बरेली में बंदर बने सिरदर्द
बरेली(ब्यूरो)। शहर में बंदरों आतंक इस कदर बढ़ गया है कि लोगों को घर से छत पर जाना या फिर कहीं पार्क में भी निकलना मुश्किल सा हो गया है। इसमें सबसे बड़ी मुश्किल इस बात की है कि अगर कोइच् बच्चा पार्क में अकेला खेलता मिल जाए तो भी बंद हमला कर देते हैं। शहर के कुछ एरिया ऐसे भी हैं जहां पर लोग पार्क में बंदरों को खाने पीने के आइटम फेंक कर या फिर आस्था दिखाते हुए बंदरों को खिलाने पिलाने लगते हैँ इसके बाद जब बंदरों को कुछ नहीं मिलता है तो वह हमलावर होने लगते हैं। शहर में कई ऐसे लोग हैं जिन पर बंदरों ने हमला किया और वह आज तक अपने जख्मों को भूल नहीं पाए हैं। छोटच् बच्चे तो बंदरों के समूह को देखकर कांप उठते हैं। आमजन की मुश्किलों को हल करने के लिए नगर निगम अब तक कोई ठोस पहल नहीं कर पा रहा है।
केस-एक-
डीडीपुरम निवासी निवासी संजय आनंद ने बताया कि बीते सप्ताह ही वह छत पर बैठे थे तभी बंदरों के एक झुंड ने उनपर हमला कर दिया। बताया कि छत से कूदकर किसी तरह जान बचाई लेकिन पैर चोटिल हो गया। चोट तो ठीक हो गया लेकिन उनके बंदरों के दहशत से अब तक वह डरे हुए हैं।
आलमगिरी गंज निवासी अंकुर अग्रवाल रविवार को सुबह छह बजे छत पर टहल रहे थे तभी आपस में झगड़ते हुए बंदर उनके पास पहुंचा और उनके हाथ में मुंह मारकर भाग निकला। अंकुर ने बताया कि आलमगिरी गंज तो बंदरों का हाटस्पाट बन गया है। नगर निगम प्रशासन किसी तरह का कोई पहल नहीं कर रहा। केस-तीन
किला थाना क्षेत्र निवासी जुबैर ने बताया कि बंदरों के आतंक से वह इतना परेशान हो चुके हैं कि वह छत पर नहीं जा पाते हैं। पिछले माह बंदरों का झुंड घर पर आ गया और हमला कर दिया। बंदरों को दौड़ा तो वह हमलावर हो गए और नोच लिया। जिसका काफी इलाज कराया तो वह ठीक हुए हैं। अब तो बंदरों को देखते ही डर लगने लगता है। बंदरों की संख्या दिन प्रतिदिन बढऩे से पूरे वार्ड के लोग परेशान हैं।
केस- चार
पुराना शहर निवासी राकेश का कहना है कि वह छत पर शाम को टहलने गए थे। इसी दौरान बंदरों के झुंड ने हमला कर दिया। इससे वह बचने के लिए दौड़े तो वह फिसल गए। इससे उनके पैर और कमर में चोट लगी है। करीब दो माह हो गए लेकिन अभी भी प्रॉब्लम है। इससे वह ठीक से चल भी नहीं पा रहे हैं।
बदायूं-दातागंज रोड के फरीदापुर निवासी ओमवीर ङ्क्षसह का 5 वर्षीय बेटा अनुराग शनिवार को घर पर खेल रहा था, इसी दौरान बंदरों के एक समूह ने अनुराग पर हमला कर दिया और हाथ व पैर में काट लिया। पिता ओमवीर ने बताया कि अनुराग के अंदर इतना डर बैठ गया है कि वह बंदरों को देखते ही कांपने और जोर से चीखने लगता है। फिर से निकालेंगे टेंडर
नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ। अशोक कुमार ने बताया कि नगर निगम ने एक हजार बंदरों को पकडऩे के लिए अनुमति मांगा तो वन विभाग ने महज 100 बंदरों को ही पकडऩे की अनुमति दी। वहीं टेंडर लेने के बाद भी नहीं लौटने वाले ठेकेदार को शनिवार को ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा। बताया कि वनमंत्री से मिलकर नगर में अधिक संख्या में बंदरों को पकडऩे की अनुमति लेकर फिर से टेंडर निकाला जाएगा।
आस्था भी पड़ रही भारी
शहर के कुछ एरिया ऐसे हैँ जहां पर बंदरों को खिलाने पिलाने के लिए लोग लगे रहते हैं। इस एरिया में अगर बंदरों को बाद में कुछ खाने पीने को न मिले या फिर उस दौरान कोई वहां से गुजरता है तो वह कई बार हमलावर हो जाते हैं। इसीलिए बंदरों को ऐसी एरिया में खिलाने पिलाने के लिए कोई आउटर का एरिया ही चिह्नित करें। ताकि दूसरों को नुकसान न हो।
पीएफए (पीपुल्स फार एनिमल) बरेली के रेस्क्यू प्रभारी धीरज पाठक ने कहा कि बंदर पकडऩे वाले ठेकेदार उसे जंगलों में छोडऩे के बजाय शहर के बाहर ही छोड़ देते हैं। छोटे बंदरों का तस्करी किया जाता है। नियमों का पालन नहीं होने की वजह से पीएफए इसका विरोध करता है। बंदरों को पकडऩे के दौरान एनिमल्स वेलफेयर बोर्ड आफ इंडिया और वन विभाग के नियमों का पालन नहीं किया जाता। धीरज पाठक के अनुसार अगर वन विभाग के नियमों का सख्ती से पालन कराते हुए पीलीभीत, उत्तराखंड के जंगलों में छोड़ा जाए तो वह इसका समर्थन करेंगे। धीरज पाठक ने दावा किया कि बंदर भूखे होते हैं तभी उत्पात मचाते हैं और सौ में एक ही बंदर काटता हैं।