Bareilly: स्टूडेंट्स यूनियन इलेक्शन की डेट डिक्लेयर होते ही कैंपस ही नहीं आउटर एरिया भी इसकी धमक से गूंजने लगे हैं. कैंडीडेट्स कैंपेनिंग के हर दांव खेल रहे हैं लेकिन इन सबके बीच उन्हें लिंगदोह कमेटी और यूनिवर्सिटी के अध्यादेश के रूल्स का खौफ खाए जा रहा है. उनको डर सताने लगा है कि टिकट मिलने के बाद भी कहीं रूल्स के चलते उनका नॉमिनेशन खारिज न हो जाए. लिंगदोह और अध्यादेश के कई रूल्स की स्थिति अभी साफ नहीं हुई हैं.


सिर चढ़ी नेतागीरीआरयू और बीसीबी में लास्ट स्टूडेंट्स यूनियन इलेक्शन 2006 में हुए। 6 वर्ष बाद जब दोबारा छात्र संघ बहाल हुआ तो पॉलिटिक्स में इंट्रेस्ट रखने वाले हर स्टूडेंट्स का मन खुश हो गया। जो काफी पहले कैंपस का दामन छोड़ चुके थे उनकी भावनाएं भी हिलारे मारने लगीं और वे जुगाड़ से एडमिशन लेने लगे। कुछ तो अभी भी एडमिशन लेने के लिए जुगत भिड़ाए हुए हैं।हाथ न मलते रह जाएं


इससे पहले जितनी बार भी स्टूडेंट्स इलेक्शंस हुए हैं, उनके लिए कभी कोड ऑफ कंडक्ट जारी नहीं हुआ। यही कारण है कि अधिकांश इलेक्शंस दागदार रहे। कोई इलेक्शन ऐसा कंडक्ट नहीं हुआ जिसमें बवाल व हंगामा न हुआ हो। फायरिंग और मारपीट तक हो चुकी है लेकिन अब 6 साल बाद की फिजा बिलकुल अलग है। लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ाई से पालन करने का सख्त निर्देश दिया है। इसमें कैंडीडेट्स की अहर्ता, कैंडीडेट्स की प्रोफाइल, कैंपेनिंग का तरीका, इलेक्शन के खर्च समेत तमाम रूल्स और गाइडलाइंस जारी की गई हैं। कैंडीडेट्स इन रूल्स को फॉलो नहीं करते हैं तो उनका नॉमिनेशन कैंसिल करने के निर्देश हैं। ऐसी स्थिति पैदा न हो इसलिए वे फूंंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं।RU ने भी कुछ क्लीयर नहीं किया

जहां कोड ऑफ कंडक्ट को लेकर कैंडीडेट्स कंफ्यूज हैं वहीं आरयू की इलेक्शन कमेटी ने कई रूल्स को लेकर स्थिति साफ नहीं की है। उनके अध्यादेश और लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों में कई ऐसे प्वाइंट्स हैं जिनको लेकर कैंडीडेट्स का इलेक्शन लडऩा दांव पर लगा हुआ है। ऐसे में कैंडीडेट्स के मन में यह डर घर कर गया है कि कहीं इलेक्शन लडऩे के उनके मंसूबों पर पानी न फिर जाए।इन points पर है confusion-लिंगदोह कमेटी के अनुसार किसी भी कैंडीडेट के विरुद्ध कोई आपराधिक मुकदमा व अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में कोई अपनी दुश्मनी निकालने के लिए किसी के खिलाफ जानबूझकर एफआईआर दर्ज करा दे तो क्या होगा।-इंप्रूवमेंट अभी कंडक्ट हो रहा है। जो फेल स्टूडेंट हैं, उनका एडमिशन नहीं हुआ है। इलेक्शन से पहले रिजल्ट डिक्लेयर नहीं हुआ तो ऐसे स्टूडेंट्स क्या इलेक्शन लड़ पाएंगे या फिर वोटर्स बन पाएंगे।-लिंगदोह ने यूजी के कैंडीडेट्स के लिए इलेक्शन लडऩे की एज 17 से 22 वर्ष, पीजी के लिए 24 से 25 वर्ष होनी चाहिए लेकिन जो कैंडीडेट्स 4 से पांच वर्ष के यूजी कोर्स कर रहे हों और जो डबल पीजी कर रहे हैं उनकी एज में क्या रिलेक्शेसन है, उसका कोई उल्लेख नहीं है।

-लिंगदोह के अनुसार कैंडीडेट्स कॉलेज व यूनिवर्सिटी का रेगुलर स्टूडेंट्स होना चाहिए और उसकी अटेंडेंस कम से कम 75 परसेंट पूरी होनी चाहिए लेकिन जिन्होंने गैप के बाद इस वर्ष एडमिशन लिया है उनको कैसे जस्टिफाई करेंगे।-लिंगदोह की सिफारिशों के अनुसार इलेक्शन में खर्च की लिमिट 5,000 रुपए होनी चाहिए। इसके इतर यूनिवर्सिटी ने अपने अध्यादेश में इलेक्शन खर्च की लिमिट 10 हजार रुपए तय की है।लिंगदोह की सिफारिशों पर फस्र्ट टाइम इलेक्शन कंडक्ट हो रहा है। न स्टूडेंट्स और न ही कैंडीडेट्स को इसकी सही इंफॉर्मेशन है। अगर कोई कैंडीडेट एक कॉलेज से दूसरे संस्थान में इसी वर्ष एडमिशन लेता है तो उसका कैसे निर्णय करेंगे। ऐसे तमाम रूल्स पर काफी कंफ्यूजन है।- आशुतोष सिंह, एनएसयूआईजो फेल स्टूडेंट्स इंप्रूवमेंट एग्जाम दे रहे हैं, उनका रिजल्ट तो अभी डिक्लेयर नहीं हो सकता और तब तक वे एडमिशन भी नहीं ले सकते। ऐसे में तो वे अधर में लटक गए हैं। न वोटर्स बन सकते हैं और न ही इलेक्शन लड़ सकते हैं। उनके लिए क्या रूल है, कुछ क्लीयर ही नहीं है।- शरद यादव, एनएसयूआई
यूनिवर्सिटी ने प्रोफेशनल कोर्स कर रहे कैंडीडेट्स को बाकी यूजी स्टूडेंट्स से अलग नहीं किया है। जबकि लिंगदोह में उनके लिए अलग-अलग एज डिसाइड है। ऐसी स्थिति में काफी कंफ्यूजन क्रिएट हो रहा है। कहीं वे एज फैक्टर के चलते इलेक्शन लडऩे से हाथ न धो बैठें।- जवाहर लाल, एबीवीपीलिंगदोह और यूनिवर्सिटी के बनाए नियमों में एज फैक्टर काफी कंफ्यूज कर रहा है। कई कैंडीडेट्स उस निर्धारित एज से कम के हैं और कई उसी कोर्स में हैं लेकिन उनकी एज ज्यादा हो रही है। अभी कुछ स्पष्ट नहीं है। उनको डर है कि यूनिवर्सिटी और कॉलेज कहीं उनका नॉमिनेशन कैंसिल न कर दे।- विशाल यादव, सछासReport by: Abhishek Singh

Posted By: Inextlive