आधे भी नहीं बचे जेनेरिक दवाखाने
बरेली (ब्यूरो)। आम लोग भी इलाज करा सकें। महंगी दवाओं को लेकर उन्हें परेशानी न हो इसी सोच के साथ प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र ओपन किए गए थे। जिले भर में 20 से अधिक जन औषधि केन्द्र ओपन हुए लेकिन डॉक्टर्स और पेशेंट्स की अनदेखी के चलते केन्द्र सरकार की इस योजना को झटका लगा है। इतना ही नहीं इसमें सबसे अहम रोल डॉक्टर्स का है जो दवाएं तो पेशेंट्स के लिए पर्चे पर लिखते हैं, लेकिन दवाओं के सॉल्ट नहीं लिखते। इस कारण पेशेंट्स को सस्ती दवाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसी की वजह से कई जन औषधि केन्द्र या तो बंद हो गए या फिर बंद होने की कगार पर आ गए हैं।
कोविड के बाद से बिगड़ी हालत
जन औषधि केंद्र के संचालकों का कहना है कि शुरुआत में तो काफी अच्छे हालात रहे। कई पेशेंट्स जन औषधि केन्द्र से सस्ती दवाएं लेना पंसद करते थे। इस बीच यह भ्रम भी फैलाया जाता रहा कि जेनेरिक दवा कारगर नहीं है। इसके साथ ही कोविड आ गया, उसके बाद से जन औषधि केन्द्रों की हालत गड़बड़ाने लगी। इसके बाद कई केन्द्र बंद भी हो गए। जन औषधि केन्द्र संचालकों की मानें तो बरेली में 25 जन औषधि केन्द्र ओपन हुए थे, जिसमें से आधे जन औषधि केन्द्र बंद हो चुके हैं। जो बचे हैैं, उनकी हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं है।
प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र दवाखाना संचालकों का कहना है कि उन्हें दो-तीन वर्षो से इंसेंटिव नहीं मिला है। सि कारण उनकी हालत और खराब हो रही है। हालांकि जो इंसेंटिव आता है वह सीधे उनके अकाउंट में आता है। इंसेंटिव नहीं आने से उनके रुपए फंसे हैैं और वह दवाएं भी कम मंगा पा रहे हैं। जिनको दुकान का किराया देना है, सबसे अधिक उनको परेशानी हो रही है।
पोर्टल पर हैैं 1900 तरह की दवाएं
जन औषधि केन्द्र के पोर्टल पर ऑनलाइन दवाएं मंगाने के लिए आर्डर करना होता है। उसके बाद ही दवाओं की डिलीवरी मेडिकल पर मिल जाती है। दवाएं मंगाने के लिए पोर्टल पर 19 सौ तरह की दवाएं शो होती हैं, लेकिन उपलब्ध जो होती हैं, वह सिर्फ छह सौ से सात सौ तरह की दवाएं ही हैैं। शहर के जन औषधि केन्द्र पर गुरुग्राम, लखनऊ, गाजियाबाद, मेरठ आदि जगहों से दवा की सप्लाई मिलती है।
जुटा रहे जानकारी
जिले में कितने जन औषधि केंद्र अभी चल रहे हैैं, इसके बारे में जानकारी जुटाई जा रही है। खरीद और उनका इंसेटिव का सभी कार्य ऑनलाइन होता है। इसमें लोकल स्तर से कुछ भी नहीं होता है।
बबीता रानी, औषधि निरीक्षक