Bareilly: शहर की आबोहवा में लगातार जहर घुल रहा है पर जिम्मेदारों की नींद खुलने का नाम नहीं ले रही है. आलम यह कि बढ़ता वायु और ध्वनि प्रदूषण लोगों की हेल्थ बिगाड़ रहा है इसके बावजूद पॉल्यूशन पर रोकथाम की कवायद सिर्फ सरकारी फाइलों में चलती है. इसका अंदाजा महज इसी बात से लगाया जा सकता है कि सिटी में एक लाख वाहन से अधिक वाहनों के प्रदूषण की जांच के लिए महज 4 सेंटर बनाए गए हैं. एक तो ये ऊंट के मुंह में जीरा समान है. उस पर इनमें से कई सिर्फ शोपीस हैं. जहां प्रदूषण जांच का बोर्ड तो दिखता है पर जांच करने वाले कभी-कभार ही नजर आते हैं. शहर में बढ़ते प्रदूषण और प्रशासनिक सुस्ती की पोल खोलती प्रशांत कुमार सिंह की रिपोर्ट.


हम भी कुछ कम जिम्मेदार नहींFact fileस्कूटर -     17471मोपेड -     1649मोटर साइकिल -     185203कार -     14783जीप -     3042ट्रैक्टर -     17355दस चक्का ट्रक -     3698छ: चक्का ट्रक -     3599फोर व्हीलर -    2742थ्री व्हीलर -     2451नोट : 31 जुलाई, 2012 तक रजिस्टर्ड वाहनों की संख्याकानफोड़ू शोर और जहरीली हवाशहर में वायु और ध्वनि प्रदूषण दोनों ही स्टैंडर्ड मानक से अधिक है। एयर पॉल्यूशन के लिए स्टैडर्ड मानक पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा 100 माइक्रोग्राम प्रति मीटर ट्यूब है। जबकि बोर्ड द्वारा कुछ दिनों पहले मापे गए पॉल्यूशन की बात की जाए तो, सिटी में आरएसपीएम 112 और एसपीएम की मात्रा 278 माइक्रोग्राम प्रति मीटर ट्यूब है। इसके अलावा कामर्शियल और आबादी वाले इलाके मे ध्वनि प्रदूषण मानक से अधिक मापा गया है।व्हीकल्स की बढ़ती संख्या से खतरा


पॉल्यूशन बढऩे का मेन वजह कही न कही लगातार बढ़ रहे व्हीकल्स की संख्या में लगातार बढ़ता जा रहा है। व्हीकल्स में लगे कानफोडू़ हार्न और उससे निकलने वाला धुआं पॉल्यूशन के बढऩे का सबसे बड़ा वजह बनता जा रहा है। आरटीओ ऑफिस में रजिस्टर्ड्र व्हीकल्स बाइक, जीप, ऑटो, टैक्टर, ट्रक और बस सहित अन्य व्हीकल्स की संख्या बरेली मेे 2 लाख से भी अधिक है। इसके बावजूद वाहने के प्रदूषण की जांच के लिए कोई प्रॉपर व्यवस्था नहीं है।गंदगी फैला रही इंडस्ट्री पर बैन का प्रावधानइंडस्ट्रीज द्वारा नियम को उल्लंघन करने पर रीजनल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा रिपोर्ट तैयार कर लखनऊ बोर्ड मुख्यालय को भेजी जाती है। रिपोर्ट के बाद मुख्यालय द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है। रिस्पांस न मिलने पर बंदी आदेश जारी किया जाता है। इसके बावूजद भी नियम की अनदेखी कह जाती है तो जुर्माना के साथ 6 साल तक सजा का प्रावधान है।शोर से संकट-कानों में झन झनाहट।-कम सुनाई पडऩा।-सिर में दर्द बना रहना।-ब्लड प्रेशर बढऩा।-चिड़चिड़ा पन ।-थकावट महसूस होना।-आईक्यू पर भी बुरा असरक्या करें-प्रेशर हार्न न लगाएं-बेवजह हार्न का यूज न करें-दिक्कत हो तो फौरन डॉक्टर से मिलेंवायु प्रदूषण से आफतनजला, खांसी-जुखाम, दमा, गले में खरास होना, एलर्जी संबंधी बीमारी, आंख की बीमारीउपाय-हैंकी या मॉस का यूज करना चाहिए।-गंदा पानी बहाव के लिए बंद नाली का प्रयोग करे।-अपने आस-पास साफ सफाई रखे।City में pollution एक नजर मेंमई 2012 की रिपोर्ट वायु प्रदूषण -SPM (सस्पेंडेट पार्टिकूलेट मैटर) : 176

-RSPM (रेस्पाइबिल सस्पेंडेट पार्टिकूलेट मैटर) - 187नोट: जबकि वायु प्रदूषण का स्टैंडर्ड मानक SPM और RSPM 100 - 100 माइक्रोग्राम पर मीटर ट्यूब होना चाहिए।कोई नहीं कराता जांच सिटी में व्हीकल्स के माध्यम से बढऩे वाले पॉल्यूशन के लिए हम भी कम जिम्मेदार नहीं है। दो लाख से अधिक व्हीकल्स होने के बाद भी सिटी के पॉल्यूशन जांच सेंटर पर बमुश्किल कुछ ही लोग व्हीकल्स की जांच कराने पहुंचते है। एक जांच सेंटर पर महीने में मात्र  35 से 50 लोग ही व्हीकल्स से निकलने वाले धुएं का जांच कराते है। जबकि टू व्हीलर जांच फीस 30 और थ्री, फोर, बस, ट्रक का जांच फीस मात्र 60 रुपए है। दिल्ली राजस्थान और गुजरात में तीन महीने के लिए यह शर्टिफिकेट वैलिड होता है। वही यूपी में यह शर्टिफिकेट छ: महीने के लिए मान्य है। इसके बावजूद लोग व्हीकल्स की जांच न कराकर कही न कही बढ़ रहे पॉल्यूशन में अपनी भागीदारी निभा रहे है।व्हीकल्स पर जुर्माने का प्रावधान

सिटी में फर्राटा भर रही धुआं उगलती व्हीकल्स पर आरटीओं द्वारा जुर्माने का भी प्रावधान है। जांच में व्हीकल्स से धुआं निकलने की स्थिति में व्हीकल्स ओनर पर एक हजार रूपए बतौर जुर्माना लगाया जाता है। वैलिड शर्टिफिकेट होने के बाद भी अगर व्हीकल्स से धुआं निकलने का शिकायत पाया जाता है। तक भी आरटीओं द्वारा जुर्माना लगाया जाता है।Respirable Suspended Particulate Matter(RSPM)हवा के साथ उडऩे वाले 4.5 माइक्रॉन से छोटे कणों को आरएसपीएम कहते हैं। हवा के साथ उडऩे वाले इससे बड़े पार्टिकल नेजल मेंबे्रन से फिल्टर हो जाते हैं लेकिन आरएसपीएम को नेजल मेंब्रेन फिल्टर नहीं कर पाते। इस वजह से ये पार्टिकल्स सीधे लंग्स तक पहुंच जाते हैं। ये पार्टिकल्स डिसकंफर्ट और स्नीजिंग से लेकर अस्थमा, माइग्रेन, कैंसर, हार्ट अटैक जैसी घातक बीमरियों के कारण हो सकते हैं। आरएसपीएम नवजात बच्चों के लिए ज्यादा हानिकारक होते हैं। मास्क और कॉटन के कपड़े का यूज कर इसे लंग्स तक पहुंचने से रोका जा सकता है।Suspended Particulate Matter(SPM)हवा के साथ उडऩे वाले 100 माइक्रोमीटर से छोटे पार्टिकल्स को एसपीएम कहा जाता है। एसपीएम का मेन सोर्स मोटर व्हीकल्स, इंडस्ट्रियल प्रॉसेस और पॉवर जेनरेशन है। वहीं धूल के पार्टिकल्स, बैक्टिरिया और वायरस भी एसपीएम की कैटेगरी में आते हैं। इनकी वजह से ब्लड में कार्बन डाई ऑक्साइड का ऑक्सीजन से रिह्रश्वलेसमेंट का प्रॉसेस स्लो हो जाता है, जिससे ब्रीदिंग में प्रॉब्लम की वजह से डेथ भी हो सकती है।

Posted By: Inextlive