Food inflation -2.9% महंगाई +28%
लास्ट 31 दिसंबर को समाप्त वीक में फूड इंफ्लेशन जीरो से नीचे -2.9 परसेंट पर थी। एक साल पहले सेम वीक में यह डेटा 19 परसेंट पर थी। यह आंकड़ा अप्रैल 2006 के बाद मिनिमम लेवल पर है। महंगाई के आंकड़ों में इतनी उठापटक होने बावजूद पब्लिक को कोई राहत नहीं मिली। मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अनुसार वेजीटेबलस की प्राइस लास्ट इयर के मुकाबले हॉफ हो गए हैं।Season का असर हैगवर्नमेंट भले ही फूड प्राइस की गिरावट को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही हो, लेकिन बिजनेसमैन और इकोनॉमिस्ट का मानना है कि यह सीजनल इफेक्ट है। फूड सप्लाई ज्यादा होने से प्राइस कम हुए हैं। गवर्नमेंट का कोई रोल नहीं है।गिरते inflation का फायदा brokers को
इकोनॉमिस्ट का मानना है कि फूड इंफ्लेशन रेट पब्लिक के मार्केट रेट से मेल नहीं खाते। कुछ गवनर्मेंट स्टोर्स पर यह रेट दिख सकते हैं। लेकिन आम मार्केट स्टोर पर प्राइस उतना डिप नहीं करता। इसका मेन रीजन ब्रोकर्स हैं। वे फार्मर्स से डायरेक्ट माल उठाते हैं। वहां से इस माल को होलसेल मंडी में पहुंचाते हैं। वहां से फिर माल होलसेल पर उठाया जाता है और सिटी मार्केट में पहुंचाया जाता है। आमतौर पर तीन स्तर पर ब्रोकर्स ही इसका फायदा उठाते हैं।Vegetables rate chart
आर्टिकल आढ़ती रेट होलसेल रेट मार्केट रेटपोटैटो 3 4 8टोमैटो .50 - 1 4 10कैरट 3 5 10ओनियन 4 6 10ग्रीन पी 4 8 10Fruits rate chartआर्टिकल होलसेल प्राइस मार्केट प्राइसबनाना 15-20 25आरेंजेस 20-25 30-35एप्पल 40-45 70-80ब्लैक ग्रेप्स 60 80-90ग्रीन ग्रेप्स 40-50 60-70जितना गवर्नमेंट हल्ला कर रही है फूड के रेट उतने तो नहीं गिरे हैं। इस सीजन में तो यह रेट आम बात है। हमें तो नहीं लगता है कि फूड प्रोडक्ट्स के रेट कम हो गए हैं। महंगाई हमारी पॉकेट तब भी भारी थी और आजकल भारी है।-कुसुम, कस्टमरइस बार फूड प्रोडक्शन काफी अच्छा हुआ है। मार्केट में सप्लाई ज्यादा है। इसके चलते रेट में थोड़ा डिफरेंस आया है। यह आम बात है। सीजन में उतार-चढ़ाव तो चलता ही रहता है। महंगाई इतनी भी कम नहीं हुई है कि लोगों को राहत मिल सके।-सोनू, प्रोविजन स्टोर ओनर
गवर्नमेंट जो इंफ्लेशन रेट तैयार करती है वह कुछ सेलेक्टेड फूड आइटम्स और सेलेक्टेड स्टोर के आधार पर होता है। यह डाटा पब्लिक मार्केट रेट से मेल नहीं खाता। मार्केट रेट सामान्य तौर पर ब्रोकरेज और कई तरह के टैक्सेज मिलकर तय होता है। इसमें ब्रोकर मुनाफा कमाने के लिए सप्लाई का कृत्रिम संकट दिखाकर रेट हाई कर देते हैं।-डॉ। एमसी सिंह, इकोनॉमिस्ट
Reported by: Abhishek Singh