खूबसूरती को लगी 'नजर'
महंगी पड़ेगी जवां दिखने की चाहत
फिट और जवां दिखने की चाहत अब आपको खासी महंगी पडऩे वाली है। फिजिकल एक्सरसाइजर, फिटनेस इक्विपमेंट्स, मेडिकेटेड सोप, एंटीसेप्टिक क्रीम, आई जेल, मसाज क्रीम, शहद जैसी कमोडिटीज को अनक्लासीफाइड लिस्ट में शुमार कर लिया गया है, जबकि इससे पहले ये कमोडिटीज टैक्स फ्री की कैटेगरी में शामिल होती थीं। स्टेट के संस्थागत कर एवं निबंधन विभाग के प्रमुख सचिव संजीव नायर ने 10 अक्टूबर को अधिसूचना जारी कर यह संशोधन कर दिए हैं। वैट की नई दरें 11 अक्टूबर से प्रभावी भी हो चुकी हैं।
जीरो से 14 परसेंट हुआ VAT
एक्चुअली यूपी गवर्नमेंट ने 2009 में फिजिकल एक्सरसाइजर और फिटनेस इक्विपमेंट्स को स्पोट्र्स के दायरे में रखते हुए टैक्स फ्री कर दिया था। इसके बाद अचानक मार्केट में जूम आ गया। इनकी सेल में कई गुना इजाफा दर्ज हुआ। हालिया फेरबदल में जारी अधिसूचना के तहत इन इक्विपमेंट्स को अनक्लासीफाइड कैटेगरी में ट्रांसफर कर दिया है। इसका सीधा मतलब ये हुआ कि जिन इक्विपमेंट्स पर अब तक जीरो परसेंट टैक्स था, अब उन पर 12.5 परसेंट का वैट और 1.5 परसेंट अतिरिक्त टैक्स प्रस्तावित किया गया है। व्यवसाई मान रहे हैं कि इन सभी इक्विपमेंट्स का कॉस्टली होना तय है।
क्रीम और सोप्स महंगे
इसके अलावा मेडिकेटेड सोप, शैंपू, एंटीसेप्टिक क्रीम, फेस क्रीम, मसाज क्रीम, आई जेल और हेयर ऑयल को वैट की अनुसूची 2 से हटाकर अनुसूची 5 में शामिल किया गया है। अब तक ये सभी कमोडिटीज दवाओं में शामिल की जाती थीं, जिससे ये टैक्स फ्री रहती थीं। अब नई व्यवस्था में इन वस्तुओं पर 12.5 परसेंट वैट और 1.5 परसेंट अतिरिक्त टैक्स लगेगा। दवा व्यापारियों का कहना है कि ये सारी वस्तुएं दवाओं के रूप में इस्तेमाल होती हैं, जबकि वाणिज्य कर विभाग इन्हें सौंदर्य प्रसाधन की वस्तुएं मान रहा है। इसलिए इन्हें टैक्स के दायरे में लिया गया है।
शहद और ग्लूकोज भी 'खट्टा'
इसी तर्ज पर शहद व ग्लूकोज को भी टैक्स फ्री के दायरे से हटा दिया गया है। अब तक इन्हें भी दवाओं की कैटेगरी में माना जाता था मगर अब अनुसूची 5 में ट्रांसफर होने के बाद इन दो कमोडिटीज पर 4 परसेंट टैक्स लगेगा। साथ ही एक परसेंट का अतिरिक्त टैक्स लगाया गया है। इसके बाद अब इन पर 5 परसेंट वैट लगाया जाएगा। इसी तरह प्लाई वुड, फ्लश डोर और ब्लॉक डोर को अनुसूची दो 2 से हटा दिया गया है इसलिए अब इन पर भी नई दरों से वैट का भुगतान करना होगा।
तुरंत नहीं दिखता असर
व्यवसाई मानते हैं कि स्टेट गवर्नमेंट ज्यादा से ज्यादा रेवेन्यू जेनरेट करने के लिए ऐसा करती है। दरअसल वैट की इस गुपचुप बढ़ोतरी से तुरंत मार्केट पर असर नहीं दिखता क्योंकि शुरुआती दौर में कंपनियां एमआरपी नहीं बढ़ाती हैं। ऐसा होता आया है कि
एमआरपी कम से कम 3 से 5 महीने बाद ही बढ़ाई जाती है। इसमें भी खेल ये है कि अगर वैट में एक परसेंट का इजाफा होता है तो कंपनियां 3 से 5 परसेंट रेट इंक्रीज कर देती हैं।
रेट में इतना हो सकता है इजाफा
Item Old price (Rs) New price (Rs)
एक्सरसाइजर साइकिल 3,600-10,000 4,104-11,400
मैन्यूअल ट्रेडमिल 5,500-12,000 6270-13680
मोटराइज्ड ट्रेडमिल 18,000- 4,00,000 20,520-4,56,000
जिम के प्रोडक्ट
क्रास फेनर 6,000-20,000 6,840-22,800
होम जिम, मल्टी परपज 19,000-40,000 21,660-45,600
पार्लर की फैसिलिटी
क्लीन अप 200 से 1,000 228-1,140
फेशियल 300 से 15,000 342-17,100
मैं अक्सर पार्लर जाती रहती हूं। क्वालिटी के साथ रेट पर भी ध्यान रहता है। गवर्नमेंट को इस तरह से इन प्रोडक्ट्स को वैट के दायरे में नहीं लाना चाहिए था। कुछ महीने में सब कुछ तो पहले ही मंहगा हो चुका है।
-सोनाली
महंगाई हर सेक्टर में परेशान कर रही है। हमें सिम्पल मसाज के लिए भी
ज्यादा पैसा खर्च करना होगा। मेडिकेटेड सोप, एंटीसेप्टिक क्रीम, शहद, ग्लूकोज जैसी जरूरत की चीजों पर वैट नहीं लगाना चाहिए।
-अमिता
पिछले 6 महीने में एक के बाद एक सभी चीजों के रेट्स बढ़ रहे हैं। अब फिटनेस के लिए भी हमें ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ेगा। एक्सरसाइजर को स्पोट्र्स कैटेगरी से नहीं हटाना चाहिए था। ज्यादातर प्लेयर्स ही इसका यूज करते हैं।
-आशीष
एक्सर साइजर के स्पोट्र्स कैटेगरी से हटने के फैसले से सबसे ज्यादा यूथ प्रभावित होता है, क्योंकि इसका सबसे ज्यादा यूज यूथ ही करता है। अब हम फिट रहने के लिए भी ज्यादा पैसा खर्च करें। ये ठीक नहीं है.
-राहुल
अचानक एक्सरसाइजर और फिटनेस इक्विपमेंट्स को स्पोट्र्स की कैटेगरी से हटाने का सेंस समझ से बाहर है। हालिया चेंजेज के बाद हर एक्सरसाइजर पर स्ट्रेट 14 परसेंट की बढ़ोतरी होनी है। ऐसे में ये फैसला फाइनली कंज्यूमर की जेब पर ही बोझ बढ़ाएगा।
-अर्चित सेठी,
संजय इंटरप्राइजेज
ग्लूकोज, एंटीसेप्टिक क्रीम, मसाज क्रीम, मेडिकेटेड सोप को दवाइयों की लिस्ट से हटाने का फैसला फिलहाल तो कंपनियों का घाटा बढ़ाएगा। मगर कुछ महीने बाद कंपनियां इन कमोडिटीज को मार्केट में बढ़े रेट पर सप्लाई करेंगी। मतलब ये कि टैक्स की बढ़ोतरी कंज्यूमर्स की जेब से ही वसूली जाएगी।
-दुर्गेश, केमिस्ट