मिलिए मॉडल इलेक्शन के महारथियों से
प्रत्याशी पर प्रचार तो अफसरों पर मॉनिटरिंग का प्रेशर
लोकसभा चुनाव से जुड़े अफसरों का भी बदल गया रुटीनBAREILLY: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के उत्सव के दौरान वैसे तो कई लोगों की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ जाता है। असल में हम बात कर रहे हैं चुनावी रण के दौरान बिजी शेड्यूल और वर्किंग की। सबसे पहले अगर बात करें तो मैदान में किस्मत आजमाने उतरे प्रत्याशियों को पोलिंग तक हर लम्हे का हिसाब किताब रखना पड़ता है। सुबह बिस्तर छोड़ने से लेकर और रात में घर वापसी तक सैकड़ों लोगों से मुलाकात, फोन पर लोगों को जवाब देना और लोगों से इंटरएक्ट कर उन्हें अपने पाले में करने की बड़ी जद्दोजहद से गुजरना होता है। लेकिन इस सबके इतर ये चुनावी मौसम कुछ अफसरों की भी लाइफस्टाइल को पूरी तरह से बदल देता है। ये अफसर वे लोग है जिनके ऊपर मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का पालन कराने से लेकर, वोटर्स से जुड़ी प्राब्लब और सुरक्षा के मसले की बड़ी जिम्मेदारी होती है। इस रिपोर्ट में आज हम इसी बात को समझने की कोशिश करेंगे कि कैसा होता है एरर फ्री चुनाव का टोटल मैजेंजमेंट।
फोन से ही टूटती है नींदसील एक-हैलो सर, मैं बोल रहा हूं, मेरे इलाके में मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। सीन टू-हैलो एडीएम सर बोल रहे हैं, सर मैं इलाके से बोल रहा हूं, मेरा वोटर आई कार्ड नहीं पहुंचा अब तक, प्लीज मेरी हेल्प कर दीजिए। ये दोनों एग्जाम्ल तो महज बानगी हैं कि चुनाव से जुड़े ऐसे सैकड़ों फोन कॉल्स से हर दिन अफसरों को गुजरना पड़ रहा है। वैसे तो बरेली में फ्री एंड सेफ चुनाव कराने की मुख्य जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट इलेक्ट्रोलर ऑफिसर यानि डीएम अभिषेक प्रकाश की है। लेकिन चुनाव आयोग के निर्देशों को फॉलो कराना, नियमों की कसौटी पर सबको परखना हो जैसी जिम्मेदारियों के लिए एक और टीम काम कर रही है। इनमें डिप्टी डिस्ट्रिक्ट इलेक्ट्रोलर ऑफिसर अरुण कुमार, प्रभारी, आचार संहिता उल्लंघन आर पी सिंह समेत कई अन्य एडीएम, एसीएम व एसडीएम हैं, जिनके जिन पर सारा दारोमदार है।
सैकड़ों लोगों की टीमचुनाव में आचार संहिता का पालन कराना सबसे बड़ी चुनौती होती है। इसके लिए इस काम में लगी सैकड़ों टीमों व उनमें लगे हजारों की संख्या में स्टाफ की मानटरिंग करनी होती है। एडीएम ई आरपी सिंह के साथ-साथ सभी तहसीलों में एसडीएम व सीओ को इनका प्रभारी बनाया गया है। सभी सुबह एक-दूसरे से फोन पर रूबरू होते हैं। आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों के बारे में चर्चा होती है उसपर क्या कार्रवाई हुई या करनी है इसका डिसीजन लिया जाता है।
चुनावी सभाओं पर पल-पल नजर चुनाव में सभी कैंडीडेट अपना प्रचार तेजी से कर रहे हैं। चुनाव में लगे लोग कैंडीडेट के प्रचार की हर हरकत पर नजर रखते हैं। सबसे पहले देखा जाता है कि दिन में किस-किस कैंडीडेट की सभा कहां-कहां हैं .इन सभाओं में कौन-कौन प्रचारक आ रहे हैं। क्या प्रचार के लिए अनुमति ली गई है या नहीं। कोई वीआईपी तो नहीं आ रहा है। कहीं सभा में आचार संहिता का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है। नजर रखने के लिए वीडियो सर्विलांस टीमें लगायी गई हैं। इन टीमों का काम भी सुबह से स्टार्ट हो जाता है। ये टीमें चुनावी सभा में अपने कैमरे के साथ जाती हैं। वहां नेताओं के भाषण की रिकॉर्डिग करती हैं। इसके अलावा सभा में कितना खर्चा किया गया इसके लिए वहां लगे टैंट, चेयर्स, माइक समेत छोटी-छोटी चीजों की भी रिकॉर्डिग करती हैं। टाइम के आधार पर रिकॉर्डिग कर क्यू शीट पर पूरी डिटेल फाइल कर वीडियो व्यूइंग टीम को सौंपा जाता है। वीडियो व्यूइंग का 'वार' रूमवीडियो व्यूइंग टीम के लिए कलेक्ट्रेट में रूम बनाया गया है। यहां पर दोनों लोकसभा में दो-दो वीडियो व्यूइंग अधिकारी और चार-चार सह-अधिकारी लगाए गए हैं। वीडियो व्यूइंग टीम के इंचार्ज एडीएम एफआर हैं। ये टीमें कंप्यूटर पर वीडियो की सीडी चलाकर देखती हैं और उसमें देखती हैं कि किस सभा में किन-किन चीजों का प्रयोग किया गया। इसके अलावा किस लीडर ने अपने भाषण में मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का उल्लंघन किया।
एकॉउंट टीम रखती है खर्च पर नजर चुनाव में कैंडीडेट कितना खर्चा कर रहा है। इसकी निगरानी एकॉउंट टीम के जिम्मे है। इस टीम के इंचार्ज मुख्य कोषाधिकारी पीडी उपाध्याय हैं। इसके अलावा, दोनों लोकसभा में अलग-अलग दो-दो अधिकारी और चार-चार सह अधिकारी लगे हैं। कैंडीडेट के द्वारा प्रोवाइड डिटेल के साथ-साथ वीडियो फुटेज से उसका मिलान किया जाता है। छापामार दल से बचना मुश्किलचुनाव में वोटरों को लुभाने के लिए पैसा, शराब व अन्य चीजों का प्रयोग किया जाता है। इन पर नजर रखने के लिए स्टैटिक सर्विलांस टीमें व फ्लाइंग स्क्वायड चौकस रहते हैं। इनकी नजर से भी कोई बचकर नहंी जा सकता है। कई बड़े कैंडीडेट पर एफआईआर भी दर्ज की जा चुकी है। इन टीमों को चुनाव कंट्रोल रूम में डेली रिपोर्ट सौंपनी होती है। चुनाव कंट्रोल रूम की जिम्मेदारी सीनियर चुनाव अधिकारियों को डेली रिपोर्ट देना है।
माइक्रो आब्जर्वर का 'माइक्रो' रोल सैकड़ों माइक्रो आब्जर्वर भी चुनाव ठीक से संपन्न कराने में लगे हैं। ये भी छोटी-छोटी बातों की निगरानी करते हैं। माइक्रो आब्जर्वर के द्वारा क्रिटिकल व वल्नेरेबल बूथ की निगरानी करना मेन है। माइक्रो आब्जर्वर अपनी रिपोर्ट आब्जर्वर को देते हैं। आब्जर्वर इसे इलेक्शन ऑिफस में कार्रवाई के लिए भेजते हैं। वहीं ख्ख् जोनल मजिस्ट्रेट व ख्फ्क् सेक्टर जोनल मजिस्ट्रेट भी बूथों पर जाकर वोटर्स को दी जाने वाली सुविधाओं को चेक कर उन्हें दूर कराने में लगे हुए हैं। ना खाने का समय न सोने का इलेक्शन के दौरान मीटिंगों की भी संख्या बढ़ गई है। सभी को डेली तीन से चार मीटिंग अटेंड करनी ही पड़ती हैं। मीटिंग में भी तरह-तरह के निर्देश के साथ रिकॉर्ड चेक होते हैं। यही नहीं इसके साथ ही चुनाव में वोटिंग परसेंट कतई कम न हो इसकी जिम्मेदारी भी इन्हीं के कंधों पर होती है। ऐसे में चुनावी मौसम में इनका पूरा रूटीन ही बदल जाता है। चुनाव में लगे अधिकारियों व अन्य स्टाफ का लंच-डिनर से लेकर सोने और उठने का कोई टाइम नहीं है। फ्री एंड सेफ चुनाव हो इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। डेली रुटीन में चेंज आया है लेकिन मैनेज कर चुनाव पर फोकस कर रहे हैं। डेली सैकड़ों फोन रिसीव करने पड़ते हैं और फाइलें भी देखनी होती हैं। सभी टीमों के काम बंटे हैं और सब अपनी जिम्मेदारी में जुटे हैं। अरुण कुमार, डिप्टी डिस्ट्रिक्ट इलेक्ट्रोलर ऑफिसर मेरी जिम्मेदारी मॉडल कोड आफ कंडक्ट को फॉलो कराना है। डेली रुटीन तो बदल गया है लेकिन सबसे पहले वर्क है। डेली इस काम में लगी टीमों से बात की जाती है। स्वयं ही चेकिंग के लिए निकल जाता हूं। कंट्रोल रूम से भी दिन में कई बार अपडेट लेनी पड़ती है। -आर पी सिंह, प्रभारी, चुनाव आचार संहिता फैक्ट फइल रिटर्निग ऑफिसर- ख् सहायक रिटर्निग ऑफिसर- म् नोडल ऑफिसर- क्भ् प्रभारी अधिकारी-क्म् सहायक प्रभारी अधिकारी- भ्0 से अधिक फ्लाइंग स्क्वायड- ख्7 (पांच-पांच की टीम) स्टैटिक सर्विलांस टीम- ख्8 (सबमें पांच) एमसीसी टीम- 9 (प्रत्येक में पांच कर्मी) ऑब्जर्वर-ख् सहायक व्यय प्रेक्षक- 9 वीडियो सर्विलांस टीम-9 वीडियो व्यूइंग टीम-9 एकॉउंट टीम-9 माइक्रो आब्जर्वर - ख्00 (लगभग) टोटल स्टाफ - क्ब्000 (लगभग)