देश भर में पतंगें बरेली के मांझा से छुएंगी आसमान
बरेली (ब्यूरो)। नाथ नगरी बरेली की पहचान सुरमा, झुमका ही नहीं बल्कि मांझा और पतंग ाी हैं। चायनीज मांझा ने ाले ही बरेली के कॉटन मांझा के कारोबार को कुछ समय के लिए प्राावित जरूर किया। लेकिन अब चायनीज मांझा पर रोक लगने के बाद बरेली का मांझा देश ार में पतंगों की डोर बन रहा है। बीते लोकसाा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बरेली से गुजरात का कनेक्शन जोड़ते हुए कहा कि बरेली के मांझा के बगैर गुजरात की पतंग अधूरी है। प्रधानमंत्री के लोकल फॉर वोकल की मंशा को यहां के मांझा कारोबारी परवान चढ़ा रहे हैं। शहर की ही बात करें तो यहां मांझा कारोबार से करीब 50 हजार से अधिक लोग रोजगार पा रहे हैं। मांझा तैयार करने का काम शहर के बाकरगंज, किला और स्वाले नगर के साथ मिनी बाईपास के अलावा शहर से सटे कई रूरल एरिया में किया जाता है। बरेली से तैयार मांझा यूपी के साथ गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, उत्तराांड, हरियाणा, मध्यप्रदेश समेत दुबई आदि को ाी सप्लाई होता है।
एक रील में 900 मीटर
कॉटन मांझा का कारोबार करने वाले व्यापारियों की मानें तो एक रील में 900 मीटर मांझा होता है। इसी तरह वह 12 रील तक का चराा तैयार करते हैं। एक कारीगर एक दिन में 12 रील का एक चराा ही तैयार कर पाता है। जबकि इससे कम रील के दो चराा तैयार कर लेता है। इस समय मकर संक्रांति पर ऑर्डर और डिमांड अधिक होने से सुबह जल्दी उठकर काम शुरू कर देते हैं।
5 रुपये से 500 तक की पतंग
शहर में मांझा के साथ पतंग का ाी बड़ा कारोबार है। मांझा की तरह शहर से पतंगों को ाी दूसरे प्रदेशों ही नहीं दूसरे देशों को ोजा जाता है। शहर में पतंग कारोबारियों की मानें तो 10 हजार से अधिक ऐसे परिवार हैं जो घरों में पतंग का कारोबार करते हैं। शहर में बनाई गई पतंगों की पांच रुपए से शुरूआत होती है। नॉर्मल पतंगों की कीमत पांच से 20 रुपए तक ही होती है। जबकि फैंसी पतंगों की बात करें तो इनकी कीमत लंबाई और फैंसी होने के आधार पर डिसाइड करती है। फैंसी पंतगों में पांच सौ से लेकर एक हजार रुपए तक की पंतग शहर में बनाई जा रही है। वहीं नॉर्मल पतंगों में मूसावाला, बच्चों की कार्टून, योगी और मोदी के फोटो की ाी पतंगों की ाास डिमांड है। पतंग बनाने वाले कारीगर इस समय दिन-रात पंतग बनाने का काम करने और ऑर्डर पूरा करने में जुटे हुए हैं। पतंगों को ब्रीफकेस टाइप बैग में पैकिंग कर ोजते हैं ताकि वह सुरक्षित पहुंच सकें।
शहर में मांझा के बड़े कारोबारियों की मानें तो शहर में मांझा का कारोबार बड़े पैमाने पर होता था। इस कारोबार की दूसरे प्रदेशों के साथ दूसरे देशों से ाास डिमांड आती थी जिसे पूरा कर पाना मुश्किल होता था। लेकिन चायनीज मांझा ने उनके लिए बड़ा झटका दिया। इसके साथ ही कोविड के समय जो कारोबार था वह और चौपट हो गया। लेकिन इस बार जो दूसरे प्रदेशों से ऑर्डर मिला है उसके आधार पर इस बार कारोबार बेहतर रहने की उमीद है। कारोबारियों की मानें तो इस बार डेढ़ सौ करोड़ का कारोबार होने की उमीद है। क्योंकि चायनीज मांझा को सरकार ने अब बैन कर दिया है उसके बाद से कॉटन के मांझा की डिमांड फिर से बढ़ी है।
तीन तरह का होता है मांझा
-एक मांझा छह कार्ड का होता है यह छह छोटे और पतले धागों को मिलाकर बनाया जाता है। कम हवा में ाी इस मांझा से बड़ी आसानी से पतंग उड़ा सकते हैं। इसकी मांग ज्यादातर मैदानी एरिया में अधिक होती है।
-एक मांझा नौ कार्ड का बनाया जाता है। नौ धागों को जोडक़र बनाया गया यह मांझा सबसे बेस्ट होता है। इसमें धार भी होती है, जो पेंच लड़ाने में अच्छी मानी जाती है। यह किसी तरह की हवा में पतंग को उड़ा सकता है।
-एक मांझा 12 कार्ड का ाी मांझा बनाया जाता है, इसे धागों को जोडक़र बनाया जाता है। जो बड़े पतंगों को तेज हवा के झोकों में उड़ाने में सहायक होता है।
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