Bareilly: ये दो केसेज जताने के लिए काफी है. सिटी के ब्लड बैंक में निगेटिव ब्लड ग्रुप की कितनी क्राइसिस है. एक्सीडेंट ऑपरेशन और इमरजेंसी के केस में घंटो जिंदगी अपना वजूद कायम रखने के लिए जद्दोजहद करती है. निगेटिव ग्रुप के पेशेंट्स के लिए ये लड़ाई और भी क्रिटिकल हो जाती है. ब्लड बैंक मदद करना चाहते हैं मगर निगेटिव ब्लड ग्रुप के पेशेंट्स की जिंदगी बचाने के लिए उन्हें भी ब्लड अरेंज करने के लिए लंबी मशक्कत करनी पड़ती है.


कैसे निपटते हैं shortage से


मिशन हॉस्पिटल के ब्लड बैंक की प्रभारी डॉ। संगीता गुप्ता के अकॉर्डिंग, ब्लड रिक्वायरमेंट की तीन कंडीशन होती हैं। ब्लीडिंग होना, प्लेटलेट्स कम होना और हीमोग्लोबिन कम होना। उन्होंने बताया कि अगर सिर्फ ब्लीडिंग हो रही है तो सफेद प्लाज्मा चढ़ाया जाता है। सफेद प्लाज्मा चढ़ाने से प्लस, माइनस के फेर से बच जाते हैं और पेशेंट की लाइफ सेफ जोन में आ जाती है। वहीं प्लेटलेट्स कम होने की कंडीशन में ए फेरेसिस मशीन से हेल्प लेते हैं, जो कि एक ही डोनर से 7 यूनिट के बराबर प्लेटलेट्स बना देती है। ब्लड डोनेशन के बाद मशीन रेड ब्लड शेल बॉडी में वापस भेज देती है। प्लेटलेट्स कम होने पर सिचुएशन को इस तरह से मैनेज किया जाता है। सिर्फ हीमोग्लोबिन कम होने के केस में प्योर ब्लड की रिक्वायरमेंट होती है। अगर बॉडी में 7 ग्राम तक ब्लड हो तो 1.5 से 2 ग्राम ब्लड चढ़ाकर उसे लाइफ सेविंग लाइन पर ले आते हैं। मगर निगेटिव ब्लड ग्रुप के केस में काफी प्रॉब्लम फेस करनी पड़ती है। Free में जांच

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के ब्लड बैंक प्रभारी जीडी कटियार के अकॉर्डिंग, ब्लड की डिमांड और सप्लाई का कोई फिक्स रेशिओ नहीं है। अमूमन एक महीने में औसतन 7 हजार ब्लड की यूनिट की रिक्वायरमेंट रहती है। इसमें निगेटिव ब्लड ग्रुप की रिक्वायरमेंट 5 से 10 परसेंट की रहती है। उनका कहना है कि वॉलेंट्री डोनर्स के थ्रू उनके पास ब्लड आता है। निगेटिव ग्रुप के लिए उन्हें स्पेशली डोनर आईडेंटिफाई करने पड़ते हैं। ब्लड डोनेशन से पहले एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, सी, हीमोग्लोबीन और मलेरिया की जांच होती है। उसके बाद ही ब्लड डोनेशन एक्सेप्ट किया जाता है। इसका एक फायदा डोनर को भी होता है कि उसकी ये जांच बाहर से 1000 से 1200 रुपए में होती है, जबकि डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में ये जांच फ्री हो जाती हैं Cold chain न टूटे डॉ। संगीता गुप्ता ने सजेस्ट किया कि अक्सर ऑपरेशन से पहले या इमरजेंसी में रिक्वायरमेंट आने पर ब्लड बैंक से ब्लड इश्यू कर दिया जाता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। ब्लड अगर ओपर एयर में आधे घंटे रह गया तो उसे यूज न करने पर वापस नहीं लिया जा सकता है। वह ब्लड चढ़ाने लायक नहीं रहता। उसकी कोल्ड चेन टूट जाती है। इसलिए हर हॉस्पिटल में ब्लड ट्रांसफ्यूजन ट्रिगर प्वाइंट होना चाहिए। ताकि एडमिनिस्ट्रेशन को पता हो कि कब ब्लड इश्यू करना है। इससे रेयर ग्रुप के ब्लड की सेविंग हो सकेगी।  

कॉमन ग्रुप की मेजर डिमांड डॉ। अंजू के मुताबिक 'बीÓ पॉजिटिव ग्रुप सबसे कॉमन होता है और आसानी से मिलता है। खास बात ये कि अगर इस ग्रुप के डोनर ज्यादा हैं तो पेशेंट्स भी ज्यादा रहते हैं। इसलिए बी निगेटिव के साथ बी पॉजिटिव की मांग बराबर बनी रहती है। उन्होंने बताया कि अगर अभी कल ही एक दिन में 48 डोनर्स ने बी पॉजिटिव ब्लड ग्रुप डोनेट किया और सेम डे उसमें से 47 यूनिट ब्लड की रिक्वायरमेंट आ गई तो ब्लड इश्यू भी हो गया। Negative group होते हैं rare आईएमए ब्लड बैंक डायरेक्टर डॉ। अंजू उप्पल के मुताबिक, ब्लड के आठ ग्रुप होते हैं। ए, बी, एबी, ओ पॉजिटिव होते हैं। ब्लड ग्रुप में निगेटिव ब्लड ग्रुप रेयर होते हैं। निगेटिव ग्रुप में भी सबसे ज्यादा रेयर ग्रुप एबी निगेटिव होता है। आकड़ों की मानें तो 1000 लोगों पर 5 लोगों के ब्लड ग्रुप निगेटिव होते हैं। उन्होंने बताया कि यूपी में वॉलेंट्री डोनेशन की कंडीशन बेहद दुखद है। अगर पूरे इंडिया की बात करें तो 8 से 10 मिलियन की रिक्वायरमेंट होती है। 30 से 35 परसेंट कम ब्लड ही अरेंज हो पाता है। इसमें भी निगेटिव ब्लड ग्रुप की कमी हमेशा बनी रहती है। Important things
-1000 की आबादी में 5 लोग निगेटिव ग्रुप के होते हैं।-हेल्दी व्यक्ति की बॉडी में 5 से 6 लीटर ब्लड होता है। -आरबीसी की ऐज 120 दिन की होती है। ब्लड डोनेशन में ओल्ड आरबीसी सेल निकाली जाती हैं, जिसके बाद दोबारा ब्लड बहुत तेजी से बनता है।-रेगुलर ब्लड डोनेशन से व्यक्ति की बॉडी में रोगों से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता जेनरेट होती है। -ब्लड डोनेशन 18 साल की उम्र से 60 साल तक के किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है।-ब्लड डोनेशन में सिर्फ 5 मिनट का समय लगता है।-डॉक्टर्स के अकॉर्डिंग रेगुलर ब्लड डोनेट करने से हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है। इनके मरीज नहीं कर सकते blood donate-हाईपरटेंशन-फीवर-ज्वाइंडिस-ऑपरेशन वाले पेशेंट-अस्थमा-एचआईवी पॉजिटिव-मिर्गी के पेशेंट-गर्भावस्था के फौरन बाद महिलाइन्हें चढ़ता है blood-थैलेसीमिया पेशेंट्स -डायलिसिस पेशेंट्स-कैंसर पेशेंट्स-प्रसव के बाद हैवी ब्लीडिंग -जले हुए पेशेंट -एक्सीडेंटल कंडीशन में
आपका ब्लड डोनेशन किसी परिवार की मुस्कान बरकार रख सकता है। थैलेसीमिया, डायलिसिस, कैंसर जैसे पेशेंट्स को रेगुलर ब्लड ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है उनकी जान आपके एक स्टेप से सेफ जोन में बनी रह सकती है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा ब्लड डोनेट करें। लोगों में भ्रांति है कि ब्लड डोनेट करने से कमजोरी आ जाती है जबकि यह बिल्कुल गलत है। ब्लड तभी लिया जाता है कि जब डोनर पूरी तरह से स्वस्थ हो। इसलिए चिंता करने की कोई बात नहीं होती।-डॉ। संगीता गुप्ता, प्रभारी, मिशन हॉस्पिटल ब्लड बैंक डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के साथ हमारे ऊपर सभी गवर्नमेंट मेडिकल संस्थान को ब्लड सप्लाई की जिम्मेदारी होती है.  निगेटिव ग्रुप की डिमांड पूरी करना हमारे लिए चैलेंज है। निगेटिव ग्रुप की हमेशा शॉर्टेज रहती है। शॉर्टेज के चलते स्टॉक मेंटेन नहीं हो पाता है। इसलिए ब्लड डोनेशन करके ज्यादा से ज्यादा जिंदगियों को बचाने में मदद करें। अगर कोई स्वेच्छा से ब्लड डोनेशन करना चाहे तो वह ब्लड बैंक के   नंबर 9837041039 पर संपर्क कर सकता है। -डॉ। जीडी कटियार,  प्रभारी ब्लड बैंक, डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटलस्वैच्छिक ब्लड डोनेशन सेफ और हेल्दी रहता है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को आगे आकर ब्लड डोनेशन करना चाहिए। आपके ब्लड की कीमत किसी की जान हो सकती है। मैं अपील करती हूं कि साल में कम से कम 3 बाद ब्लड डोनेट करना चाहिए.  अक्सर ऐसा होता है कि एकसाथ निगेटिव ब्लड ग्रुप के लिए कई जगह से डिमांड आ जाती है, ऐसे में हमारे लिए भी जरूरत पूरी करा मुश्किल भरा हो जाता है। कई बार तो हम निगेटिव का पूरा स्टॉक तक खाली कर देते हैं।-डॉ। अंजू उप्पल, डायरेक्टर, आईएमए ब्लड बैंक निगेटिव ब्लड ग्रुप की कमी पूरे यूपी लेवल पर है। हम भी उसी क्रम में आते हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए पब्लिक अवेयरनेस की आवश्यक्ता है। फिर भी हम वॉलेंटरी डोनर के थ्रू कमी को पूरा करने की कोशिश करते हैं। ताकि पेशेंट को प्रॉब्लम न हो।-डॉ। एके त्यागी, सीएमओ

Posted By: Inextlive