अधूरे projects कब होंगे पूरे?
कागजों पर लाल फाटक ब्रिज 3 साल पहले ब्रिज कॉरपोरेशन के प्रपोजल पर इस पुल का डिजाइन रेलवे इंजीनियर्स ने फाइनल कर दिया था। दरअसल काफी समय से यहां पुल की दरकार महसूस की जा रही थी। लम्बी जद्दोजहद के बाद मामला रेल मंत्रालय भेजा गया, जो अब राज्य सरकार और रेल मंत्रालय के बीच फंसा हुआ है। डबल रेलवे क्रॉसिंग के चलते बरेली-बदायूं ट्रैक पर आम आदमी के सामने आए दिन समस्या खड़ी हो जाती है। हाशिए पर dream project
लालकुआं से मथुरा के बीच मीटर गेज को ब्रॉड गेज में कन्वर्ट करना एनई रेलवे का ड्रीम प्रोजेक्ट था। यह पिछले 3 सालों से कछुआ चाल की गति से डेवलप हो रहा है। 4 साल पहले बजट में यह प्रपोजल पास किया गया था। पूर्वोत्तर रेलवे श्रमिक संघ के सचिव जेएस भदौरिया ने बताया कि बजट के अभाव में सिर्फ 100 किमी ट्रैक (कासगंज से मथुरा के बीच) ही कन्वर्ट किया जा सका है। कासगंज से बरेली में अभी तक काम पेंडिंग है। बरेली से लालकुआं ट्रैक पर काम चल रहा है लेकिन हालात को देखते हुए लगता है कि इसे पूरा होने में 2 साल और लग जाएंगे। अब इस चक्कर में हल्द्वानी रूट ब्लॉक चल रहा है। इससे पैसेंजर्स के सामने बस के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है।माल की loading बड़ी समस्या व्यापारियों को माल मंगवाना हो या बाहर के मार्केट्स तक पहुंचाना हो, महंगा माल भाड़ा उनके लिए बड़ी प्रॉब्लम है। दरअसल पिछले 5 साल से बरेली जंक्शन से माल की लोडिंग और अनलोडिंग रोक दी गई है। पहले व्यापारी बरेली जंक्शन और सीबीगंज से लोडिंग और अनलोडिंग करते थे। जंक्शन पर यह सुविधा मिलने से माल भाड़ा कम पड़ता था। वहीं अब उन्हें माल की लोडिंग के लिए चिनेहटी तक जाना होता है। शहामतगंज के आढ़त व्यापारी जेपी पांडे बताते हैं कि ट्रांसपोर्ट में रेलवे सबसे सस्ता साधन है। जबकि अब ट्रक से माल भेजने पर भाड़ा कहीं ज्यादा पड़ता है।पता नहीं कब आएंगे गार्डर?रेलवे की उदासीनता के चलते हार्टमैन ओवरब्रिज का काम 8 महीने से रुका हुआ है। इसका खामियाजा आम आदमी को उठाना पड़ रहा है। दरअसल ओवरब्रिज को कंप्लीट करने के लिए पांच गार्डर की दरकार है। रेलवे ने गोरखपुर की एक कंपनी को गार्डर के लिए ऑर्डर प्लेस किया था, जो अब तक बनकर नहीं आ सके हैं। इस वजह से ओवरब्रिज रेडी नहीं हो सका है। खास बात यह है कि इस बाबत कोई अधिकारी भी कुछ कहने को तैयार नहीं है।
पता है पर कार्रवाई नहीं जंक्शन शहर का सबसे पुराना स्टेशन है। इसके ठीक सामने और जीआरपी ऑफिस के बगल में पार्किंग के ठेके उठाए गए हैं। यहां टू व्हीलर के लिए 10 रुपए और फोर व्हीलर के 20 रुपए चार्ज किए जा रहे हैं जबकि बीएससी के सर्किल रेट के मुताबिक टू व्हीलर के लिए 5 रुपए और फोर व्हीलर के लिए 10 रुपए का प्रावधान है। ऐसा नहीं है कि रेलवे को कुछ पता नहीं है। दिखावटी कार्रवाई के नाम पर कई अभियान चलाए गए लेकिन वसूली बदस्तूर जारी है।स्टाफ क्राइसिसएक महीना पहले एक संटिंगकर्मी की डिब्बा सेट करते समय मौत हो गई थी। जिस ड्यूटी को करते हुए कर्मचारी की मौत हुई थी, दरअसल वह ड्यूटी उसकी नहीं थी। रेलवे में कर्मचारियों की कमी के चलते उसे अपने काम के अलावा दूसरी ड्यूटी सौंपी गई थी। यह एग्जाम्पल काफी है यह बताने के लिए कि रेलवे किस कदर स्टाफ की कमी से जूझ रहा है। कंडीशन ये है कि बरेली मंडल में 400 से ज्यादा मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग हैं, जिन पर आए दिन कोई न कोई एक्सीडेंट होता रहता है।
पांच साल में हताहतों के आकड़ेवर्ष 2006-07 2007-08 2008-09 2009-10 2010-11
घायल 68 46 86 103 128मृत 6 2 3 2 11कुल 74 48 89 105 139ये सपना भी रह गया अधूरा बरेलियंस समेत बाहर से आने वाले पैसेंजर्स को जंक्शन पर एक बेहतर फूड कोर्ट की जरूरत महसूस होती है। रेलवे ने जंक्शन के ठीक सामने पड़ी खाली जगह पर मल्टी स्टोरी फूड कॉर्नर खोलने का प्लान भी बनाया था। प्लान एग्जीक्यूट करने के लिए उस जगह डेरा जमाए वेंडर्स को जगह से हटने का नोटिस जारी किया गया। प्लान पर पानी तब फिर गया जब वेंडर्स ने कोर्ट की शरण ले ली और कोर्ट ने उनके फेवर में डिसीजन दे दिया। अब पैसेंजर्स जंक्शन के बाहर गंदगी के बीच बन रहे खाने को खरीदने के लिए मजबूर हैं।नहीं हो सका inspection
फाइनेंशियल ईयर 2010-11 के रेल बजट में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने लगभग 250 रूट्स पर इंस्पेक्शन करवाने की घोषणा की थी। इन रूट्स में बरेली मंडल भी शामिल था। इंस्पेक्शन के बाद उम्मीद थी कि कई पेंडिंग प्रोजेक्ट्स ऑन ट्रैक आ जाएंगे, लाइंस ब्रॉड गेज में कन्वर्ट हो जाएंगी लेकिन इंस्पेक्शन ही नहीं हुआ। पूर्वोत्तर रेलवे के विस्तार के लिए की गई घोषणा के बाद अब तक सिर्फ 177 रूट्स का इंस्पेक्शन किया जा सका है, जबकि अगले रेल बजट की बारी आ गई।यहां नहीं हुआ conversionटनकपुर- जौलजीबी रेलवे ट्रैकनैनीताल- काठगोदाम रेलवे ट्रैकबलरामपुर- खलीलाबाद रेलवे ट्रैककपिलवस्तु- कुशीनगर रेलवे ट्रैक