Bareilly:बरेलियंस को भी सरोगेसी भाने लगी है. भले ही मेट्रो सिटीज की तरह यहां ट्रेंड उतना ओपेन नही हैं लेकिन अब लोग इसे अपनाने से नहीं हिचक रहे हैं. हालांकि नया ट्रेंड अब चौंका भी रहा है क्योंकि डॉक्टरों के पास तो कई कपल ऐसे भी पहुंच रहे हैं जो अपने करियर की रफ्तार को कहीं भी ब्रेक लगाना नहीं चाहते. ऐसे में पेरेंट्स बनने का सुख लेने के लिए सरोगेसी उनके लिए सबसे बेहतर ऑप्शन प्रूव हो रही है.


करियर संवारने के लिए भा रही सरोगेसीमिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान और किरन राव हाल ही में पेरेंट्स बने हैं पर किरन ने किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया। दरअसल फिजिकल प्रॉब्लम होने की वजह से कपल सरोगेसी के जरिए इस खुशी को अपने घर लेकर आया। हम आपको ये बताना चाहते हैं कि ये ट्रेंड अब बड़े शहरों ही नहीं बल्कि बरेली में भी चल निकला है। इसकी वजह से शहर के कई आंगन किलकारियों से गूंज रहे हैं। ये अलग बात है कि बरेलियंस फैमिली की लेडीज को ही सरोगेट मदर बनाना प्रिफर कर रहे हैं। टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर के रिकॉर्ड की मानें तो बरेली में हर महीने करीब 20 कपल्स सरोगेसी के लिए कॉन्टैक्ट करते हैं।What is surrogacy


सरोगेट मदर की अवधारणा के तहत एक औरत किसी दूसरे कपल के बच्चे को अपनी कोख में पालती है और जन्म देती है। सरोगेसी प्रक्रिया की दो कैटेगरी होती हैं। जस्टेशनल और जेनेटिक सरोगसी।

जस्टेशनल सरोगेसी :  इसके तहत हसबैंड के स्पर्म और वाइफ के एग लेकर लैबोरेटरी में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक की मदद से भ्रूण विकसित किया जाता है। इसके बाद इस भ्रूण को किराए की कोख देने वाली या सरोगेट मदर की भूमिका अदा वाली महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया से उत्पन्न बेबी पर सरोगेट महिला का कोई जेनेटिक प्रभाव नहीं होता। जेनेटिक सरोगेसी: यह तब एडॉप्ट की जाती है जब वाइफ अंडे उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होती है, तो हसबैंड के स्पर्म को ही सरोगेट मदर के गर्भ में इंजेक्ट कर दिया जाता है। इस स्थिति में भ्रूण सरोगेट महिला के गर्भ में विकसित होता है। इसलिए इस भ्रूण से विकसित होने वाले बेबी जेनेटिक रूप से सरोगेट महिला से जुड़ा होता है।इस संबंध में नहीं है कानून

आपको जानकर हैरानी होगी कि इंडिया में सरोगसी के संबंध में कोई कानून नहीं बना है। इसलिए ये कहा जा सकता है कि इंडिया में किराए की कोख के दरवाजे सभी के लिए ओपन हैं। यही कारण है कि फॉरनर कपल सरोगेसी के लिए इंडिया का रुख करते हैं। उन्हें इसके लिए किसी तरह के पेंच में भी फंसना नहीं पड़ता। यहां ईजिली सरोगेसी के जरिए उन्हें बच्चे की खुशी मिल जाती है। हालांकि अब गुजरात, कोलकाता, दिल्ली जैसे शहर सरोगेसी के लिए जाने जाते हैं मगर अब बरेली में भी इसकी रिक्वायरमेंट बढ़ रही है। टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर चला रही डॉक्टर ने बताया कि सरोगेसी के लिए हर मंथ अमूमन 20 से ज्यादा पेशेंट उनसे संपर्क करते हैं। ज्यादातर पेशेंट्स अपने साथ सरोगेट मदर को भी लाते हैं। इसलिए बढ़ रही सरोगेसी यूं तो सरोगेसी मेडिकली अनफिट होने की वजह से निसंतान कपल के लिए वरदान से कम नहीं लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है। आजकल की हाईटेक और प्रोफेशनल लाइफस्टाइल के चलते लेडीज प्रेगनेंसी का लॉन्ग ड्यूरेशन सस्टेन नहीं करना चाहती हैं। ऐसे में सरोगेसी सटीक ऑप्शन है। बिना कॉम्प्लीकेशन के परिवार बढ़ जाता है। इसलिए व्यापार का रूप ले चुकी सरोगेसी अब ट्रेंड बन गई है। दो तरह की सरोगेट मदरडॉक्टर्स केेअकॉर्डिंग सिटी में सरोगेसी के लिए ज्यादातर कपल्स रिलेटिव को ही अपने साथ लाते हैं। हालांकि एक समय वो भी था जब इंडियन सोसाइटी में किराए की कोख का लेन-देन गुप-चुप तरीके से चलता था। काफी हद तक इसके पीछे मदद की भावना रहती थी लेकिन अब यह बिजनेस का रूप ले चुकी है। ऐसे में कॉमर्शियल और एल्क्रस्टीक सरोगेसी दो ऑप्शंस  मौजूद हैं।
कॉमर्शियल सरोगेसी :  इसमें किराए की कोख उपलब्ध करवाने वाली महिला के साथ डेढ़ साल से लेकर 2 साल का कॉन्ट्रैक्ट होता है। ये महिला शुरू से अंत तक परिवार के साथ ही रहती है। ऐसे में इलाज, न्यूट्रीशन, रहना-खाना, बाहर जाने का खर्च सब कुछ चार्ज करती है। इसका खर्च सरोगेट मदर और कपल की मुच्अल अंडरस्टैंडिंग पर डिपेंड करता है। सोर्सेज के मुताबिक इसका खर्च 2 लाख से 10 लाख तक जाता है। एल्क्रस्टीक कैटेगरी :  इसमें सरोगेट मदर जितना खर्च एक्चुअल में होता है, उतना ही चार्ज करती है। दोनों ही कैटेगरी में कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है, जिसमें ये निश्चित किया जाता है कि सरोगेट मदर बाद में बच्चे से कोई संबंध नहीं रखेगी। एल्क्रस्टीक सरोगेसी के केस में सिर्फ 40,000 से 90,000 रुपए तक खर्च आता हैं। बेसिक रिक्वायरमेंट सरोगेट मदर बनने के लिए फिजिकली फिट होना जरूरी है। तभी तो डॉक्टर्स एक बार मां बन चुकी महिलाओं को ही सरोगेसी के लिए प्रिफर करते हैं। इसे एडॉप्ट करने से पहले सरोगेट मदर और कपल को उचित जानकारी दी जाती है। यही नहीं लिखित तौर पर यह भी तय कर लिया जाता है कि सरोगेट मदर बच्चे को जन्म के तुरंत बाद कपल को सौंप देगी। इसलिए बरेली में ज्यादातर मामलों में कपल्स अपने परिवार की लेडीज को ही प्राथमिकता देते हैं।Negativesपुख्ता कानून के अभाव में सरोगेसी अपने पीछे कई सवाल छोड़ जाती है। जिसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है-
-अगर सरोगेट मदर की डिलीवरी के दौरान मौत हो जाए तो किसकी जिम्मेदारी होगी। -अगर डिलीवरी के बाद जुड़वा बच्चे पैदा होते हैं, तो क्या करना चाहिए। -सरोगेट मदर की मदद लेने वाले कपल की जरूरत क्या वाकई जायज है। -किराए की कोख से पैदा होने वाले बच्चों का इस्तेमाल अंगों की खरीद-फरोख्त के लिए किया जा सकता है। -फॉरेन से आने वाले कपल्स बच्चे को लेकर विदेश चले जाते हैं ऐसे में बच्चे की मॉनिटरिंग नहीं हो सकती है। -ऐसे बच्चों का इस्तेमाल देह व्यापार के लिए भी किया जा सकता है। सरोगेसी मेडिकल सांइस की बेहतरीन देन है। उन परिवारों में जहां बच्चा नहीं है, सरोगेसी के जरिए आसानी से किलकारियां गूंज सकती हैं। मेडिकली ये सेफ ऑप्शन है। बरेली में पिछले कुछ सालों में सरोगेसी के लिए इच्छुक कपल्स की संख्या भी बढ़ी है। -डॉ। लतिका अग्रवाल, सार्थक टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर बरेली में सरोगेसी का ट्रेंड दिल्ली और लखनऊ की तर्ज पर बढ़ा है। यहां बाहर के कपल्स सरोगेसी के लिए आने लगे हैं। निसंतान कपल्स के लिए सरोगेसी किसी वरदान से कम नहीं है। -देवेंद्र डंग, स्वास्थ्य चेतना फाउंडेशन

Posted By: Inextlive