तो गजब का है, कुछ करने का जज्बा भी है लेकिन बिना कोच के दम तोड़ देता है। बेस्ट क्वालिटी के इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के साथ कोचेस की कमी है। स्टेडियम में सालों से टेंपरेरी कोच ट्रेनिंग दे रहे हैं। शासन को कई बार प्रपोजल गया और सहमति भी बनी पर कोई ऐसी पॉलिसी नहीं बन पाई जिससे प्रपोजल पास हो सके। ऐसा नहीं है कि अस्थाई कोच के हाथों प्लेयर्स नहीं निकलते। हमारे प्लेयर्स भी स्टेट और नेशनल लेवल के लिए कैंप कर चुके हैं।- ओपी कोहली, मंडल प्रेसीडेंट, एनआईएस एडहॉक एसोसिएशन

स्टेट की तरफ से लिमिटेड फंड ही आता है। डायरेक्शंस दिए जाते हैं कि इसी फंड में जरूरतों को पूरा करें। रेग्युलर और परमानेंट कोच व स्टाफ की सैलरी, कॉम्पिटिशंस ऑर्गनाइज करने का खर्च और हॉस्टल का खर्च इसी फंड से निकालना पड़ता है। हालांकि ईयरली फंड इन्हीं खर्चों के लिए आता है। बाकी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए डिमांड भेजी जाती है। फंड आता है तो उसी अनुसार इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होता है।- एके पांडेय, फुटबॉल कोच व डिप्टी स्पोट्र्स ऑफिसरस्टेडियम में वे सभी बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद हैं जिस लेवल के लिए इन प्लेयर्स को आवश्यकता है। इन्हीं इंफ्रास्ट्रक्चर की बदौलत हमारे प्लेयर्स स्टेट और नेशनल इवेंट के लिए कैंप करते हैं। इंटरनेशनल लेवल पर कॉम्पिटीशन बीट करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। समय-समय पर प्रपोजल भी भेजे जाते हैं। जैसे-जैसे मंजूर होता है उसी के अनुसार तैयारी की जाती है।- संतोष शर्मा, जिमनास्ट कोच व डिप्टी स्पोट्र्स ऑफिसर

Posted By: Inextlive