साहब की गाड़ी है, बेमानक भी दौड़ेगी
हिमांशु अग्निहोत्री (बरेली)। पब्लिक के लिए नियम कानून बनाने वाली सरकार अपने सिस्टम में इनको कितना फॉलो करा पाती है, यह सरकारी और अनुबंधित वाहनों की स्थिति को देखकर समझा जा सकता है। शहर में नियम-कानून को ताक पर रख कर वाहन चलाने वालों को ट्रैफिक रूल फॉलो कराने के लिए नगर निगम के आईसीसीसी से उनके ऑनलाइन चालान किए जा रहे हैं। जब से यह सिस्टम लागू हुआ तब से हर दिन सैकड़ों की संख्या में वाहनों के चालान कट रहे हैं। यह सिस्टम सरकारी वाहनों पर कितना प्रभावी हो रहा है, इसकी हकीकत परखने के लिए दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने नगर निगम की गाडिय़ों की ही स्थिति को परखा तो चिराग तले अधेरा वाली कहावत को सच साबित होता पाया।
बेमानक दौड़ रही है गाडिय़ां
नगर निगम ने अपने अधिकारियों को 19 गाडिय़ां प्रोवाइड कराई हैं। नगर निगम ही इन गाडिय़ों का ओनर भी है। यह गाडिय़ां सरकारी मानक पर कितना खरा उतर रही हैं, इसकी जानकारी जब मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड आईटी के एमपरिवहन एप से जांची तो इन गाडिय़ों के फिटनेस को लेकर नगर निगम की लापरवाही उजगार हुई। एमपरिवहन एप ने नगर निगम की अधिकांश गाडिय़ों को आधे-अधूरे मानक का बताया। इन गाडिय़ों में से किसी का लंबे समय से इश्योरेंस ड्यू है तो कोई बिना पॉल्यूशन सर्टिफिकेट के ही दौड़ रही है। कई गाडिय़ों की फिटनेस ही लंबे समय से एक्सपायर है। इन गाडिय़ों को न तो कभी ट्रैफिक पुलिस ही रोकने-टोकने की जहमत उठाती है और न ही आईसीसीसी से कभी इनका ऑन लाइन चालान होता है। ऐसे में इन वाहनों से कभी कोई सडक़ हादसा होता और उसमें जान-माल का नुकसान होता है तो क्लेम मिलना भी मुश्किल हो जाएगा।
नगर निगम अधिकारियों को प्रोवाइड किए गए वाहनों में आठ सरकारी हैं और ग्यारह वाहन नगर निगम ने किराए पर लिए हैं। सरकारी वाहनों को छोड़ दें तो भी किराए पर लिए गए अधिकतर वाहन बिना इंश्योरेंस और बिना पॉल्यूशन फिटनेस के हैं। इन वाहनों का इश्योरेंस एक्सपायर होने के बाद दोबारा इनका इश्योरेंस नहीं कराया गया। हालांकि इन वाहनों का इस्तेमाल करने वाले अधिकारियों को ही इनकी स्थिति की जानकारी नहीं है।
स्वच्छता का संदेश देता वाहन भी बेमानक
नगर निगम की ओर से स्वच्छता का संदेश देने के लिए लगाए गए वाहन संख्या यूपी 25 एजी 0620 का इंश्योरेंस 2015 में ही एक्सपायर हो चुका है। साथ ही इसका फिटनेस सर्टिफिकेट भी एक्सपायर हो चुका है। ऐसे में इस वाहन से स्वच्छता का प्रचार करके निगम की ओर क्या संदेश दिया जा रहा है। पब्लिक अगर इस वाहन की संख्या को एप के माध्यम से जांचे तो पब्लिक के बीच किस तरह का संदेश पहुंचेगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
मोटर व्हीकल एक्ट के तहत कामर्शियल वाहन का हर वर्ष सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी कार्यालय में फिटनेस कराना होता है। इसके अलावा प्राइवेट वाहन में सात से अधिक सीट वाले वाहन भी फिटनेस कराने की श्रेणी में आते हैैं। इसका भी कॉमर्शियल वाहन की तरह हर वर्ष फिटनेस कराना जरूरी होता है। फिटनेस के समय विभाग के टेक्निकल अधिकारी वाहन का परीक्षण कर प्रमाण पत्र जारी करते हैैं। निगम के वाहनों की यह है स्थिति -पर्यावरण अभियंता के वाहन संख्या यूपी 25 एजी 0670 का इश्योरेंस एम परिवहन एप पर एक जनवरी 1901 तक वैलिड शो कर रहा है। एमपरिवहन एप में शो रही 120 साल पुरानी वैलिडिटी भी अपने आप में आश्चर्यचकित करने वाली और हास्यपद है।
-अपर नगर आयुक्त की स्कॉर्पियो वाहन संख्या यूपी 25 बीबी 6999 का इंश्योरेंस एम परिवहन एप पर 30 जनवरी 2021 को ही समाप्त हो चुका हैैं। लेकिन उसके बाद भी रिन्यूवल नहीं किया गया है।
-नगर स्वास्थ्य अधिकारी की बोलेरो वाहन संख्या यूपी 25 सीएल 6943 का इश्योरेंस 02 नवंबर 2019 को ही समाप्त हो चुका है, साथ ही इस वाहन का प्रदुषण सर्टिफिकेट की वैलेडिटी भी आठ मई 2021 में समाप्त हो चुकी है। -लेखाधिकारी की बोलेरो संख्या यूपी 25 डीटी 3033 का इश्योरेंस तो अपडेट हैैं लेकिन वाहन का पॉल्यूशन सर्टिफिकेट पांच अप्रैल 2022 को ही समाप्त हो चुका है। -प्रकाश अधीक्षक के वाहन बोलेरो संख्या यूपी 25 सीई 0776 का इश्योरेंस 17 मार्च 2020 को ही एक्सपायर हो चुका है, लेकिन उसके बाद से इसको अपडेट नहीं कराया गया है। -प्रवर्तन दल टीम की बोलेरो संख्या यूपी 25 बीएफ 5340 का इश्योरेंस 27 मई 2020 को ही समाप्त हो चुका है। साथ ही इसकी फिटनेस सर्टिफिकेट एक्सपायर है। इसके अलावा कई अन्य वाहनों के भी इश्योरेंस, फिटनेस व पॉल्यूशन पेंडिंग है।हादसा हुआ तो क्या होगा
सरकारी गाडिय़ों के फिटनेस और इश्योरेंस को लेकर जब शहर के कुछ वाहन चालक से बात की गई तो कई चालकों ने कहा कि नियम बनाने वाले अधिकारियों की गाडिय़ों में ही जब प्रदूषण और बीमा फेल रहेगा तो फिर आम जनता का क्या होगा। इन अधिकारियों की गाडिय़ों से अगर कोई अनहोनी हो जाए तो सामने वाले को क्लेम भी मिलना मुश्किल हो जाएगा।
-दिनेश कुमार, आरटीओई