भयंकर गर्मी से डिप्रेशन पेशेंट्स की तकलीफें बढ़ीं

डेली डॉक्टर्स के यहां पहुंच रहे करीब 50 पेशेंट्स

BAREILLY: शहर के बढ़ते पारे से लोगों की हेल्थ का 'पारा' भी डिस्टर्ब होने लगा है। भयंकर गर्मी से बरेलियंस जहां हीटस्ट्रोक, डिहाइड्रेशन और सनबर्न जैसी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। वहीं डिप्रेशन के पेशेंट्स को ये समर्स कुछ ज्यादा ही सता रही हैं। बढ़ता पारा उनके दिमाग में केमिकल लोचे करने लगा है। नतीजतन मेंटल पेशेंट्स की तकलीफें बढ़ने लगी हैं। उनमें गुस्सा, चिढ़चिढ़ाहट और मूड स्विंग्स टेंप्रेचर की तरह ही इंक्रीज होता जा रहा है। एक्सप‌र्ट्स के अनुसार डिप्रेशन के पेशेंट्स में हो रहे केमिकल लोचे की वजह से उन्हें कई और हेल्थ प्रॉब्लम्स का भी सामना करना पड़ सकता है। उनमें किडनी, ब्रेन हैमरेज और हार्ट प्रॉब्लम्स की भी संभावना बढ़ जाती है। एक्सप‌र्ट्स की मानें तो मेंटल ओपीडी में इस समय करीब दो गुना से भी ज्यादा पेशेंट्स बढ़ गए हैं। वहीं गर्मियों में न्यूरोकेमिकल्स के इंबैलेंस होने से आम लोगों के व्यवहार में भी काफी चेंज आने लगते हैं।

क्या है यह केमिकल लोचा

न्यूरोलॉजिस्ट के अनुसार दिमाग की सभी कोशिकाओं यानि न्यूरॉन्स का आपस में संपर्क बना रहे, इसके लिए ब्रेन में न्यूरोकेमिकल्स होते हैं। जब बाहरी टेंप्रेचर बढ़ता है तो नॉर्मल ह्यमन के ब्रेन में न्यूरोट्रांसमीटर्स का फ्लो बढ़ जाता है, जिससे न्यूरॉन्स का संपर्क बिगड़ने लगता है। यही केमिकल लोचा कहलाता है। वहीं साइकेट्रिस्ट मानते हैं कि ब्रेन की सेल्स यानि न्यूरॉन्स को कंट्रोल करने के लिए तमाम तरह के न्यूरोकेमिकल्स होते हैं। सीटोनिन और डोपामीन नाम के न्यूरोकेमिकल्स इसमें अहम होते हैं। ह्यूमन बॉडी के अकॉर्डिंग टेंप्रेचर ना होने पर जिनको पहले से तनाव रहता है, उनके ब्रेन में इन केमिकल्स के डिस्टर्ब होने की संभावना ज्यादा होती है।

Reason and effects

जब गर्मी का मौसम आता है तो लोगों में सीजनल डिजीज के चांसेज जहां बढ़ जाते हैं तो वहीं डिप्रेशन और हाइपरटेंशन के मरीजों की बीमारी और सीरियस हो जाती है। डॉक्टर्स का कहना है कि सर्दियों में डिप्रेशन के रोज 50 पेशेंट्स आते हैं तो गर्मियों में इनकी संख्या दोगुने यानि 100 से भी अधिक हो जाती है। न्यूरोएक्सप‌र्ट्स के मुताबिक जो लोग थोड़ी प्रॉब्लम्स आने पर हताश हो जाते हैं और चिंता में डूबे रहते हैं, वे डिप्रेशन की चपेट में आसानी से आ जाते हैं। इससे इनकी सोच से पॉजिटिव थिंकिंग खत्म हो जाती है। गर्मी से उनका मूड और चिढ़चिढ़ा और निगेटिव होने लगता है। इससे उमनें डायबिटीज, ब्लड प्रेशर व अन्य रोग पनपने की संभावना बढ़ जाती है।

Uncontrolled हो जाता है anger

गर्मी के मौसम में डिप्रेशन और हाइपरटेंशन के मरीजों की दिक्कत और बढ़ जाती है। हल्की सी परेशानी होने पर गुस्से में व्यक्ति अनकंट्रोल्ड हो जाता है। एक्सप‌र्ट्स के मुताबिक एंगर ब्रेन के दो डिफरेंट पा‌र्ट्स से कंट्रोल किया जाता है। इन पा‌र्ट्स के न्यूरोट्रांसमिटर्स कैटेकोलामिन रिलीज करते हैं, जिसकी वजह बॉडी में एनर्जी बढ़ जाती है, हार्ट रेट बढ़ जाता है। इसकी वजह से हार्मोन एड्रिलिन और नोराड्रिलिन भी रिलीज होता है और ब्रेन में ब्लड का फ्लो बढ़ जाता है। इससे ब्रेन को कंट्रोल करने वाले डोपामिन और एसिटिलकोलिन न्यूरोकेमिकल क ा सिक्रीशन डिस्बैलेंस हो जाता है और व्यक्ति को बिना बात के भी गुस्सा आने लगता है।

साइकोसिस की भी प्रॉब्लम

साइकेट्रिस्ट के मुताबिक बढ़ते टेंप्रेचर और धूप की वजह से ब्रेन का कंसंट्रेशन सबसे पहले बिगड़ता है। इसके बाद टॉलरेंस में कमी आती है, चिड़चिड़ापन बढ़ता है और व्यक्ति झगड़ालू हो जाता है। कई केसेज में तो ज्यादा देर धूप में रहने से साइकोसिस तक हो जाती है। इसकी सबसे बड़ी वजह ब्रेन में इलेक्ट्रोलाइट इम्बैलेंस होना है। इसमें बॉडी में पानी और नमक की कमी हो जाती है, इससे ही व्यक्ति का ब्रेन गर्मी का शिकार होने लगता है। वह बिना बात के ही गाली-गलौच, मारपीट और झगड़ा करता है।

बचाव के उपाय

इन प्रॉब्लम्स से बचने के लिए जरूरी है कि पेशेंट्स प्रॉपर मेडिसिन लें। साथ ही एक्सपर्ट के सुझावों को फॉलो कर इससे कुछ हद तक राहत मिल सकती है।

- इंपार्टेट वर्क को सुबह या शाम में पूरा करें।

- सुबह उठकर मेडिटेशन करने से गुस्से को कम करने में काफी फायदेमंद होगा।

- अपना डायट चार्ट प्रॉपर रखें। इसमें विटामिन, प्रोटीन जैसे हेल्दी और नेचुरल इंग्रीडिएंट्स प्रिफर करें।

- बदलते मौसम में मनपसंद प्लेस पर घूमने जाएं।

- अपनी फेवरिट हॉबीज में खुद को बिजी रखें।

- तनाव और समस्याओं को फ्रेंड्स, पेरेंट्स के साथ शेयर करें।

- घर को हल्के रंगों से पुतवाएं, वही रंग चुनें जो सूकून दे।

- मोबाइल की रिंगटोन ऐसी चुनें जो चुभने वाली ना हो।

- लैपटॉप, कंप्यूटर और मोबाइल की थीम्स और वॉलपेपर को नेचुरल रखें।

- बढ़ते टेंप्रेचर की वजह से न्यूरो केमिकल्स का डिसबैलेंस होना आम बात है। व्यवहार में बदलाव, चिड़चिड़ापन, नींद और इम्यूनिटी पॉवर की कमी का अहसास इसके शुरुआती लक्षण हैं। खुद को स्टेबिल रखने के लिए दवा के बजाय नेचुरल ट्रीटमेंट ज्यादा कारगर हैं।

डॉ। राकेश शुक्ला, न्यूरोलॉजिस्ट

- गर्मियों में डिप्रेशन के मरीज आम दिनों से दुगुने की संख्या में पहुंच रहे हैं। प्रॉपर ट्रीटमेंट ना लेने से गंभीर बीमारियों जैसे हार्ट, किडनी, डायबिटीज और ब्लडप्रेशर की समस्या बढ़ सकती है। सामान्य व्यक्तिओं में भी इसके लक्षण पनपने की संभावना है।

डॉ। वीके श्रीवास्तव, साइकेट्रिस्ट

Posted By: Inextlive