गोदाम में सड़ गई तीन करोड़ की 'सफाई'
-निगम के सिविल लाइंस गोदाम में करोड़ों की रिक्शा ट्राली हुई कबाड़
-सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत जलनिगम ने खरीदे थे ट्रॉली-डस्टबिन -8 साल में किसी ने न ली सुध, शहर को चमकाने की योजना खटाई मेंBAREILLY: कागजों में लहलहाती योजनाएं नगर निगम की छांव तले किस कदर बंजर हो जाती हैं, इसकी एक और नजीर देखने को मिली है। घरों-सड़कों को साफ सुथरा रखने और कूड़े को शहर से बाहर निकालने के लिए 8 साल पहले शुरू हुई एक मुहिम खुद कूड़ा हो गई है। निगम के सिविल लाइंस स्थित गोदाम में रखी कूड़ा उठाने वाली नई रिक्शा ट्रॉली व डस्टबिन साल दर साल इस्तेमाल होने के इंतजार में पड़े पड़े कबाड़ हो गई। शहर की सफाई व्यवस्था दुरुस्त रखने को करोड़ों की लागत से खरीदी गई इन डस्टबिन व रिक्शा ट्रालियों को यूज में लाने के तरीके निगम के काबिल जिम्मेदार खोज ही न सके। ऐसे में बिना योजना के सरकारी खजाने से शुरू की गई एक और योजना कबाड़ की शक्ल में दम तोड़ चुकी है।
फ् करोड़ हुए कबाड़निगम के स्वास्थ्य विभाग के सिविल लाइंस वाले गोदाम में कबाड़ का शक्ल ले चुकी रिक्शा ट्रॉलियां व डस्टबिन की खरीद फ् करोड़ रुपए से की गई थी। साल ख्00म्-07 में जलनिगम सीएंडडीएस की ओर से सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लान के तहत इन्हें खरीदा गया था। फ् करोड़ के इस बजट से करीब म्00 कूड़ा उठाने वाली रिक्शा ट्रॉलियां व ख्ब्00 से ज्यादा डस्टबिन खरीदे गए थे। लगभग 8 साल पहले खरीदे गए हर डस्टबिन की बाजार कीमत लगभग 800 रुपए पड़ी। जबकि रिक्शा ट्राली की कीमत म्000 रुपए के आस पास पड़ी।
सिर्फ कागजों में दौड़ी योजना जलनिगम ने फ् करोड़ की लागत से खरीदे गए डस्टबिन व रिक्शा ट्रॉलियों को नगर निगम को हैंडओवर कर दिया था। तत्कालीन नगर आयुक्त शैलेन्द्र चौधरी और मेयर डॉ। आईएस तोमर ने इस योजना को मूर्त रूप देने में जिम्मेदारी निभाई। लेकिन सरकारी खजाना खर्च होने के बाद खरीदी गई ट्रॉलियां व डस्टबिन लोगों के घरों से कूड़ा उठाने के काम न लाई जा सकी। इन्हें खरीदकर गोदाम में एक तरह से डंप कर दिया गया। तब से लेकर मेयर और नगर आयुक्त की कुर्सियों पर नए जिम्मेदार आए लेकिन किसी को भी करोड़ों की इस 'सफाई मशीनरी' पर जम रही धूल हटाने की सुध्ा न आई। तो डोर टू डोर उठता कूड़ासॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत खरीदे गए रिक्शा ट्राली व डस्टबिन का यूज डोर टू डोर घरों से कूड़ा उठाने में किया जाना था। जानकारों के मुताबिक पहली खेप में खरीदे गए डस्टबिन को शहर के चिन्हित कॉलोनीज में बांटा जाना था। हर सुबह निगम के सफाई कर्मचारी घरों से यह डस्टबिन उठाकर कॉलोनीज का कूड़ा रिक्शा ट्राली में रखे बड़े डस्टबिन में लोड कर देते। फिर यह कूड़ा स्वास्थ्य विभाग की गाडि़यों से डंपिंग ग्राउंड को भेज दिया जाता। लेकिन खरीद के बाद न तो लोगों में डस्टबिन ही बांटे गए और न ही रिक्शा ट्रालियां निगम के स्वास्थ्य विभाग कर्मचारियों को दी गई।
------------------------------- खराब पड़ी ट्रालियों को जल्द ही दुरुस्त कराने व इस्तेमाल में लाए जाने के निर्देश दिए गए हैं। लापरवाही हुई है, इसे ठीक कराने की कोशिश की जा रही। - डॉ। आईएस तोमर, मेयर