जन है बेजार, गण बने बेपरवाह और मन हुआ आजाद
>BAREILLY: आजादी मिली अपने हक हुकूक की स्वतंत्र रूप से वकालत करने की। आजादी मिली मौलिक अधिकारों के इस्तेमाल की, आजादी मिली स्वतंत्र रूप से लिखने, बोलने, सोचने और घूमने की। आजादी मिली अपने मन की सुनने और मन की करने की, लेकिन वक्त केसाथ हम आजादी के दायरे को ही तोड़ने के लिए आजाद हो गए। हमने खुद आजादी के मायने बदल दिए हैं, जो ना केवल हमारे बल्कि दूसरों के लिए प्रॉब्लम्स खड़ा कर रहा है। आज हम ऐसे ही आजादी से रूबरू कराएंगे जिन्हें हम अपना अधिकार समझने लगे हैं।
बेटिकट सफर की आजादीट्रेनों में बिना टिकट सफर करना कइयों ने अपना अधिकार समझ समझ गया है। बिना टिकट सफर करने वाले और जनरल टिकट पर स्लीपर-एसी में जर्नी करने वाले पैसेंजर्स के खिलाफ जब तब अभियान चलाए जाते हैं, जिसमें जुर्माना लगने के साथ ही कई बार जेल जाने की नौबत आती है। बावजूद इसके मुफ्त सफर करने की मानसिकता से देश के कई नागरिकों को आजादी नहीं मिली। रेलवे ऑफिशियल्स के मुताबिक बरेली जंक्शन से ही हर साल रूटीन चेकिंग ड्राइव ब्000-भ्000 बेटिकट व इररेगुलर पैसेंजर्स पकड़े जाते हैं।
फैकट: बरेली जंक्शन से ही हर साल रूटीन चेकिंग ड्राइव ब्000-भ्000 बेटिकट पकड़े जाते हैं बिना टैक्स सुविधाअों का मजाआजादी को हासिल किए भले ही म्7 साल बीत गए हो, लेकिन इसे बेहतर बनाने को अपनी जिम्मेदारियां पूरा करने की समझ आज भी विकसित नहीं हुई। शहर को बेहतर बनाने व इसका विकास करने के लिए जिम्मेदार नगर निगम अक्सर जनता के निशाने पर रहता है। सड़क, सीवर व सफाई पर निगम की आलोचना करने वाले शहर के आधे से ज्यादा बाशिंदे समय पर टैक्स नहीं अदा करते। निगम के रिकॉर्ड में दर्ज करीब 88 हजार टैक्सपेई में से लगभग ख्म्,भ्00 ने ही साल ख्0क्फ्-क्ब् में अपने घरेलू टैक्स अदा किए। कई ऐसे इलाके हैं जहां के लोग साल भर परेशानियों को लेकर निगम का घेराव तो करते हैं लेकिन टैक्स नहीं चुकाते।
-88 हजार टैक्सपेई , ख्म्,भ्00 ने ही बीते साल चुकाया टैक्स बिजली चाहिए और बिल चुकाने में आनाकानीबिजली का बिल नहीं जमा करना ही कंज्यूमर्स सच्ची आजादी मानते है। तभी तो बिजली का इस्तेमाल करने के बाद भी महीनों से बिल जमा करना मुनासिब नहीं समझते है। सिटी में विभाग के करीब पौने दो लाख कंज्यूमर्स है। फर्स्ट, सेकेंड और थर्ड डिविजन को मिलाकर विभाग के भ्0 करोड़ रुपए बिजली बिल के रूप में बकाए है। बकाएदारों में कंज्यूमर्स ही नहीं कई सरकारी विभाग भी शामिल है। इस बात से यह साफ हो जाता है कि, हम आजादी का किस तरह गलत फायदा उठा रहे है।
भ्0 करोड़ रुपए बिजली बिल के रूप में बकाया कैंपस में एकेडमिक व्यवस्था बिगाड़ने की आजादी यह तो अब शगल बन गया है कि जब तक किसी भी व्यवस्था में बाधक ना बनें तब तक आपकी सुनी नहीं जाती। कैंपस में हर बार किसी ना किसी मांग को लेकर कर्मचारी हों, स्टूडेंट्स लीडर्स हों या फिर टीचर्स स्ट्राइक पर चले जाते हैं। इससे सबसे बड़ा नुकसान स्टूडेंट्स को झेलना पड़ता है। कैंपस में अराजकता का माहौल पैदा हो जाता है। अपने अधिकारों की आवाज बुलंद करने का हक सभी को है, लेकिन उसकी कीमत कोई और अदा करे यह गंवारा नहीं। आजादी का मतलब भूल गएहम अपनी जिम्मेदारियों को नहीं निभाते, लेकिन चाहते हैं कि सरकार सब कुछ करें। लोगों के लिए आजादी की अहमियत बस अपनी सुविधाओं तक है। हम आजादी का मतलब भूल गए हैं। हमें अधिकार तो पूरे चाहिए लेकिन जिम्मेदारियों पूरी करने में पीछे हैं। अक्सर जनता इस आजादी का मिसयूज करती हैं। सड़कों पर धरना, तोड़फोड़ व हड़ताल से आम जनता को भी नुकसान होता है। आजादी के बाद पॉजिटिविटी की कमी होती आई। हम अपनी खामियों को नहीं देखते।
- डॉ। अजय भारती, सर्जन लोकतंत्र का गलत इस्तेमाल हमारे समाज में मैक्सिमम लोग ऐसा ही काम करते है ताकि दूसरों को प्रॉब्लम्स हो। मगर लोगों को यह समझना होगा कि, हमारी स्वतंत्रता वही समाप्त हो जाती है जहां से दूसरे लोगों की स्वतंत्रता प्रभावित होने लगती है। आज हर मोड़ पर लोकतंत्र का गलत इस्तेमाल होते मिल जाएगा। सरकार और सामाजिक संगठन इस ओर एक पॉजिटिव पहल कर सकती है। प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित करने में अहम रोल अदा कर सकती है। लोगों को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने की जरूरत है। तभी आजादी के सही मायने को समझ सकते है। -राजेश जसोरिया, जनरल सेक्रेटरी, यूपी उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल बस दूसरों को सीख देते हैंप्रजेंट टाइम में यूथ राह से भटक चुके हैं। देश की आजादी के क्या मायने हैं, स्कूल लाइफ से ही पैरेंट्स बच्चों को बताएं। लेकिन शायद ही कोईफैमिली हो जो देशभक्ति, देशप्रेम और संविधान के बनाए नियम व कानून को फॉलो करने की सीख देता होगा। यहां तक कि नियम और कानून को फॉलो कराने की जिम्मेदारी जिन कंधों पर होती है, जब वह खुद ही भ्रष्ट हैं तो लोगों को कैसे सही रास्ते पर ला सकते हैं। दूसरों को सभी अच्छी सीख देते हैं, लेकिन अपने को सही नहीं बनाना चाहते हैं। ऐसे में फ्रीडम टेक इट फॉर ग्रांटेड तो होनी ही है।
- श्वेता, हाउसवाइफ तो औरों से उम्मीद करना गलत जिम्मेदार जब रूल्स फॉलो नहीं करते, तो औरों से उम्मीद करना गलत है। चंद रुपए गलतियों पर पर्दा डालने के लिए काफी हैं। कितने ही कानून क्यों ना बना दिए जाएं, तब तक कड़ाई से पालन नहंीं होगा तब तक वह महज खानापूर्ति का रोल ही प्ले करेंगे। पॉलिटिशियन, ब्यूरोक्रेट्स सभी भ्रष्ट हैं तो जनता भी इनकी परवाह नहीं करती। दूसरी ओर लोग भी अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं। हम जनता को टारगेट कर सभी गलतियों की जिम्मेदारी उन पर ही थोप देते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि यह व्यवस्थादोष है। - तुषार, बिजनेसपर्सन देश में रोल मॉडल की कमी बदलते समय के साथ लोग भी बदल रहे हैं, लेकिन पूरी तरह बदलने के लिए आजादी के मायने, सरोकार और प्रासंगिकता के बारे में लोगों को पता होना चाहिए। लीक से हटकर सामाजिक ढांचे और कानून व्यवस्था को तोड़ना लोगों को काफी पसंद आता है। देखा जाए तो, चारों ओर भ्रष्टाचार है। अधिकारी हों या जनप्रतिनिधि सभी अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं। युवाओं को सही राह दिखाने वाले रोल मॉडल की कमी देश में है। - रानी खानुम, कत्थक नृत्यांगना अपने दायरों को पहचान लें यह समस्या आज इसलिए उत्पन्न हुई है ताकि हर कोई अपनी जिम्मेदारी से बचता है। यदि सभी अपनी जिम्मेदारी को समझ लें और उसे पूरी निष्ठा से निभाएं तो आज आजादी के इतने वर्ष बाद भी हमें अधिकारों के लिए लड़ना नहीं पड़ता। अपने दायरों को पहचान लें तो दूसरों के लिए कष्टदाई नहीं होंगे। लेकिन यहां हर किसी में पहले मैं की भावना है। दूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारी का किसी को आभास ही नहीं है। इसलिए वे दूसरों की लाइफ में बाधक बन जाते हैं। - डॉ। वीपी सिंह, टीचर, बीसीबी