BAREILLY: गवर्नमेंट के बड़े-बड़े अवेयरनेस प्रोग्राम के बावजूद भी एचआईवी पॉजिटिव के साथ सोसाइटी ही नहीं घर में किस हद तक हॉरिबल बिहेवियर किया जाता है सार्थक नेम चेंज्ड की दास्तां से वाकिफ होने के बाद इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. एचआईवी पॉजिटिव कंफर्म होने के बाद से करीब आठ महीने तक बंद कमरे में उसकी सिसकियां गूंजती रहीं. भाइयों ने सार्थक के साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया. आलम यह रहा कि उसकी पत्नी को भी उसका सहारा नहीं बनने दिया गया. आई नेक्स्ट रिपोर्टर अभिषेक मिश्र से सार्थक ने बयां की अपनी पीड़ा.


'कैद के वो दिन मुझे भूलते नहीं'नरक की तरह थे वो दिन, जब मेरे अपनों ने ही मुझे कैदी बना लिया। मां को मेरा ख्याल मेरी सिसकियों की आवाज सुनकर आता था। जब वह मुझे खाना देने आती तो मैं उसका हाथ थाम कर बाहर निकालने के लिए गुहार लगाता, लेकिन मेरे भाइयों के दबाव के आगे वह भी मजबूर थीं। अनजाने में हुई एक बीमारी ने मेरा जीवन बदलकर रख दिया। इतना कह सार्थक (परिवर्तित नाम) की आंखें नम हो गईं।टूट चुकी थीं उम्मीदें


सार्थक ने बताया कि मेरी शादी को 2 साल ही बीते थे। आशंका होने पर टेस्ट करवाया तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई। जब मैंने अपनी बीमारी के बारे में घर वालों को बताया तो उनका व्यवहार मेरे लिए अचानक बदल गया। मेरे दो बड़े भाइयों ने मुझे जबरन घर के एक कमरे में बंद कर दिया। मुझे मेरी वाइफ से भी नहीं मिलने दिया जाता था। मेरे साथ जानवरों जैसा बर्ताव किया जाने लगा। वो वक्त ऐसा था जब मैं जिंदगी से सारी उम्मीद हार चुका था। Counselling के लिए किया राजी

एक दिन मेरी वाइफ को डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के इंटीग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) के बारे में पता चला। उसने घरवालों को काफी फोर्स कर काउंसलिंग कराने के लिए राजी किया। सेंटर पर एक महिला डॉक्टर मुझे बतौर काउंसलर मिलीं। उनकी काउंसलिंग से मेरे घर वालों पर काफी असर हुआ। डॉक्टर ने मेरे कुछ टेस्ट करवाए जिससे मेरी इम्युनिटी पॉवर चेक  की गई। इसके बाद न सिर्फ सही ट्रीटमेंट से मेरी कंडीशन में काफी सुधार हुआ। बल्कि घरवालों का बिहेवियर भी बदल गया। और टै्रक पर लौटी मेरी लाइफजिस बात से मेरी बुरे वक्त की टीस कम होती है वह है मेरे पिता बनने की खुशी। एड्स का पेशेंट होने के बावजूद मेरी एक स्वस्थ बच्ची है और मेरी पत्नी भी संक्रमण से मुक्त है। अपने परिवार के सपोर्ट से मैंने एक बिजनेस शुरू किया है। हालांकि मैंने अपना इलाज बंद नहीं कराया है। ट्रीटमेंट के लिए हर मंथ सेंटर पर जाना होता है। वर्तमान में मैं परिवार से खुशहाल, समाज में सम्मानित और पर्सनल लाइफ में सिद्धांतवादी व्यक्ति हूं।'महसूस होती थी कैद की घुटन'

वो पल मेरे लिए दर्दनाक थे। कई बार तो मेरा विश्वास और हौसला टूटने सा लगता था। परिवार पर बीमारी को लेकर फैली भ्रांतियां इतनी बुरी तरह से हावी हो गई थीं कि अपने ही चहेते को उन्होंने कमरे में कैद कर दिया। परिवार का ये फैसला बीमारी न फैलने के लिए भले ही लिया गया था लेकिन बंद कमरा मुझे पल-पल सालता था। मेरे हाथ में तो जैसे कुछ रह ही नहीं गया था। बस उन्हें खाना खिलाने के बहाने देख लेती थी। फिर जब फैमिली मेंबर्स उनके इलाज के लिए तैयार हुए, तो उम्मीद की किरण दिखी। आज ट्रीटमेंट के बाद वह एचआईवी पॉजिटिव होने के बावजूद हेल्दी लाइफ जी रहे हैं।- रीमा (नेम चेंज्ड), सार्थक की पत्नी

Posted By: Inextlive