'फर्जी' स्टेशनरी पर हुए नगर निगम के काम
-नगर निगम की स्टेशनरी व डिमांड रजिस्टर छापने का ठेका फर्जी कंपनी को देने का आरोप
-जिस एजेंसी को मिला ठेका उसका वाणिज्य कर विभाग में रजिस्ट्रेशन नहीं, आरटीआई में खुलासा -2009-10 से 2013-14 तक निगम की गोपनीय स्टेशनरी छपवाने का रिकार्ड भी नहीं दे पाई एजेंसीBAREILLY: नगर निगम में फर्जीवाड़ों की फेहरिस्त में स्टेशनरी घपले का भी नाम शामिल हो गया है। नगर निगम की ओर से अपनी बेहद गोपनीय स्टेशनरी छपवाने का ठेका जिस फर्म को दिया गया। वह ही फर्जीवाड़े के निशाने पर आ गई है। इस निजी फर्म को निगम की ओर से पांच साल तक गोपनीय स्टेशनरी व डिमांड रजिस्टर छपवाने का ठेका दिया गया था। लेकिन खुलासा हुआ कि यह फर्म सेल्स टैक्स विभाग में रजिस्टर्ड ही नहीं है। इस खुलासे के बाद डिमांड रजिस्टर में टैक्स वसूली में जमकर की गई गड़बडि़यों के आरोप एक बार फिर उठ खड़े हुए हैं।
आरटीआई से हुआ खुलासा
निगम में डिमांड रजिस्टर समेत अन्य गोपनीय स्टेशनरी छपवाने का ठेका एक 'फर्जी' फर्म को दिए जाने का खुलासा एक आरटीआई के जरिए हुआ है। बरेली के आरटीआई एक्टिविस्ट राकेश मेहरोत्रा ने बरेली नगर निगम जनसूचना अधिकारी से आरटीआई के तहत फर्म के बारे में जानकारी मांगी थी। इस जानकारी के तहत निगम ने बताया कि मैसर्स श्री बालाजी आर्ट प्रेस को टेंडर व कोटेशन के जरिए स्टेशनरी छपवाने का ठेका दिया गया था। साथ ही सरकारी प्रेस में छपवाने के बजाए निजी प्रेस से मिनिमम रेट पर सक्षम अधिकारी के आदेश से सप्लाइर्1 ली गई।
पांच साल तक चली अनियमितता इस फर्म के बारे में जब आरटीआई के जरिए सेल्स टैक्स विभाग से रजिस्टर्ड होने की जानकारी मांगी गई तो जवाब चौंकाने वाला मिला। निगम की ओर से आंख मूंदकर जिस फर्म को डिमांड रजिस्टर व गोपनीय स्टेशनरी छपवाने का ठेका दिया था, वह सेल्स टैक्स विभाग में रजिस्टर्ड ही नहीं थी। इतना ही नहीं इस फर्म की ओर से ख्009-क्0 से ख्0क्फ्-क्ब् तक निगम में स्टेशनरी छपवाने का काम किया था, उसने स्टेशनरी सप्लाई से संबंधित भी कोई सूचना सेल्स टैक्स विभाग को नहीं दी। सेल्स टैक्स से गैर-रजिस्टर्ड इस फर्म को पांच साल तक निगम ने ठेका देकर अनियि1मता बरती। टैक्स में हुई गड़बडि़यांनिगम की ओर से शहर के जिन भवनों पर टैक्स वसूला जाता है। उसकी सारी जानकारी और ब्यौरा डिमांड रजिस्टर पर ही दर्ज होता है। हर एरिया में जोन वाइस डिमांड रजिस्टर पर ही भवनों की संख्या, भवनों का स्वरूप, उनका स्क्वॉयर मीटर एरिया और उन नर टैक्स का निर्धारण जैसी अहम जानकारिया दर्ज होती हैं। आरोप लगे थे कि टैक्स के निर्धारण में काफी अनियमितता बरतते हुए गलत बिल जारी होते हैं। जिसमें निगम के जिम्मेदार भी गड़बडि़यों में शाि1मल रहे।
निगम ने बंद कर दी थी व्यवस्था इस खुलासे उन आरोपों को तेजी मिल रही जिसमें नॉन रजिस्टर्ड फर्म से छपवाई डिमांड रजिस्टर में टैक्स वसूली का भी फर्जीवाड़ा किया गया। जानकारों के मुतबिक इन डिमांड रजिस्टर में टैक्स निर्धारण व वसूली के आंकड़ों में और निगम की इनकम मद में दर्ज आंकड़ों में बड़ा अंतर रहा। इस हेर फेर के अंतर से फर्जीवाड़ा कर लाखों रुपए निगम के खजाने में जाने के बजाए जेबों में गए। इस खामी को खत्म करने को ही निगम ने पिछले साल इस व्यवस्था को खत्म कर ऑनलाइन व्यवस्था शुरू कर दी थी। जिन गड़बडि़यों के चलते नई व्यवस्था शुरू करनी पड़ी उसकी वजह और सच्चाई दोनों एक बार फिर सबूतों संग सामने आ गई। -------------------------------- डिमांड रजिस्टर में गड़बडि़यों की जानकारी आने पर ही पुरानी व्यवस्था खत्म कर दी गई। ट्रांसपेरेंसी के लिए ही ऑनलाइन व्यवस्था को खत्म किया गया है। पुरानी गड़बडि़यों पर शिकायत मिलते ही जांच भी कराई जाएगी। - शीलधर सिंह यादव, नगर आयुक्त