Bareilly: फास्ट हो चुकी लाइफ में बच्चों के ब्रेकफास्ट से लेकर डिनर तक में फास्ट फूड्स ने अपनी जगह बना ली है. इससे बच्चों में विटामिन्स की कमी हो रही है. वहीं आउटडोर गेम्स की जगह वीडियो गेम्स ने ले ली है जिससे बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी कम हो गई है. इन सभी फैक्ट्स का सीधा असर बच्चों की हेल्थ पर पड़ रहा है. बच्चे फिजिकली वीक तो हो ही रहे हैं साथ ही उनकी आंखों की रोशनी पर भी काफी बुरा इफेक्ट पड़ रहा है. ऐसे में अगर हम कुछ एहतियात बरतें तो बच्चों की आशाओं से भरी दुनिया को धुंधली होने से बचा सकते हैं.


52 हजार बच्चों में eye problem सरकार के राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्यक्रम के तहत प्राणी संस्था द्वारा किए गए एक सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। प्रदेश के 6 से 14 साल के 3 लाख 75 हजार बच्चों पर किए गए इस सर्वे में 35 हजार लड़कियों और 17 हजार लड़कों में आई रिलेटेड प्रॉब्लम सामने आई है। सर्वे में बच्चों में मायोपिया, एंबलायोपिया, भेंगापन, आई मसल्स में टेंशन की वजह से हेडेक, आंखों में पानी आना के साथ ही विटामिन ए की कमी सबसे कॉमन है। वहीं 22 बच्चों में मोतियाबिंद और सर्वे में शामिल 10 परसेंट में आई साइट वीक होने की प्रॉब्लम सामने आई है। 12 परसेंट बच्चों की एक आंख की विजुएलिटी में कमी पाई गई। ताकि एंबलायोपिया न हो


आई स्पेशलिस्ट सजेस्ट करते हैं कि बच्चों की बर्थ के बाद हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने से पहले ही उनकी आंखों को किसी आई स्पेशलिस्ट से चेक करा लेना चाहिए। अगर ऐसा न कर पाएं तो बच्चे को स्कूल भेजने से पहले भी ये चेकअप करवाया जा सकता है। ये बच्चों के लिए काफी जरूरी माना जाता हन्ै। डॉ। अक्षत बास बताते हैं कि अक्सर देखने में आता है कि बच्चों की आई साइट वीक होने पर सही समय पर उन्हें नजर का चश्मा नहीं लगवाया जाता है। अगर बच्चों को सही समय पर सही नंबर का चश्मा नहीं लगवाया जाता है तो बच्चों में एंबलायोपिया (आंखों में परमानेंट पावर आना) हो सकता है। prematures को problemन्यूली बॉर्न बेबी की आंखों में किसी भी तरह की समस्या जैसे पलकों में स्वेलिंग, आंखों से पानी आना, आंसुओं की नली के बंद होने पर समय से ट्रीटमेंट हो तो प्रॉब्लम जल्द ठीक हो सकती है। डॉक्टर्स कहते हैं कि कम वजन वाले व समय से पहले पैदा हुए बच्चों के लिए आंखों की रेगुलर जांच जरूरी है।  बीस मिनट पर लें breakकम्प्यूटर पर काम करते वक्त पलकों को झपकाते रहना चाहिए। इससे आंखों में आंसू फैलता है। जिससे आंखे ड्राई नहीं होती। हर 20 मिनट में 20 सेकेंड का ब्रेक ले और 20 फिट दूर कही देखें। इससे आंखों को रिलैक्स मिलता है। धूप-मिट्टी और सूरज की अल्ट्रावॉयलेट किरणों से बचाने के लिए बाहर निकलते समय अच्छी कंपनी का चश्मा लगाएं।Food habit में करें बदलाव

आंखों की टीशूज और रेटिना को हेल्दी बनान के लिए ल्यूटेन और जैक्सांथिन नाम के दो पदार्थों की अहम भूमिका रहती है। स्पेशलिस्ट के अकॉर्डिंग हरी सब्जियों और फलों में ये दोनों तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए विटामिन से भरपूर खाना जैसे दूध, सब्जी और मौसमी फल खाना चाहिए। आंखों में नमी बनाए रखने के लिए पानी और जूस का अधिक मात्रा में सेवन करें।चश्मा regular चेक कराएंलड़कपन की उम्र में ही सबसे ज्यादा प्रॉब्लम सामने आती हैं। बच्चों की आई साइट वीक की प्रॉब्लम डिटेक्ट न हो पाने के कारण उनका चश्मा सही समय पर नहीं बन पाता है। अक्सर देखा गया है कि बच्चों के चश्मे का नंबर सही नहीं होता है जिसका आंख पर इफेक्ट पड़ता है। इससे रिफरेक्टिव एरर कहते हैं। इसलिए जरूरी होता है कि समय-समय पर बच्चों की आंखों का चेकअप करवाया जाए।Computer vision syndrome के मामले बढ़े

इररेगुलर लाइफस्टाइल और खानपान, देर तक कंप्यूटर पर काम करने और पॉल्यूशन के कारण कई प्राब्लम्स सामने आती हैं। डॉ। अक्षत बास के अकॉर्डिंग घर, ऑफिस और स्कूल हर जगह कम्प्यूटर का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। आज यह युवाओं की प्राइवेट, प्रोफेशनल और सोशल लाइफ का खास हिस्सा है। यूथ का 60 परसेंट समय किसी न किसी स्क्रीन के सामने ही बीतता है। इसलिए कंप्यूटर विजन सिंड्रोम से पीडि़त यूथ की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके नार्मल सेम्पटम आंख और सिर में भारीपन, धुंधला दिखाई देना, आंखों में जलन, खुजली और आंखों में ड्राईनेस हैं।रखे सावधानियां -कम वजन वाले और समय से पहले पैदा होने वाले बच्चों की आंखों का रेगुलर चेकअप जरूरी होता है।-नवजात बच्चों को विटामिन ए की खुराक जरूर पिलाएं। विटामिन ए की कमी से रतौंधी हो सकती है। -लंबे समय तक उन्हें कंप्यूटर या टीवी स्क्रीन न देखने दें।-धूल मिट््टी और तेज धूप में न खेलने दें। -बच्चों को झुककर न पढऩे दें। हमेशा टेबल कुर्सी का इस्तेमाल करें।-हमारी आंखों की फोकसिंग पॉवर लिमिटेड होती है, इसलिए बच्चों को हर आधे घंटे के बाद पांच मिनट का बे्रक लेने दें।

Posted By: Inextlive