- एक्सपेरिमेंट करने में पॉलिटिकल पार्टीज भी पीछे नहीं

BAREILLY: इसे जातीय समीकरण का खेल कहें या फिर कैंडीडेट्स की पर्टियों के प्रति बदलती सोच। कुछ एक पार्टियों को छोड़ दिया जाए तो बाकी पार्टियों ने हर लोकसभा इलेक्शन में नए चेहरों पर ही जीत का दांव खेला है। हालांकि उन्हें सक्सेज नहीं मिली, लेकिन वे इसी एक्सपेरिमेंट के फॉर्मूले को लेकर चल रही हैं, जब तक उन्हें कोई जिताऊ कैंडीडेट नहीं मिल जाता। ढांचागत जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए पार्टियों ने उसी बिरादरी के कैंडीडेट को टिकट दिया है जिसकी संख्या ज्यादा है, जिससे कैंडीडेट उनके बीच से ज्यादा वोट शेयर बटोर सकें।

कुर्मी और मुस्लिम बिरादरी पर ज्यादा जोर

बरेली लोकसभा सीट में भ् विधानसभा आते हैं। बरेली सिटी, बरेली कैंट, मीरगंज, भोजीपुरा और नवाबगंज विधानसभाओं में करीब क्म्,0ब्,07ब् वोटर्स हैं, जिनमें से 8,80,क्8म् मेल और 7,ख्फ्,888 फीमेल वोटर्स हैं। यदि जातीय समीकरणों की बात करें तो सभी वोटर्स की म्भ् से 70 परसेंट केवल कुर्मी और मुस्लिम बिरादरी के हैं। एक अनुमान के मुताबिक बरेली लोकसभा में फ्0 से फ्ख् परसेंट कुर्मी और फ्भ् से फ्8 परसेंट मुस्लिम वोटर्स हैं। बाकी फ्0 परसेंट में सभी जाति शामिल हैं। पार्टियों का मोहपाश इन्हीं दो बिरादरी में फंसा हुआ है। इसलिए ले देकर टिकट भी इसी बिरादरी के किसी नुमाइंदे को देते हैं।

बसपा को नहीं मिला कोई ठौर

नेशनल पार्टी का दर्जा प्राप्त कर चुकी और स्टेट की सत्ता पर काबिज कर चुकी बसपा अभी तक बरेली लोकसभा में पब्लिक के बीच अपनी पैठ नहीं बना पाई है। पैर जमाने के लिए उसने हर बार पार्टी के क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं और नेताओं को दरकिनार कर नए कैंडीडेट पर ही दांव खेला है, लेकिन पिछले भ् लोकसभा इलेक्शन में बसपा ख्भ् परसेंट से ज्यादा वोट शेयर नहीं बटोर सकी। वैसे अमूमन मुस्लिम कार्ड खेलने वाली पार्टी ने इस बार भी ऐसे कैंडीडेट को मैदान में उतारा है, जिसके परिवार का दूर-दूर तक राजनीति से ताल्लुक नहीं है। मुस्लिम समाज के बीच बेहतर छवि रखने वाली पार्टी ने उमेश गौतम के जरिए दूसरी बिरादरी के लोगों को साधने के साथ यूथ के वोट बैंक पर भी सेंधमारी मारने की तमन्ना पाल रखी है। ख्009 के आम चुनाव में पार्टी ने तत्कालीन विधायक इस्लाम साबिर अंसारी को मैदान में उतारा, लेकिन वे महज ख्भ्.79 परसेंट वोट में ही सिमट गए। ख्00ब् में उसने अकबर अहमद डंपी पर दांव खेला, लेकिन वे भी ख्भ् परसेंट से ज्यादा वोट नहीं बटोर सके। क्999 में फरूकल हसन और क्998 में एबरन कुमार गंगवार और क्99म् में जाहिद खान को टिकट दिया, लेकिन वे क्0 परसेंट से ज्यादा वोट शेयर नहीं बटोर सके।

एक तीर से तीन निशाने साध रही है सपा

सपा का भी हाल कुछ बसपा जैसा ही है। जीत का स्वाद चखने के लिए उसने भी हर बार नयों को ही टिकट दिया है। दरअसल मुस्लिम और कुर्मी बिरादरी की करीब बराबर की भागीदारी को लेकर सपा हमेशा से ही गफलत में रही है। यही वजह है कि उसने जातिगत समीकरण को लेकर टिकट देने में एक्सपेरिमेंट किया है। कभी कुर्मी तो कभी मुस्लिम बिरादरी के नेता को टिकट दिया। पिछले भ् आम चुनावों के आंकड़े पर नजर डालें तो दो बार सपा जीत की दहलीज पर आकर मात खा गई। दोनों बार कैंडीडेट एक ही था। इसलिए इस बार भी उसी परिवार पर ही सपा ने दांव खेल कर जीत की उम्मीदें लगा रखी हैं। बस कैंडीडेट बदल दिया है। ्रकैंडीडेट आयशा इस्लाम के पास पॉलीटिक्स का कोई एक्सपेरियंस नहीं है। लेकिन उनका ससुराल पिछले तीन पीढि़यों से राज करता आ रहा है। यही वजह है कि सपा ने पारिवारिक रसूख का लाभ उठाने के साथ महिलाओं और यूथ्स के वोट बैंक पर भी निशाना साध रखा है। यहां सपा इस बार एक तीर से तीन निशाने साधनें में जुटी हुई है। ख्009 में सपा ने एक एक्सपेरिमेंट के तौर पर मुस्लिम बिरादरी को टिकट ना देकर कार्ड खेलने की कोशिश की, लेकिन उसे मुमुल्सि्म समाज का भी वोट नहीं मिला। भगवत सरन गंगवार महज क्0.ब्ख् परसेंट ही वोट बटोर सके। ख्00ब् में उसने पुराने वफादार इस्लाम साबिर पर भरोसा जताया, लेकिन इस बार क्ब्.म्ब् वोट पर्सेटेज के साथ तीसरे नम्बर पर रहे। क्999 में सपा की टिकट पर छोटे लाल गंगवार उतरे। लेकिन ख्ब् परसेंट से आगे नहीं बढ़ सके। क्998 और क्99म् में इस्लाम साबिर पर ही दांव खेला। दोनों बार पार्टी दूसरे नम्बर पर रही।

कांग्रेस को मिला गया ठौर

बरेली लोकसभा में कांग्रेस की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं रही। काफी समय से जीत का स्वाद चखने के लिए बेकरार पार्टी को ख्009 में सफलता मिली जब प्रवीण सिंह ऐरन ने फ्क्.फ्क् पर्सेटेज वोट शेयर लेकर परचम लहराया। हालांकि इसके पीछे चुनाव से पहले परिसीमन का बदलना और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण को मेन वजह बताया गया। वजह चाहे जो भी हो कांग्रेस ही बरेली में पिछले म् बार से रिकॉर्ड सांसद रहे संतोष कुमार गंगवार को लकी सेवन के पायदान पर पहुंचने पर रोक पाई। ख्00ब् में भी प्रवीण सिंह ऐरन कांगेस से मैदान में थे। लेकिन वे ख्फ्.ख्भ् वोट पर्सेटेज के साथ तीसरे नम्बर पर रहे। क्999 में कांग्रेस ने बरेली के एकमात्र राजनैतिक घराना इस्लाम साबिर पर दांव खेला। लेकिन यहां पर भी पार्टी तीसरे नम्बर पर ही रही। क्998 में पार्टी ने एकमात्र महिला कैंडीडेट तेजस्वरी को उतारा। लेकिन वह ज्यादा प्रभाव नहीं डाल सकीं। अपनी जमानत भी नहीं बचा सकीं। क्99म् में भी कांग्रेस का कैंडीडेट जमानत नहीं बचा सका। हालांकि इस बार प्रवीण सिंह ऐरन तिवारी कांग्रेस की टिकट पर मैदान में थे।

Posted By: Inextlive