Need to learn how to ‘manage’ the ‘disaster’
इसे बनाएं subjectप्रो। एसपी गौतम ने माना कि हायर एजुकेशन में स्टूडेंट्स को डिजास्टर मैनेजमेंट की पढ़ाई कराई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि रुहेलखंड अर्थक्वेक, बाढ़ और सांप्रदायिक झड़प से इफेक्टेड रहता है। ऐसी कंडीशन से निपटने के लिए पॉवरफुल डिजास्टर मैनेजमेंट की नीड है। इसे केवल स्टूडेंट्स ही पूरा कर सकते हैं। हायर एजुकेशन लेवल पर इसे सब्जेक्ट के रूप में पढ़ाने पर यह पॉसिबल होगा। उन्होंने बताया कि यूजीसी ने भी यूनिवर्सिटीज में इस कोर्स को ओपन करने की अपील की है।सोच से तय होती है मंजिल
एक्स वीसी प्रो। जाहिद हुसैन जैदी ने कहा कि एक पर्सन अपनी डेस्टिनेशन तक पहुंच पाएगा या नहीं यह उसकी सोच पर निर्भर करता है। उन्होंने स्टूडेंट्स को टिप्स देते हुए कहा कि सोच पर काबू रखने से वाणी पर काबू रखा जा सकेगा। वाणी पर काबू रखने से एक्शन पर काबू किया जा सकेगा और इसी के बल पर डेस्टिनेशन हासिल की जा सकती है। उन्होंने कहा कि इन क्वालिटीज को डेवलप करने के लिए ही टीचर्स और इंस्टीट्यूशंस बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि प्रॉब्लम्स हर किसी को फेस करनी होती हैं। जो जिस एनवायरमेंट में होता है उसी में ढल कर प्राब्लम्स को फेस करें तो उस पर काबू पाया जा सकता है।
स्टूडेंट्स-कर्मचारियों का सम्मान
इस ऑकेजन पर स्पोट्र्स फील्ड में खास अचीव करने वाले स्टूडेंट्स को भी सम्मानित किया गया। जो प्रेजेंट थे केवल उन्हीं को सम्मानित किया गया। खुसरो कॉलेज के दीपक कुमार को बॉक्सिंग के लिए 5000 रुपए देकर, धनौरा की मोनिका चौधरी, हिंदू कॉलेज, मुरादाबाद की प्रियंका शर्मा व याशमीन और केजीके मुरादाबाद की सैयद आमीर फातिमा को सम्मानित किया गया। टीचर्स और कर्मचारियों के बीच हो रहीं स्पोट्र्स एक्टिविटीज में पार्टिसिपेट करने वाली विनर्स टीम को भी सम्मानित किया गया। Purpose solve नहीं हो पा रहा
प्रो। एसपी गौतम ने माना कि यूनिवर्सिटीज की स्थापना जिस सोच और परपज के तहत की गई थीं, उनमें से अधिकांश खरी नहीं उतर पा रही हैं। कैंपस का एनवायरमेंट ऐसा होना चाहिए कि स्टूडेंट्स जब क्लास से बाहर निकलें तो चाय और कॉफी की चुस्कियों के साथ वे अपने ग्रुप में सब्जेक्ट से रिलेटेड लॉन्ग डिसकशंस और नेगोसिएशन कर सकें। कैंटीन हो या फिर ठेले, उनमें डिबेट करने और अपनी बात रखने की कला तो होनी ही चाहिए। उन्होंने कहा कि एकेडमिक ढांचा ऐसा नहीं होना चाहिए कि केवल किताब पढ़ भर लें और एग्जाम में अपीयर हो जाएं। बल्कि ऐसा हो जिससे स्टूडेंट्स उसमें दी गई प्रॉब्लम्स को समझ सकें और वे क्वेश्चंस पुट अप कर उनके आंसर भी ढूंढ सकें।JNU में MA Philosophyप्रो। गोतम फिलॉसफी के टीचर हैं। उन्होंने जेएनयू में एमए फिलॉसफी सब्जेक्ट के लिए सिलेबस तैयार कराया और इसी सेशन से उसमें एडमिशन लेने की तैयारी भी शुरू करा दी। उन्होंने बताया कि सिलेबस कुछ इस तरह का है जिससे स्टूडेंट्स क्लास में ज्यादा इन्वॉल्व हो सकें। फाइनल सेमेस्टर में एग्जाम्स नहीं हैं। क्लास के अंदर जो एक्टिविटीज होंगी उन्हीं के बेस पर उन्हें माक्र्स दिए जाएंगे। फिलॉसफी का सिलेबस ऐसा है कि वह साइंस, आट्र्स समेत सभी तरह के सब्जेक्ट्स के साथ कोरिलेट हो सकेगा।टैलेंट की पहचान नहीं कर पाते
देश के स्कॉलर्स के पलायन पर प्रो। जाहिद हुसैन जैदी ने देश की ही पॉलिसीज को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि ऐसी बात नहीं है कि देश में संसाधन और ग्रांट की कमी है। बस कमी है तो सही टैलेंट की पहचान करना। हम सही टैलेंट और स्किल की तलाश नहीं कर पा रहे हैं। इसकी कई वजह हैं। यह गलती हर स्तर पर दोहराई जा रही है। जब तक ये गलती करते रहेंगे देश के होनहार फॉरेन का रुख करते रहेंगे। आज बेस्ट रिसर्च स्कॉलर्स अपनी रिसर्च के लिए फॉरेन के लैब और इंस्टीट्यूट्स ज्यादा पसंद कर रहे हैं। क्योंकि फॉरेन इंस्टीट्यूशंस स्किल्स पर ज्यादा फोकस करते हैं।
कसक अभी बाकीप्रो। जैदी 1995 से 2005 तक आरयू के वीसी रहे। फ्राइडे को यूनिवर्सिटी की दोबारा विजिट करने पर उन्हें एक कमी अब भी साल रही है। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी ऐसी होनी चाहिए जो उस क्षेत्र की पहचान बन जाए। कोई बरेली विजिट करे तो एक बार यूनिवर्सिटी को भी विजिट करे लेकिन यहां का एनवायरमेंट ऐसा नहीं है। कैंपस का एरिया बहुत बड़ा है लेकिन इसे मैनेज्ड तरीके से डेवलप नहीं किया गया। ग्रीनरी और वेल इक्विप्ड ऑडिटोरियम की कमी है। कैंपस का कंस्ट्रक्शन ऐसा नहीं है जो किसी को अट्रैक्ट कर सके। एक दिन में कुछ नहीं हो सकता, बस इनीशिएटिव लेने की कमी है।