न उम्र की सीमा हो...
Rose day पर दिया rose
इस समय यह कपल अपने घर में एक पुराने सर्वेंट की फै मिली के साथ रहते हैं। उनके साथ ही इनका भी दिन गुजरता है। रोज डे के दिन मि। एंड मिसेज ढिल्लन से सेलिब्रेशन का जिक्र किया तो मिसेज ढिल्लन ने अपने हाथों से सजाई अपनी बगिया से एक खूबसूरत गुलाब चुनकर मि। ढिल्लन को दिया। यह वह सुखद क्षण था, जिसे वो शब्दों से बयां नहीं कर पा रहे थे और एक-दूजे को देख कर केवल मुस्कुरा रहे थे। इस मौके पर उनकी आंखों में खिले गुलाब से भी ज्यादा खुशी छलक रही थी। दिल में केवल एक ही ख्याल आया न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन मिसेज ढिल्लन एक अच्छी सिंगर भी हैं। कहती हैं मेरी सिंगिंग के तो बहुत बड़े फै न हैं वो। अब भी खाली समय में मुझे गुनगुनाते हुए सुनकर उनके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है और बार-बार गाने की बात कहते हैं। रोज क्लीनिक जाते हैं
डॉ। गुरबख्श कहते हैं कि वह अमृतसर के हैं और अमर गुरदासपुर की। वह 1953 में बरेली आए और यहीं के होकर रह गए। अमर से उनकी शादी 3 नवम्बर 1957 को हुई। डॉ। गुरबख्श मेडिकल कॉलेज के बेस्ट एथलीट थे तो अमर एएमयू की बैडमिंटन चैंपियन। मि। ढिल्लन शादी के बाद अपने प्रोफेशन में बिजी रहे तो मिसेज ढिल्लन बागवानी में। अमर अब तक कई फ्लावर शो की जज भी रह चुकी हैं। डॉ। गुरबख्श अब भी रोज अपने क्लीनिक जाते हैं और शाम का समय मिसेज ढिल्लन के साथ ही बिताते हैं।प्यार ने दिया चलने का सहाराडॉ। ढिल्लन ने बताया 15 साल पहले उनका एक सीरियस एक्सीडेंट हुआ था, जिसमें उनकी एक टांग इंजर्ड हो गई थी। उसे आपरेट करके उसमें स्टील की रॉड डाली गई। एक साल तक बेड पर ही रहें लेकिन अमर ने मेरा हौंसला टूटने नहीं दिया। डाक्टर्स का कहना था कि मैं शायद ही चल पाऊं। पर यह अमर का ही प्यार और विश्वास था, जो आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं। उसके बाद मुझे प्यार की ताकत का अंदाजा हुआ। वहीं मिसेज ढिल्लन ने बताया कि उन्हें कोई औलाद नहीं है। उनके भाइयों के बच्चे यहां से पढ़ चले गए। ऐसे में एक-दूसरे के प्यार के सहारे ही खुशी से जी रहे हैं।
Report by: Nidhi Gupta