बस तू मेरी आवाज से आवाज मिला दे फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता..... शायर मुन्नवर राना के इन चंद अल्फाजों के साथ बरेली के लोगों से शांति कायम करने की अपील की है लाखों दिलों पर राज करने वाले देश के अजीम शायरों ने. इन्होंने अपनी आवाज में हर शख्स को अवाज मिला कर देखने की अपील की है. इंसानियत को धर्म से ऊपर रखते हुए इन्होंने कहा है कि इंसानियत की निगाह कभी शर्मिंदा नहीं होती है. लोगों को अपनी जिद छोड़ कर शांति से रहने को कहते हुए कहा है... मुहब्बत रोज पत्थर से हमें इन्सां बनाती है.... कुणाल की स्पेशल रिपोर्ट.
By: Inextlive
Updated Date: Wed, 25 Jul 2012 03:16 PM (IST)
राहत इंदौरी कहते हैंबरेली से खबर आई तो चौंक गया कि अमन पसंद इस शहर में यह क्या हो गया? दंगे हमारे मुल्क की पेशानी पर दाग हैं। बेरेली जैसे शहर में जिसका रुतबा पूरे मुल्क में एक सौहाद्र के प्रतीक के रूम में है वहां इस तरह का संप्रदायिक तनाव अफसोस जनक है। जिनके साथ हमरा वर्षों पुराना नाता होता है उन्हें ही हम नफरतों से निगाह से जब देखने लगते हैं तो यह परेशानी में डालने वाली बात है। हमें अपनी नजरों से इतना भी नहीं गिर जाना चाहिए कि आना वाला वक्त हम पर शर्मिंदा हो। मेरे अजीज दोस्त बशीर बद्र ने एक मुशायरे में कुछ इन्हीं हालातों पर अर्ज करते हुए कहा थानफरतों का सफर बस कदम दो कदमतुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएंगे.
नफरत हमें एक दूसरे की नजरों से गिरा देती है। हमें रिश्तों की अहमियत को समझने की जरूरत है। मुल्क में जो रिश्ते वर्षों से चले आ रहे हैं उन्हें पल भर में यूं तोड़ देना कहां की शराफत है। बरेली के अमनपसंद लोगों से मैं कहना चाहूंगा कि वे बचपना छोड़ कर तरक्की की राह अपनाएं। ऊपर वाले से दिल से दुआ करता हूं कि बरेली में दंगे की आग को और न भड़कने दे।
शायर मुनव्वर राना ने कहा.अफसोसजनक है बरेली में सांप्रदायिक तनाव। हमने तो उस हिन्दुस्तान में जन्म लिया है जहां सभी एक दूसरे से मिलजुलकर रहते थे। मुल्क को न जाने किसकी नजर लगती जा रही है। बहुत पहले की बात है मैं जब पाकिस्तान एक मुशायरे के सिलसिले में गया था। एक बड़े अखबार के पत्रकार ने मुझसे यह सवाल किया कि आप हिन्दुस्तान में रहते हैं आपको डर नहीं लगता। पहले तो मुझे उसके प्रश्न पर हंसी आई कि यह कैसा सवाल है। फिर मैंने उससे कहा डर कैसा हम तो 85 करोड़ हिन्दुस्तानियों की निगरानी में रहते हैं। इसके बाद उसकी बोलती बंद हो गई। उस पत्रकार को ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी। बरेली की समझदार और परिपक्व जनता को समझना होगा कि राजनीति कहां से हो रही है। मैंने एक मुशायरे में कहा भी था कि
मुहब्बत करने वालों में यह झगड़ा डाल देती हैसियासत दोस्ती की जड़ में मठ्ठा डाल देती हैतवायफ की तरह अपने गलत कामों के चेहरे परहुकूमत मंदिर-ओ-मस्जिद का पर्दा डाल देती है
मेरे दोस्तों बरेली तो मोहब्बतों का शहर कहलाता है। यहां नफरत की जगह कहां है। अमन का पैगाम देता यह शहर क्यों दंगाग्रस्त हो गया है यह गौर करने वाली बात है। मैं आई-नेक्स्ट के माध्यम से बरेली की जनता से कहना चाहता हूं कि धर्म की भाषा छोड़ कर इंसानियत की बात करें।
गले मिलने को आपस में दुआएं रोज आती हैंअभी मस्जिद के दरवाजे पे मांएं रोज आती हैंअभी रोशन है चाहत के दीये हम सबकी आंखों मेंबुझाने के लिए पागल हवाएं रोज आती हैंकोई मरता नहीं है हां मगर सब टूट जाते हैंहमारे शहर में ऐसी बबाएं रोज आती हैंये सच है नफरतों की आग ने सब कुछ जला डालामगर उम्मीद की ठंडी हवाएं रोज आती हैं.Report by: Kunal
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