- 1920 के बाद से 56 प्लांट्स की किस्मे हुई विलुप्त

- बढ़ता टेंप्रेचर और विदेशी प्लांट बने वजह

- वट वृक्ष के जरिए बचा सकते है एंवायरमेंट को

BAREILLY: पूरा देश आज पॉल्यूटेड एंवायरमेंट में सांस लेने को मजबूर है। एयर पॉल्यूशन हो या वॉटरहर तरह का प्रदूषण लोगों को बस बीमारियों की सौगात दे रहा है। अगर यही सिचुएशन बनी रही तो अगले कुछ सालों में हालात और भयावह हो जाएंगे। इस बात की पुष्टि एक्सपर्ट भी करते हैं। बरेली कॉलेज के बॉटनी डिपार्टमेंट द्वारा किए गए एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि 1920 के बाद से कई प्लांट की प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं, जो एंवॉयरमेंट के लिए बिल्कुल अच्छा संकेत नहीं है। रिसचर्स इस सबके पीछे की वजह टेंप्रेचर में हो रही बढ़ोतरी व विदेशी प्लांट मान रहे हैं।

तीन साल की रिसर्च

साल 2008 से 2011 के बीच विभिन्न प्लांट्स के बारे में रिसर्च करने वाली टीम के सदस्यों ने बताया कि रिसर्च में हम लोगों ने 56 प्लांट की प्रजातियों को विलुप्त पाया। 1920 में प्लांट साइंटिस्ट जेएफ दफ्थ ने बरेली डिस्ट्रिक्ट में टोटल 146 किस्म के प्रजातियों की खोज की थी, लेकिन 2008 तक इनमें से 56 प्रजातियों का गायब हो गई। इसके बाद कई नई प्रजातियों के प्लांट्स डिस्ट्रिक्ट में पैदा हो गए। इस वक्त बरेली डिस्ट्रिक्ट में कुल 592 प्लांट की प्रजातियां मौजूद हैं।

तराई नहीं ड्राई क्षेत्र प्रभावित

मैक्सिमम विलुप्त प्लांट ड्राई क्षेत्र के ही हैं। हल्द्वानी जैसे तराई क्षेत्र के प्लांट पर उतना इफेक्ट नहीं देखने को मिला है। रिसर्चर्स का कहना है कि तराई क्षेत्र में जितनी भी प्लांट की प्रजातियां हैं, वे बढ़ते टेंप्रेचर से लड़ने में सक्षम हैं। वहीं बरेली और इसके आस पास के एरिया जैसे ड्राई क्षेत्र में ये ज्यादा तापमान को सहन नहीं कर पाती और खत्म हो जाती हैं।

विदेशी प्लांट भी घातक

एंवायरमेंट में हो रहे बदलाव का सबसे बड़ा कारण यूकिलिप्टस, आस्ट्रेलियन बबूल, पार्थिनियम, लेंटाना, जलकुंभी जैसे प्लांट हैं। जलकुंभी प्राय: हालैंड का प्लांट है। तालाब में उगने वाले ये प्लांट पानी और जीव-जन्तुओं के लिए काफी डेंजरस होते हैं। लेंटाना की पत्ती अगर एक ही जगह टूट-टूट कर गिरती रहे तो वह जमीन बंजर भी हो जाती है। वहां पर किसी प्रकार का प्लांटेशन या खेती नहीं की जा सकती है। वहीं मूलरूप से मैक्सिको में उगने वाले प्लांट पार्थिनियम को गाजर घास के नाम से भी जाना जाता है। इसके आस-पास कोई और चीज उग ही नहीं सकती। इसे इनहेल करने से टीबी होने के चांसेज बढ़ जाते हैं।

एंवॉयरमेंट के अनुकूल वट प्रजातियां

गुलर, पाकड़, पीपल, बरगद, बेल, नीम, सीता अशोक, ये सब प्लांट वट प्रजाति के अंदर आते हैं। इनमें ऑक्सीजन का परसेंटेज सबसे अधिक होता है। यही नहीं ये पौधे टेंप्रेचेर को भी मेंटेन करने में हेल्पफुल होते हैं। एक पाकड़ का ट्री 50 यूकिलिफ्टस के बराबर होता है।

CSIR को भेजी गई report

बरेली कॉलेज के बॉटनी डिपार्टमेंट द्वारा किए गए रिसर्च की रिपोर्ट काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (सीएसआईआर) को भेज दी गई है। विलुप्त हो रहे प्लांट्स को बचाने के लिए डिफरेंट कीड़ों की भी खोज की जा रही है, जो प्लांट को हार्मफुल तत्वों से बचाने में मदद कर सकें।

बरेली डिस्ट्रिक्ट में जितने भी प्लांट हैं, उन पर हमने रिसर्च किए। कई प्लांट समय के साथ विलुप्त हो गए हैं। कुछ विदेशी प्लांट और बढ़ता टेंप्रेचर इसके पीछे की वजह हैं। एंवॉयरमेंट को बचाने के लिए वट वृक्ष कारगर साबित हो सकते हैं।

-डॉ। आलोक खरे, एसोसिएट प्रोफेसर, बॉटनी डिपार्टमेंट, बरेली कॉलेज

Posted By: Inextlive