Bareilly: आपने पार्कों के हालात पर एक बार नजर तो जरूर दौड़ाई होगी. बताने की जरूरत नहीं कि पार्क किस खस्ता हालात से गुजर रहे हैं. इसपर अगर आपको यह बताया जाए कि पिछले पांच सालों में नगर निगम ने पार्कों के रखरखाव में 37110464 करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं तो मुमकिन है कि आप चौकेंगे ही. यह आंकड़ा बिल्कुल सही है. लेकिन नगर निगम के पार्क की तस्वीर सुधरने की बात तो छोडि़ए ये जुआरियों के अड्डे डेयरियों और पार्किंग में तब्दील हो रहे हैं. मेयर ने भी अपने चुनावी वादों में पार्कों के सौंदर्यीकरण को मुद्दा बनाया था. मगर बोर्ड गठन के कई महीनों के बाद भी कुछ चुनिंदा पार्कों को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकी पार्कों की कंडीशन खस्ताहाल है. इस दिशा में कोई कारगर पहल नजर नहीं आ रही है.


बंगलों में लगते हैं पौधे शहर के 70 वार्डों में 103 पार्क हैं। कुछ नामचीन पार्कों को छोड़ दे तो शहर के बाकी पार्कों में नाममात्र ही पौधे हैं। ज्यादातर पार्क में बारिश के बाद जंगली झाडिय़ां उगी हुई हैं। ऐसा तब है जब नगर निगम वार्षिक बजट में 1.25 करोड़ रुपए की फंडिंग पौधारोपण के लिए करता है। नगर निगम के सोर्सेज की माने तो पौधे लगते तो जरूर हैं। मगर सरकारी अधिकारियों के बंगलों में। हालांकि अधिकारी ये मानते हैं कि पौधे लगाए तो गए पर देखरेख ठीक से न होने की वजह से वह सर्वाइव नहीं कर सकें। 85 पार्कों की बाउंड्रीवॉल डैमेज  


सिटी के सबसे ज्यादा पार्क राजेंद्रनगर, मॉडल टाउन, आवास विकास, गांधी नगर, रामपुर बाग, पवन विहार, सुरेश शर्मा नगर में हैं। बच्चों के लिए बने अधिकतर पार्कों में झूले गायब हैं। नगर निगम सोर्सेज के मुताबिक सिटी के 85 पार्कों की बाउंड्रीवॉल टूटी हुई है। बाउंड्रीवॉल सलामत न होने से पार्क आवारा जानवरों की चारागाह बने हुए हैं। जानवरों के बसेरा में तब्दील हुए पार्क में नाममात्र को लगे पौधे बलि चढ़ गए हैं।  पार्क में staff ही नहीं

नियम तो ये है कि हर पार्क के लिए माली, सफाई कर्मचारी और चौकीदार की ड्यूटी लगाई जाए। चौकीदार का आवास भी पार्क के पास ही होना चाहिए। शहर के दर्जन भर पार्क को छोड़ दिया जाए तो बाकी पार्कों का पुरसाहाल लेने वाला कोई नहीं है। मेयर डॉ। आईएस तोमर ने निकाय चुनाव से पहले पार्कों की देखभाल के लिए लोकल रेजिडेंट्स की कमेटी बनाने का वादा किया था। ताकि उन रेजिडेंट्स के हाथों में पार्कों की देखभाल सौंपी जा सके। बोर्ड गठन के कई मंथ के बाद भी वादा हकीकत नहीं बन सका। अवैध कब्जों के हवाले पार्क बदहाल पार्क पर रेजिडेंट्स का अवैध कब्जा स्टार्ट हो चुका है। राजेन्द्रनगर उन एरियाज में है, जिनमें सर्वाधिक पार्क हैं। यहां रेजिडेंट्स ने अपनी सुविधानुसार पार्कों की दीवार को तोड़कर पार्क को पर्सनल गैराज बना लिया है। कहीं तो एरिया की डेरी वाले ने गाय, भैंसों को बांधकर पार्क पर अवैध कब्जा कर रखा है। इसी एरिया के रसूखदार दरोगा ने पार्क को अपनी पर्सनल एसेट्स बना लिया है। आस-पास के रेजिडेंट्स उनके रसूख के चलते शिकायत करने से भी कतराते हैं। जुआरियों और शराबियों का बना अड्डा

नगर निगम के  सीआई पार्क 2003 में संतोष गंगवार ने बतौर तेल एवं प्राकृतिक राज्य मंत्री रहते हुए बनवाया था। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार किसी भी पार्क और तालाब का स्वरूप नहीं बदला जा सकता है। मगर हालिया कुछ सालों में सीआई पार्क की ही जमीन पर नगर निगम ने शॉप्स बनवा दी। वर्तमान स्थिति ये है कि पार्क में झूले और फव्वारे टूटे हुए हैं। दोपहर को पार्क जुआरियों और शराबियों का अड्डा बन जाता है। स्टेट बैंक कॉलोनी वर्ष 1993 में नगर निगम को हैंडओवर जरूर हुई थी। मगर निगम ने यहां के पार्कों की देखरेख के लिए सजगता नहीं दिखाई। नतीजतन यहां के सबसे बड़े पार्क पर अवैध कब्जे का प्रयास चल रहा है। हालाकि रेजिडेंट्स के प्रयास से फिलहाल पार्क बचा हुआ है। पार्कों के लिए नगर निगम द्वारा खर्च की गई रकम का सालवार ब्यौरा  साल             खर्च की रकम का ब्यौरा  2007-08        2,05,33,0402008-09        77,64,1292009-10        44,89,1162010-11        35,94,912दिसंबर 2011    7,29,267सिटी के पार्कों के लिए सुझाव-जिम्मेदार रेजिडेंट्स की कमेटी बनाकर एरिया के पार्कों को देखभाल के लिए उनके सुपुर्द कर देना चाहिए। -पार्कों में रेगुलर स्टाफ जरूरी होता है, चौकीदार, माली, सफाई कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाए ताकि  पार्को का हाल ठीक-ठाक बना रहे।-पार्कों के रूप में निगम की प्रॉपर्टी अवैध कब्जों की भेंट चढ़ रही है। ऐसी प्रॉपर्टी चिन्हित होनी चाहिए।
-पार्कों को डेवलप कर पिकनिक स्पॉट बनाना चाहिए। इससे निगम की इनकम में इजाफा होगा। हमने सभी पार्षदों से संपर्क किया है। रेजिडेंट्स के सहयोग से पार्क के लिए पब्लिक लेवल पर कमेटी का गठन होगा। इसके बाद ही पार्कों के सौंदर्यीकरण का काम शुरू किया जाएगा। क्योंकि होता ये है कि पार्कों पर निगम काम तो करवा देता है। मगर फिर रखरखाव न होने से बदहाल होते हैं। -डॉ.आईएस तोमर, मेयर जब घर यहां लिए थे तो पार्क के पास रहने के लिए बच्चों में बड़ा चाव था, फिर यहां आने के बाद आज तक जो पार्क की खराब कंडीशन से सभी का मन खट्टा हो गया है। निगम ने इतने सालों में ये पार्क कभी ठीक नहीं किए। -राकेश, रेजिडेंटएरिया के सभी पार्कों के झूले टूटे हुए हैं। बाउंड्रीवॉल भी सलामत नहीं है। आवारा जानवर पार्कों में रहते हैं। बच्चें तो इन पार्कों में जा ही नहीं पाते हैं। -विमला सिंह, रेजिडेंट बारिश के बाद पार्कों में जंगली झाडिय़ां उग आईं हैं। यहां सफाई तो कभी होती ही नहीं है। निगम के कर्मचारियों को तो पार्क की सफाई से कोई ही मतलब नहीं है। निगम को पार्कों का अच्छी तरह से रखरखाव करना चाहिए।
-राजेश, रेजिडेंटअधिकतर पार्कों पर तो अवैध कब्जे हैं। अवैध कब्जों में सबसे आगे डेयरियों के ओनर हैं। पार्क में वह अपने जानवर बांधते हैं।  -लता शर्मा, रेजिडेंटपार्क की बाउंड्रीवॉल टूटी रहती है। तो आराम से जानवर पार्क के अंदर दाखिल हो जाते हैं। हैंडपंप खराब है। लाइट्स बरसों से खराब पड़ी है। पार्क का तो बस यहां नाम ही रह गया है। पार्क का हाल खराब होने से बच्चों को भी काफी प्रॉब्लम होती है।-संगीता, रेजिडेंट सभी पार्कों की कंडीशन खराब है। निगम के अधिकारी तो कभी झांकने नहीं आते हैं। यहां तो बस झाडिय़ां है। वॉक के लिए रोड््स पर निकलना पड़ता है। -विजय लक्ष्मी, रेजिडेंटReport by: Abhishek Mishra

Posted By: Inextlive